नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के आठवें और नौवें दिन को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिन्हें क्रमशः दुर्गा अष्टमी और महानवमी के रूप में जाना जाता है।
यह त्योहार साल में दो बार आता है- चैत्र और शारदीय नवरात्रि।
इन दिनों देवी दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है और भक्त विभिन्न अनुष्ठानों का पालन करते हैं।
दुर्गा अष्टमी और महानवमी न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इस लेख में हम इन दोनों तिथियों के महत्व, पूजा विधि, अनुष्ठान, कथा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक लाभों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

दुर्गा अष्टमी का महत्व
नवरात्रि के आठवें दिन को दुर्गा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन विशेष रूप से मां महागौरी को समर्पित है, जो नवदुर्गा का आठवां रूप हैं।
मां महागौरी को शांति, करुणा और शक्ति की देवी माना जाता है।
इस दिन देवी को हलवा, पूरी और चने का भोग लगाया जाता है।
दुर्गा अष्टमी के दिन भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और मां की आराधना में लीन रहते हैं।
इस दिन को महा अष्टमी भी कहा जाता है क्योंकि यह देवी के महाशक्ति स्वरूप की पूजा करने का विशेष अवसर माना जाता है।
इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि इसे बुरी शक्तियों के विनाश और सकारात्मक ऊर्जा के संचार का दिन माना जाता है।
महानवमी का महत्व
नवरात्रि के नौवें दिन को महानवमी के रूप में मनाया जाता है।
इसे मां सिद्धिदात्री की पूजा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं और भक्तों को आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर ले जाने में सहायक मानी जाती हैं।
महानवमी का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस दिन को नवरात्रि के समापन के रूप में देखा जाता है।
कुछ स्थानों पर इस दिन हवन और विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
इस दिन का बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है क्योंकि इसे आत्म-शुद्धि और शक्ति संचय का दिन माना जाता है।
दुर्गा अष्टमी और महानवमी पूजा विधि
दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- कलश पूजा: कलश में जल भरा जाता है और उसमें आम के पत्ते और नारियल रखे जाते हैं।
- देवी का आह्वान: मां दुर्गा का आह्वान और ध्यान किया जाता है।
- हवन: इस दिन कई भक्त हवन का आयोजन करते हैं।
- नैवेद्य अर्पण: देवी को हलवा, पूरी और चने का भोग लगाया जाता है।
- आरती और मंत्र जाप: मां दुर्गा के मंत्रों का जाप किया जाता है और आरती की जाती है।
यह विधि भक्तों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है और देवी की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
कन्या पूजन का महत्व
दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
इस दिन नौ कन्याओं को भोजन कराकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
कन्या पूजन के बारे में मान्यता है कि छोटी-छोटी कन्याओं में देवी दुर्गा के नौ स्वरूप निवास करते हैं।
इस दिन उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित कर उनकी सेवा की जाती है।
कन्या पूजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के सम्मान और समानता का संदेश भी देता है।

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दुर्गा अष्टमी और महानवमी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए नौ दिनों तक युद्ध किया था।
युद्ध के आठवें दिन मां ने महिषासुर पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी, जिसे महा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
अगले दिन देवी ने अन्य राक्षसों का भी वध किया, जिसे महानवमी के रूप में मनाया जाता है।
इस कथा का संदेश यह है कि अच्छाई की हमेशा बुराई पर जीत होती है और मां दुर्गा के आशीर्वाद से भक्त अपने जीवन की सभी कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।
हवन और दुर्गा विसर्जन
महानवमी के दिन हवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
हवन के माध्यम से भक्त अपने मन और आत्मा को शुद्ध करते हैं और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
इसके अतिरिक्त, कुछ स्थानों पर दुर्गा विसर्जन भी किया जाता है।
इस प्रक्रिया में, माँ दुर्गा की मूर्ति को जल में विसर्जित किया जाता है, जो इस बात का संकेत है कि देवी अपने लोक में वापस लौट रही हैं और भक्तों पर अपना आशीर्वाद बनाए रखेंगी।
नवरात्रि के आखिरी दो दिनों में देवी का आह्वान कैसे करें?
दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन देवी का आह्वान विशेष रूप से किया जाता है ताकि भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो।
देवी का आह्वान करने के लिए सुबह स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध करें।
देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और दुर्गा सप्तशती, देवी कवच या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
महानवमी के दिन विशेष हवन करना बहुत शुभ माना जाता है, जिसमें देवी के मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है।
इस दौरान “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चे” मंत्र का 108 बार जाप करें। देवी को केसर, कुमकुम, लाल फूल और नैवेद्य चढ़ाएं।
कन्या पूजन करें और नौ कन्याओं को भोजन कराएं।
इस विधि से देवी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और घर में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन दिनों का महत्व
दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दौरान उपवास और हवन करना न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी है।
- हवन से वायु शुद्ध होती है, जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
- उपवास के दौरान शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त होता है, जिससे स्वास्थ्य को लाभ होता है।
- मानसिक शांति प्राप्त होती है, क्योंकि इन दिनों ध्यान और साधना के कारण मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है।
दुर्गा अष्टमी और महानवमी के लाभ
इन दिनों की गई पूजा और साधना से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:
- आत्मिक शांति और मानसिक शुद्धता
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश और सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- कर्मों की शुद्धि और पुण्य लाभ
- भय, रोग और संकट से मुक्ति
इन लाभों के कारण ही दुर्गा अष्टमी और महानवमी की पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है।

निष्कर्ष
दुर्गा अष्टमी और महानवमी केवल धार्मिक त्योहार नहीं हैं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, शक्ति और भक्ति का त्योहार है।
इन दिनों मां दुर्गा की पूजा करने से भक्तों को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
इस त्योहार के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि अच्छाई की हमेशा बुराई पर जीत होती है और शक्ति का सही उपयोग करके जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
इसलिए हमें इस त्योहार को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाना चाहिए और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।