नवरात्रि का पर्व विशेष रूप से माता दुर्गा की पूजा और आराधना का समय है। इस दौरान यदि आप पूरी श्रद्धा और भावना से “सप्तशती” पाठ करते हैं, तो यह आपके जीवन में शक्ति और सुख-शांति का संचार कर सकता है। सभी के पास “सप्तशती” पाठ करने के अलग-अलग तरीके होते हैं। लेकिन जो भी विधि अपनाई जाए, यह आवश्यक है कि दुर्गा सप्तशती पाठ विधि का पालन सही तरीके से किया जाए।
ऐसा कहा जाता है कि यदि इस पाठ को निष्ठा और एकाग्रता के साथ किया जाए, तो नवरात्रि के नौ दिनों में यह पाठ विशेष रूप से प्रभावी होता है और मां भगवती स्वयं आपके सामने बैठी हुई प्रतीत होती हैं।
पाठ विधि और आस्था का महत्व
विशेष ध्यान रखें कि गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “सप्तशती” की किताब खरीदें, क्योंकि इसमें पाठ विधि के साथ-साथ उन चीजों का भी वर्णन है, जिन्हें पाठ करते समय उपयोग करना चाहिए।
पाठ करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातें
- पाठ कभी भी बहुत ऊंची आवाज़ में और जल्दी-जल्दी नहीं करना चाहिए।
- हमेशा मध्यम गति से पाठ करें, जैसे कि मैं अपनी आवाज़ में कर रहा हूं। न तो बहुत धीमे और न ही बहुत तेज़।
- कई बार लोग मन ही मन पाठ करते हैं, लेकिन ऐसा करने से पाठ का प्रभाव कम हो सकता है, इसलिए हर शब्द को ध्यान से और स्पष्ट रूप से बोलें।
- ध्यान रखें कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। अगर आपको लगता है कि आप लंबी देर तक बैठ नहीं सकते, तो थोड़ी देर के लिए ब्रेक लें। मां भगवती जानती हैं और वह आपके हर प्रयास को स्वीकार करती हैं।
नवरात्रि में “सप्तशती” पाठ करने की विधि और ध्यान रखने योग्य बातें
नवरात्रि के दौरान “सप्तशती” पाठ को सही तरीके से करना न केवल मां भगवती की कृपा प्राप्त करने का मार्ग है, बल्कि यह जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लाता है। पाठ करने के दौरान कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक है, ताकि पाठ का अधिकतम लाभ मिल सके।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रखना:
पाठ करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को थोड़ा सा सीधा करें और फिर उसी स्थिति में बैठें। ध्यान रखें कि इस समय आप किसी से बात न करें और किसी अन्य कार्य में भी संलग्न न हों। अगर आपको अपने शरीर को सही करना है तो भी ध्यान मां भगवती पर ही रखें। - पुस्तक रखने का तरीका:
“सप्तशती” की किताब को हाथ में पकड़कर नहीं पढ़ें। हमेशा उसे एक स्टैंड पर रखें। अगर वह लकड़ी का स्टैंड है, तो उसके ऊपर एक कपड़ा बिछाएं। किताब को स्टैंड पर रखकर ही पाठ करें, ताकि उसका आदर और पवित्रता बनी रहे। - पुस्तक खोलते समय विशेष ध्यान:
जब भी आप किताब खोलें, सबसे पहले उस पर गंगाजल या पानी छिड़कें, फिर थोड़ा कुमकुम लगाएं और चंदन लगाएं। अगर संभव हो तो अक्षत और आरती भी अर्पित करें। इस समय आप मां भगवती से अपनी खुशी की प्रार्थना करें और उनसे कृपा की कामना करें। - सात्विक भाव से पाठ की शुरुआत:
