चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश दमनक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। वे सभी देवताओं में पहले पूज्य हैं।
गणेश दमनक व्रत का महत्व
भविष्य पुराण के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है, समस्याओं से घिरा महसूस होता है, या किसी संकट के आने की संभावना होती है, तो उस स्थिति में गणेश दमनक चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को लाभ मिलता है।
चतुर्थी तिथि का दमनक चतुर्थी से संबंधित एक विशेष महत्व है। अब हम आपको बताते हैं कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अमावस्या तिथि तक का समय दमनक चतुर्थी के व्रत का समय होता है। इस दिन विशेष रूप से दमनक नामक पौधे से भगवान श्री गणेश की पूजा करने की परंपरा है।
इस व्रत से भक्त को इस लोक और परलोक दोनों में सुख की प्राप्ति होती है। सभी दुख समाप्त हो जाते हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने से व्यक्ति को इच्छित फल मिलता है और गणपति की कृपा प्राप्त होती है।
विद्यार्थियों को विद्या, धन और सफलता मिलती है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले और रोग से पीड़ित व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
2025 में गणेश दमनक चतुर्थी पूजा , 1 अप्रैल को मनाई जाएगी । हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश दमनक चतुर्थी पड़ती है।
तिथि प्रारम्भ: 1 अप्रैल 2025 को प्रातः 5:42 बजे
तिथि समाप्त: 2 अप्रैल 2025 को प्रातः 2:32 बजे
गणेश दमनक व्रत विधि
दिनभर उपवास रखने के बाद रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए भगवान गणेश का ध्यान करें और प्रार्थना करें कि वे सभी बाधाओं को दूर करें। चंद्रमा को जल अर्पित करते समय कहें, “हे देव, सभी विघ्नों का नाश करें।” अब हम आपको बताते हैं श्री गणेश दमनक चतुर्थी व्रत कथा। इसे ध्यान से सुनें, इससे आपके सभी दुख समाप्त होंगे और आपको इच्छित फल प्राप्त होगा।
गणेश दमनक चतुर्थी की कथा
एक बार वैकुंठ में देवताओं की सभा हुई। सभी देवता किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे। अंत में यह तय हुआ कि जो देवता पृथ्वी की परिक्रमा करके सबसे पहले वापस आएगा, उसे श्रेष्ठ माना जाएगा और उसे सिंहासन दिया जाएगा।
सभी देवता अपने-अपने वाहन लेकर निकल पड़े। गणेश जी का शरीर भारी था और उनका वाहन मूषक था। उन्होंने सोचा कि इस तरह से काम पूरा करना कठिन होगा। तब गणेश जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और मूषक को बुलाकर पूरी पृथ्वी को खोदने के लिए कहा।
मूषक ने पृथ्वी पर गड्ढे बना दिए, जिससे सभी देवताओं के रथ फंस गए। इस दौरान गणेश जी ने अपने मूषक पर सवार होकर भगवान विष्णु की सात बार परिक्रमा की। वहां उपस्थित देवताओं ने यह बात सरस्वती जी को बताई। सरस्वती जी ने कहा कि यह गणेश जी की चतुराई है और सभी को उनकी आराधना करनी चाहिए।
गणेश जी का ध्यान
सरस्वती जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने गणेश जी का ध्यान किया। इसके बाद विष्णु जी की पत्नी पृथ्वी ने सभी देवताओं को गड्ढों से बाहर निकाला और वे सब वैकुंठ पहुंचे।
भगवान ने कहा कि श्री गणेश जी ने सबसे पहले परिक्रमा पूरी की। देवताओं ने कहा, “भगवान, वह हमारे साथ नहीं थे, फिर वह सबसे पहले वहां कैसे पहुंचे?” भगवान ने बताया, “जब त्रिलोक मुझमें समाहित है, तब पृथ्वी कहां गई। इसीलिए गणेश जी ने भगवान की परिक्रमा की।” जब सभी देवता और देवियां संकट में पड़े, तो उन्होंने भी श्री गणेश जी को ही याद किया।
भगवान की बात मानकर सभी ने स्वीकार किया कि श्री गणेश जी सबसे महान हैं।
