गणेश चतुर्थी व्रत का उल्लेख पुराणिक ग्रंथों में प्राप्त होता है। इस व्रत को विशेष रूप से विघ्नहर्ता भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। विधिपूर्वक व्रत के साथ-साथ फाल्गुन गणेश चौथ कथा जरूर पढ़नी चाहिए।
भगवान गणेश बुद्धि, विवेक, ज्ञान और शुभ फल प्रदान करने वाले देवता माने जाते हैं। किसी भी शुभ कार्य की आरंभ में श्री गणेश की पूजा से प्रारंभ की जाती है। इस व्रत को मनाने से भक्तों की सभी मुश्किलें दूर हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन पूरी निष्ठा और नियमों के साथ व्रत मानता है, उसे लम्बी आयु, सफलता और धन की प्राप्ति हो जाती है।
यह व्रत केवल भौतिक सुख ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करता है। इस दिन भगवान गणेश को तिल और गुड़ से बनी वस्तुओं का भोग समर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत की संपूर्ण जानकारी के लिए पढ़े
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फाल्गुन गणेश चौथ कथा
पार्वती बोली-पुत्र फाल्गुन मास में किस गणेश का पूजन तथा क्या भोजन करना चाहिए? श्री गणेश जी बोले- जगत जननी इस मास में हेरन्म गणेश जी की पूजा तथा खीर और कन्मेर का हवन गुलेबांस की गामधाओं से करना चाहिए।
सतयुग में एक धर्मात्मा युवनाश्च राजा था। उसे राज्य में वेदपाठी धर्मात्मा विष्णु शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था, उसके साथ पुत्र थे। सभी अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा क्रम से सातों के यहां भोजन करता हुआ वृद्धावस्था को प्राप्त हुआ।
बहुएं अपने ससुर का अपमान करने लगी। एक दिन गणेश चौथ का व्रत करने बड़ी बहू के घर गया। बोला-बहू आज गणेश चौथ है पूजन की सामग्री इकट्ठा कर दो। बहु बोली-मुझे घर के काम से छुट्टी नहीं है तुम रोज कुछ ना कुछ किया करते हो।
इस तरह अपमान सहन करता हुआ अंत में सबसे छोटी बहू के घर गया और पूजन सामग्री का प्रश्न किया बहू ने कहा-दादा आप दुख मत करो मैं अभी पूजन सामग्री लाती हूं। वह भिक्षा करके सामग्री ले आए स्वयं अपने ससुर के लिए समान एकत्र किया और दोनों ने विघ्ननाशक श्री गणेश जी की पूजन की।
छोटी बहू ने ससुर को भोजन कराया और स्वयं भूखी रह गई। अर्धरात्रि के समय विष्णु शर्मा को वमन उल्टी होने लगी और दस्त भी होने लगे मल मूत्र में पैर खराब हो गए। जब छोटी बहू ने देखा तो उसे बड़ा दुख हुआ और पानी से अपने ससुर के हाथ पैर धोए।वह रात भर सेवा और जागरण करती रही।
प्रातः काल हो गया श्री गणेश जी की कृपा से ससुर की तबीयत ठीक हो गई और घरों में चारों ओर धन दिखाई देने लगा। जब भर हुआ तो बहू ने छोटी बहू का धन देखा जो उन्हें बड़ा दुख हुआ। फिर सबने गणेश व्रत करके धन प्राप्त किया।
श्री कृष्ण बोले-राजन तुम भी इस प्रकार व्रत करो,तुम्हारे सभी दुख नष्ट हो जाएंगे और राज्य की प्राप्ति होगी। श्री युधिष्ठिर जी ने गणेश चौथ व्रत कर अपना राज्य प्राप्त किया और इस लोक में सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
।। फाल्गुन गणेश चौथ कथा समाप्त।।
आरती श्री गणेश जी की
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी। पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया। ‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।। दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
बोलो गणपति बप्पा की जय। रिद्धि सिद्धि की जय।महादेव की जय।महादेव की पूरे परिवार की जय।।