पाठ की शुरुआत “मां भगवती के प्रति विनम्र श्रद्धा और आशीर्वाद की भावना“ से करें। यदि आप कोई गलती करते हैं, तो उन्हें अपनी मां समझते हुए माफी मांगें, क्योंकि मां हमेशा अपने बच्चों को समझती हैं। इस भाव से पाठ करें और मां भगवती से कृपा की प्रार्थना करें। - ध्यान और नाम जप:
यदि आपके पास समय है, तो आप दुर्गाजी के 32 नाम तीन, पांच या ग्यारह बार जप सकते हैं। सबसे पहले 32 नाम एक बार जपें, फिर उन्हें दूसरी बार जपें। यदि आपके पास अधिक समय हो और आप मां भगवती से विशेष आशीर्वाद चाहते हैं, तो सप्तशती का पाठ करें। इस प्रारंभ में सप्तश्लोकी का पाठ करें, इसके बाद 108 नाम का पाठ करें। फिर कवच का पाठ करें, जिससे जीवन में कोई भी कष्ट नहीं होगा।
“किलक” का महत्व और उसकी विधि :
माँ भगवती के दिव्य रूप का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए “किलक” मंत्र का प्रयोग अत्यंत प्रभावी माना जाता है। यह मंत्र न केवल शारीरिक कष्टों और मृत्यु के भय से रक्षा करता है, बल्कि जीवन में समृद्धि, सुख और संपत्ति भी लाता है।
किलक मंत्र और उसकी शक्ति:
“किलक” मंत्रों में विशेष प्रकार की दिव्यता और शक्तियाँ निहित होती हैं। ये मंत्र ऐसे समय में अत्यधिक प्रभावी होते हैं जब व्यक्ति का उद्देश्य केवल भगवान और देवी की कृपा प्राप्त करना हो। इन मंत्रों का उपयोग बहुत ही सावधानी और पवित्रता से करना चाहिए, क्योंकि इनका गलत उपयोग न केवल प्रभावहीन हो सकता है, बल्कि व्यक्ति के लिए अशुभ भी हो सकता है।
शिव जी द्वारा लिखे गए मंत्र:
भगवान शिव ने इन मंत्रों को इस प्रकार से लिखा है कि इनमें से कोई भी गलत तरीके से प्रयोग न कर पाए। कालीयुग में, गलत मार्ग पर चलने वाले लोग भी इन मंत्रों का गलत प्रयोग कर सकते हैं, जिससे हानि हो सकती है। इसलिए भगवान शिव ने इन मंत्रों पर एक प्रकार से “ताला” लगा दिया है ताकि इनका सही उपयोग ही हो।
किलक के प्रयोग से लाभ:
जब कोई व्यक्ति सही भावना से, केवल भगवान और देवी की कृपा की कामना करते हुए “किलक” मंत्र का जाप करता है, तो वह न केवल अपनी आत्मा की शुद्धि करता है, बल्कि सारे नकारात्मक प्रभावों से भी मुक्त हो जाता है। यह मंत्र किसी भी तंत्र-मंत्र, वशीकरण, उच्छाटन, या शत्रु के नकारात्मक प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं।
सात्विक भाव से “किलक” मंत्र का जाप:
“किलक” मंत्र का सही तरीके से जाप करने के लिए, उसे 108 बार जाप करें और उसके बाद ” नवार्ण मंत्र” का सम्पुट जोड़ें। जैसे हम रामायण या रामचरित मानस के छपाइयों के साथ सम्पुट जोड़ते हैं, वैसे ही इस मंत्र के साथ ” नवार्ण मंत्र” सम्पुट जोड़ें।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे“
इस मंत्र के साथ, आप अपनी साधना को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं। यह मंत्र न केवल शक्ति का संचार करता है, बल्कि सभी प्रकार की नकारात्मकताओं को नष्ट कर देता है और देवी भगवती की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।
