दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय में देवी दुर्गा के कृतित्व और धूमलोचन का वध करने की महिमा का वर्णन किया गया है।
ध्यान
मैं सर्वेश्वर भैरव के अंग में निवास करने वाली प्रमोदकृष्ण पद्मावती देवी का चिंतन करती हूँ। वे नागराज के आसन पर विराजमान हैं और नागों के फनों में सुसज्जित मणियों की विशाल माला से उनकी देहलता प्रकाशित हो रही है।
उनका तेज सूर्य के समान है और उनके तीन नेत्र उनकी शोभा को बढ़ा रहे हैं। उनके हाथों में माला, कुम्भ, कपाल और कमल सुशोभित हैं तथा उनके मस्तक पर अर्धचंद्र का मुकुट शोभायमान है।
दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय: धूमलोचन वध
ऋषि की कथा
ऋषि कहते हैं, देवी का यह कथन सुनकर दूत को बड़ा क्रोध आया। वह तत्काल दैत्यराज के पास गया और समस्त समाचार विस्तारपूर्वक सुनाया। दूत के मुख से यह बात सुनकर दैत्यराज क्रोधित हो उठा और अपने सेनापति धूमलोचन से बोला:
“धूमलोचन! तुम शीघ्र अपनी सेना के साथ जाओ और उस दुष्टा को पकड़कर घसीटते हुए बलपूर्वक यहाँ लेकर आओ। यदि उसकी रक्षा करने के लिए कोई खड़ा हो, चाहे वह देवता हो या गंधर्व, उसे अवश्य मार डालना।”
धूमलोचन का प्रस्थान
ऋषि कहते हैं, दैत्यराज की इस प्रकार आज्ञा देने पर धूमलोचन 7000 असुरों की सेना के साथ तुरंत वहाँ से चल पड़ा। जब वह हिमालय पहुँचा, तो उसने वहाँ निवास करने वाली देवी को देखा।
देवी को देखकर धूमलोचन ने ललकारते हुए कहा:
“अरे! तू तुरंत मेरे स्वामी के पास चल। यदि इस समय प्रसन्नतापूर्वक मेरे स्वामी के समीप नहीं जाएगी, तो मैं बलपूर्वक तुझे घसीटते हुए लेकर जाऊँगा।”
देवी का उत्तर : दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय
देवी ने धूमलोचन से कहा, “तुमें दांततियों के राजा ने भेजा है, तुम स्वयं भी बलवान हो और तुम्हारे साथ विशाल सेना भी है। ऐसी स्थिति में यदि तुम मुझे बलपूर्वक ले चलोगे, तो मैं तुम्हारा क्या कर सकती हूँ?”
ऋषि कहते हैं, देवी के यह शब्द सुनकर धूमलोचन उनकी ओर दौड़ा। तब अंबिका ने अपनी वाणी से केवल एक शब्द उच्चारण किया, और वह असुर भस्म हो गया।
असुरों का संहार
ऋषि कहते हैं, अंबिका के क्रोध में भरी वाणी सुनकर दैत्यराज की विशाल सेना और अंबिका ने एक दूसरे पर तीव्र शस्त्रों और शक्ति की वर्षा शुरू कर दी। इतने में देवी का वाहन, सिंह, क्रोध में भरकर गरजते हुए असुरों की सेना में कूद पड़ा। उसने अपने पंजों से कई दैत्यों को मार डाला, और अपनी जांघों से असुरों को पटखनी दी।
सिंह ने अपनी पंजों से असुरों के पेट फाड़ दिए और थप्पड़ों से उनके सिर अलग कर दिए। उसने कई दैत्यों के हाथ और सिर काट डाले और अपनी गर्दन के बालों को झकझोरते हुए, उसने बाकी असुरों के पेट फाड़कर उनका रक्त चूस लिया। देवी के क्रोध में भरे हुए सिंह ने महाबली सलमा द्वारा असुरों की सारी सेना का सफाया कर दिया।
दैत्यराज का क्रोध और अगला आदेश
देवी द्वारा धूमलोचन का वध करने और उसकी सेना का संहार करने के बाद दैत्यराज का क्रोध बढ़ गया। उसका होंठ कांपने लगा और उसने चंद्रमुण्ड नामक असुरों से कहा, “तुम लोग बड़ी सेना लेकर वहाँ जाओ। उस स्थान पर पहुँचकर देवी के बालों को पकड़कर, या उसे बंधक बना कर तुरंत यहाँ ले आओ।
यदि ऐसा करने में कोई संदेह हो, तो युद्ध में सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों और समस्त असुरी सेना का प्रयोग करके उसे मार डालो। देवी को बंदी बनाकर यहाँ लाओ, और इस बात का ध्यान रखना कि यदि सिंह ने भी मर जाना हो तो उसे बंधक बना कर मेरे पास ले आओ।”
यहाँ से देवी के अद्भुत पराक्रम की कथा आरंभ होती है, जहाँ वे असुरों का वध कर धर्म और सत्य की स्थापना करती हैं।
निष्कर्ष : दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय
दुर्गा सप्तशती छठा अध्याय में देवी दुर्गा के कृतित्व और असुरों का वध करने की महिमा का वर्णन किया गया है। देवी का शौर्य और उनका युद्ध कौशल असुरों को हराने में सिद्ध हुआ। दैत्यराज के क्रोध के बावजूद, देवी ने अपनी शक्ति से उसे पराजित किया और अपने भक्तों की रक्षा की।
इस कथा को पढ़कर हम समझ सकते हैं कि देवी का आशीर्वाद और शक्ति किसी भी कठिनाई से पार पाने में सक्षम होती है।