मान्यता है कि दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि की साढ़े साती या शनि से संबंधित अन्य कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि राजा दशरथ ने इस प्रार्थना के माध्यम से शनि देव को प्रसन्न किया था।
शनि देव ने ध्यान से प्रसन्न होकर राजा दशरथ को वरदान मांगने के लिए कहा। तब राजा दशरथ ने उनसे निवेदन किया कि वे किसी को भी कष्ट न दें, चाहे वह देवता हो, दानव हो, मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी। यह सुनकर शनि देव प्रसन्न हुए और कहा कि जो भी इस दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलेगी।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र पाठ विधि
- प्रातः काल की तैयारी:
इस व्रत को करने के लिए प्रातः काल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। - शनि देव की पूजा करें:
- शनि देव की प्रतिमा के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- काले तिल, उड़द की दाल और लोहे का दान करें।
- शनि देव को नीले फूल अर्पित करें।
- दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें:
- शांत मन और पूरी श्रद्धा के साथ स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद भगवान शनि देव से क्षमा याचना करें और उनकी कृपा की प्रार्थना करें।
- दान और सेवा:
- गरीबों और जरुरतमंदों को भोजन और वस्त्र का दान करें।
- किसी गाय को रोटी खिलाएं।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र के लाभ
- शनि की साढ़े साती और ढैय्या से राहत।
- शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान।
- जीवन में शांति और समृद्धि का आगमन।
- शनि देव की कृपा प्राप्ति।
इस स्तोत्र का पाठ करने से न केवल शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति भी होती है। इसे नियमित रूप से करें और शनि देव की कृपा से अपने जीवन को सुखमय बनाएं।
राजा दशरथ और शनि देव की कथा
प्राचीन समय में महाराज दशरथ ने शनि देव की दृष्टि से प्रजा को बचाने के लिए साहस दिखाया और शनि देव को प्रसन्न किया। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर शनि देव ने वरदान दिया कि जो भी श्रद्धा से उनकी पूजा करेगा और दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे शनि के कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
शनि देव का आशीर्वाद और पूजा विधि
शनि देव ने कहा, “जो भी मेरी लोहे की मूर्ति की शमी के पत्तों से पूजा करेगा, लोहे और काले उड़द का दान करेगा और विशेष रूप से मेरे दिन, शनिवार को मेरी स्तुति करेगा, मैं उसे कभी कष्ट नहीं दूंगा। मैं उसकी कुंडली के ग्रहों से जुड़े सभी दोषों को समाप्त कर दूंगा।”
देव ने आगे कहा, “मेरे इस विधि से पूजन करने से पूरी दुनिया मेरे कष्ट से मुक्त हो सकती है।”
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥
दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥
निष्कर्ष
इस प्रकार, दशरथ कृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ और पूजा करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली हर बाधा का समाधान होता है।
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