नवरात्रि के पावन पर्व पर माँ भगवती की पूजा का विशेष महत्व है। इस समय विशेष रूप से “सप्तशती” के पाठ और मंत्रों का जाप करने से देवी माँ की कृपा प्राप्त होती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि किस प्रकार 108 बार मंत्र का जाप, प्रत्येक दिन के पाठ की विधि, और पूजा के साथ अर्चना करने से माँ भगवती की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
मंत्र जाप की विधि:
सर्वप्रथम, आपको नवार्ण मंत्र का जाप 108 बार करना होगा। नवार्ण मंत्र का जाप करने के बाद, आप शेष विधियाँ प्रारंभ कर सकते हैं। यह मंत्र आपको शक्ति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करेगा।
सप्तशती के विभिन्न अध्यायों का पूजन:
- पहला अध्याय:
पहले अध्याय में माँ काली का पूजन किया जाता है। इसमें माँ काली ने महिषासुर का वध किया था। इस दिन आपको काली माँ के इस महान कार्य का गुणगान करना है। - दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय:
इन अध्यायों में महालक्ष्मी की महिमा का वर्णन है। यहाँ माँ महालक्ष्मी के रूप में समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है। - पाँचवे से दसवें अध्याय तक:
इन अध्यायों में माँ सरस्वती का पूजन किया जाता है। यह अध्याय ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती की उपासना के लिए समर्पित हैं। - ग्यारहवाँ अध्याय:
इस अध्याय में देवताओं का स्तुति और पूजा की जाती है। माँ भगवती की दिव्यता को इस अध्याय में रेखांकित किया गया है। - बारहवाँ अध्याय:
इस अध्याय में माँ भगवती ने स्वयं अपनी महिमा का वर्णन किया है और यह बताया है कि उन्हें किस प्रकार पूजा जाना चाहिए। - तेरहवाँ अध्याय:
इस अध्याय में दो प्रमुख पात्र – राजा और व्यापारी के बारे में बताया गया है, जो इस कथा को सुनते हैं और उनके जीवन में माँ भगवती के आशीर्वाद से सुख और मोक्ष प्राप्त होता है।

दुर्गा सप्तशती पाठ करने की कई विधियाँ हैं, जिनमें से निम्नलिखित दो प्रमुख विधियाँ हैं:
- संपूर्ण पाठ विधि
- क्रमबद्ध पाठ विधि
सम्पूर्ण पाठ विधि:
13 अध्याय पूरे करने के बाद, नवार्ण मंत्र 108 बार जपना आवश्यक है।
- प्रारंभ में कवच, किलक और अर्गलास्तोत्र का पाठ करें।
- नवार्ण मंत्र का जाप:
नवार्ण मंत्र का जाप 108 बार करें। यह मंत्र दिव्यता और शक्ति का संचार करेगा।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे “
इस मंत्र का जाप करने के बाद, 13वें अध्याय तक का पाठ करें। - क्षमा याचना:
पाठ के बाद, माँ भगवती से अपने दोषों के लिए क्षमा याचना करें। - सिद्ध कुंजिका स्तोत्र:
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। यह आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और भाग्य का संचार करेगा। - आयोजन और आरती:
पाठ के अंत में, आरती करें। आरती का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह माँ भगवती के प्रति आपकी आस्था और प्रेम को दर्शाता है।
नवरात्रि पूजा विधि: सप्तशती पाठ का क्रम विधि
नवरात्रि के विशेष पर्व पर माँ भगवती की उपासना में सप्तशती के पाठ का अत्यधिक महत्व है। यदि आप सम्पूर्ण पाठ करने में असमर्थ हैं, तो प्रतिदिन निर्धारित विधि से आप देवी माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। नीचे हम आपको सप्तशती के पाठ के लिए विधि बताने जा रहे हैं, जिसे आप नवरात्रि के दौरान अनुसरण कर सकते हैं।
पहले दिन की पूजा विधि:
पहले दिन केवल प्रथम अध्याय का पाठ करें। इस अध्याय में यह वर्णित है कि कैसे माँ के माध्यम से भगवान ने मधु और कैटभ का वध किया। प्रारंभ में तीन कवच, किलक, अर्गलास्तोत्र और सिद्ध कुंजिका का पाठ करें।
दूसरे दिन की पूजा विधि:
- दूसरे दिन आपको दूसरे और तीसरे अध्याय का पाठ करना है।
- प्रारंभ में तीन कवच, किलक, अर्गलास्तोत्र और सिद्ध कुंजिका का पाठ करें।
तीसरे दिन की पूजा विधि:
- तीसरे दिन आपको केवल चौथे अध्याय का पाठ करना है।
- इस दिन भी कवच, किलक,अर्गलास्तोत्र और सिद्ध कुंजिका का पाठ पहले करें
चौथे दिन की पूजा विधि:
- चौथे दिन आपको पाँचवे से आठवे अध्याय तक का पाठ करना है।
- यह चार अध्याय इस प्रकार हैं: पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, और आठवाँ।
- इस दिन के पाठ में विशेष रूप से बीज और महिषासुर के वध का वर्णन किया गया है, जिसे ध्यानपूर्वक पढ़ें।
पाँचवे दिन की पूजा विधि:
- पाँचवे दिन आपको नौवें और दूसरे अध्याय का पाठ करना है, जिनमें शुम्भ और निषुम्भ का वध है।
छठे दिन की पूजा विधि:
- छठे दिन आपको ग्यारहवें अध्याय का पाठ करना है, जिसमें देवताओं देवी की स्तुति की है।
सातवें दिन की पूजा विधि:
- सातवें दिन आपको बारहवे और तेरहवे अध्याय का पाठ करना है, जिसमें देवी जी की महिमा और स्तुति की गई है।
आठवे और नवें दिन की पूजा विधि:
- आठवे और नवें दिन आपको सप्तशती के सभी 13 अध्यायों का पाठ करना है।
- इस दिन पूरा पाठ करें और पूरे विधि-विधान से पूजन करें।
पूजा विधि का पूरा क्रम:
- कवच, किलक, अर्गलास्तोत्र और सिद्ध कुंजिका का पाठ करें।
- दिन के अनुसार निर्धारित अध्याय का पाठ करें।
- माँ भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करें।

सप्तशती पाठ के दौरान कवच, अर्गलास्तोत्र, और सिद्ध कुंज स्तोत्र का महत्त्व
सप्तशती पाठ के दौरान कवच, किलक, अर्गलास्तोत्र और सिद्ध कुंज स्तोत्र का विशेष महत्व है। इन मंत्रों और स्तोत्रों के साथ कीलक का पाठ करने से जीवन में चमत्कारी लाभ हो सकता है। लेकिन इन सभी का उच्चारण करते समय कुछ विशेष बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
सिद्ध कुंज स्तोत्र का पाठ: जब आप सिद्ध कुंज स्तोत्र का पाठ करें, तो यह सुनिश्चित करें कि आप इसका उच्चारण सही तरीके से कर रहे हैं। अगर आप संस्कृत को अच्छी तरह से जानते हैं और सही उच्चारण कर सकते हैं, तो सिद्ध कुंज स्तोत्र को संस्कृत में ही पढ़ें। अगर आपको संस्कृत में उच्चारण में कठिनाई होती है, तो आप इसे हिंदी में भी पढ़ सकते हैं। कारण यह है कि सिद्ध कुंज स्तोत्र में बीज मंत्र होते हैं और इनका गलत तरीके से उच्चारण करने से बहुत ही प्रभाव पड़ सकता है।
बीज मंत्रों का सही उच्चारण: बीज मंत्रों का प्रयोग बहुत ही ध्यानपूर्वक करना चाहिए। बीज मंत्र वे वैदिक मंत्र होते हैं जिनका गलत उच्चारण करना नुकसानदेह हो सकता है। जैसे अगर आपने आम के बीज की जगह बबूल का बीज बो दिया तो उसके परिणाम भी वैसा ही होंगे। इसलिए, बीज मंत्रों का सही उच्चारण महत्वपूर्ण है।
हिंदी में पहले पाठ करें: यदि आप संस्कृत में सिद्ध कुंज स्तोत्र का उच्चारण करने में सहज नहीं हैं, तो पहले इसे हिंदी में पढ़ें और उसके बाद धीरे-धीरे संस्कृत में उच्चारण करने की कोशिश करें। इससे आपको बीज मंत्रों और उनके अर्थ को सही समझने में मदद मिलेगी और आप उनका सही उपयोग कर पाएंगे।
अधिक लाभ के लिए देवी अथर्वशीर्ष और देवी सूक्त का पाठ करें: यदि आप सिद्ध कुंज स्तोत्र के साथ देवी अथर्वशीर्ष, रात्रि सूक्त और देवी सूक्त का पाठ करते हैं, तो आपको और भी अधिक लाभ मिलेगा। यह आपकी पूजा को और अधिक शक्तिशाली बना देगा।
सप्तशती पाठ और माँ भगवती की कृपा:
व्यक्तित्व में बदलाव: सप्तशती पाठ का प्रभाव केवल भौतिक इच्छाओं तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह आपके व्यक्तित्व पर भी गहरा असर डालता है। जब आप इस पाठ को सही तरीके से करते हैं, तो आपकी बोली में एक विशेष प्रभाव आता है। आपकी वाणी प्रभावशाली हो जाती है, और आपके शब्दों में सत्य की शक्ति होती है। इतना प्रभावी बन जाता है कि जो भी आप कहते हैं, वह सच हो जाता है। माँ भगवती की कृपा के कारण यह विशेषता आपके जीवन में आती है।
सात्विकता और आत्मविश्वास में वृद्धि: जो व्यक्ति इस पाठ को सच्चे दिल से करते हैं, उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। साथ ही, वह अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। सप्तशती का पाठ सिर्फ एक पूजा नहीं है, यह एक शक्तिशाली साधना है, जो आपको मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है।
विदेशों में भी प्रभाव: अगर आप सही तरीके से नहीं जानते हैं कि सप्तशती पाठ कैसे किया जाता है, तो भी आपको यह पाठ बिना किसी संकोच के करना चाहिए। चाहे आप हिंदी में इसे पढ़ें या फिर किसी विदेशी देश में इस पाठ को करें, इसका प्रभाव उतना ही शक्तिशाली होगा। भले ही विदेशों में रहने वाले लोग अंग्रेजी या अपनी मातृभाषा में बात करते हैं, उनके लिए भी यह मंत्र उतना ही प्रभावी होता है। मनुष्य की इच्छा शक्ति और साधना की शक्ति से यह मंत्र दुनिया के किसी भी कोने में असर डालता है।
निष्कर्ष:
सप्तशती पाठ का महत्व और माँ भगवती की कृपा से जीवन में आए बदलाव को अनुभव करने के लिए केवल सही विधि का पालन करना आवश्यक नहीं है, बल्कि एक दृढ़ विश्वास और सच्चे मन से पूजा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। आप चाहे जितने भी व्यस्त क्यों न हों, अगर आप इस पाठ को सच्चे मन से करते हैं, तो माँ भगवती की कृपा आपको जरूर मिलेगी।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन को समर्पित करते हुए आप इस प्रकार से माँ भगवती का पूजन और जाप कर सकते हैं। पहला दिन, जिसमें काली माँ की पूजा करनी है, उसके बाद हर दिन का विशेष पाठ और विधि से आप माँ भगवती का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
इस प्रकार, ध्यान, श्रद्धा और सही विधि से की गई पूजा न केवल आपके जीवन में सुख और समृद्धि लाती है, बल्कि आपके भीतर दिव्य शक्ति का संचार भी करती है।
Jai maa Durge