“हे गणपति महाराज, जैसे आपने सभी देवताओं के संकट दूर किए, वैसे ही सबके संकट दूर करें।”
इस कथा की कुछ पंक्तियां कई स्थानों पर भिन्न रूप में मिलती हैं। एक मत के अनुसार, श्री गणेश जी ने भगवान शंकर जी की परिक्रमा की थी।
वहीं, एक अन्य मत के अनुसार, श्री गणेश जी ने राम का नाम लिखकर पृथ्वी की परिक्रमा की थी।
हालांकि, इन कथाओं में भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन कथा का सार यही है कि अपनी बुद्धिमत्ता से श्री गणेश जी ने सभी देवताओं पर विजय प्राप्त की।
एक और कथा
गणेश दमनक चतुर्थी व्रत से जुड़ी एक और कथा एक वृद्धा की है। वह बहुत गरीब और नेत्रहीन थी। उसके पास एक पुत्र और बहू थे। वृद्धा सदा भगवान गणेश की पूजा किया करती थी।
एक दिन भगवान गणेश प्रकट हुए और बोले, “माँ, जो कुछ भी चाहो, मांग लो।” वृद्धा ने कहा, “मुझे नहीं पता क्या और कैसे मांगूं।” तब भगवान गणेश ने वृद्धा के पुत्र और बहू से कहा कि वह अपनी माँ की मदद करें।
वृद्धा ने अपने पुत्र से पूछा, “गणेश जी कहते हैं, जो चाहो मांग लो। बताओ मैं क्या मांगूं?” पुत्र ने कहा, “माँ, आप धन मांग लो।”
जब बहू से पूछा, तो बहू ने कहा, “पोतों का सुख मांग लो।”
वृद्धा ने सोचा कि दोनों अपने-अपने स्वार्थ की बात कर रहे हैं। तब उसने अपने पड़ोसियों से पूछा
पड़ोसियों ने कहा, “बुढ़िया माँ, तुम कुछ दिन यहीं ठहर जाओ।” लेकिन बुढ़िया बोली, “यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे करोड़ों रुपये दें, स्वस्थ शरीर दें, अखंड सौभाग्य दें, आंखों की रोशनी दें, पोते दें, पूरे परिवार को सुख दें और अंत में मुझे मोक्ष प्रदान करें।”
यह सुनकर भगवान गणेश बोले, “बुढ़िया माँ, तुमने हमसे चालाकी की है। फिर भी जो कुछ तुमने मांगा है, वह तुम्हें हमारी प्रतिज्ञा के अनुसार मिलेगा।” यह कहकर भगवान गणेश अंतर्धान हो गए और बुढ़िया को सब कुछ मिल गया जो उसने मांगा था।
“हे भगवान गणेश, जैसे आपने उस बुढ़िया को सब कुछ दिया, वैसे ही सभी को दें।”
चतुर्थी की दूसरी कथा
प्राचीन समय में एक राजा था। उसकी दो रानियां थीं और दोनों के एक-एक पुत्र थे। एक का नाम गणेश और दूसरे का नाम दमनक था। जब भी गणेश अपनी ननिहाल जाता, उसके मामा और मामी उसकी बहुत सेवा-सत्कार करते थे। लेकिन जब दमनक ननिहाल जाता, तो उसके मामा और मामी उसे घर का काम करने पर मजबूर करते और काम में कोई गलती हो जाने पर उसे मारते भी थे।
जब दोनों भाई अपने घर लौटते, तो गणेश अपने साथ ननिहाल से ढेर सारे मिठाई और अन्य सामान लेकर आता, जबकि दमनक हमेशा खाली हाथ लौटता। गणेश घर आकर अपने ननिहाल की खूब प्रशंसा करता, जबकि दमनक चुप रहता।
दोनों भाइयों का विवाह हो गया और उनकी बहुएं भी आ गईं। जब भी गणेश अपने ससुराल जाता, उसके ससुराल वाले उसकी खूब खातिरदारी करते थे। लेकिन जब दमनक अपनी ससुराल जाता, तो उसके ससुराल वाले बहाने बनाकर उसे अस्तबल में सुलाते और खुद आराम से सोते थे।
गणेश दमनक अपमान
जब गणेश अपने ससुराल से लौटते, तो दहेज के रूप में बहुत सारा सामान और दान-दक्षिणा लेकर आते, जबकि दमनक हमेशा खाली हाथ लौटते थे। एक बूढ़ी औरत इन दोनों भाइयों की स्थिति को देखकर चिंतित रहती थी।
एक दिन जब शाम को शिवजी और पार्वतीजी संसार का हाल-चाल जानने और भ्रमण के लिए निकले, तो वह बूढ़ी औरत उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई और गणेश और दमनक की कहानी सुनाई। उसने उनसे पूछा, “ऐसा क्यों है कि दमनक को अपने ननिहाल और ससुराल दोनों जगहों पर अपमान सहना पड़ता है, जबकि गणेश का हर जगह मान-सम्मान होता है?”
शिवजी ने ध्यान लगाया और कहा, “पिछले जन्म में गणेश ने अपने ननिहाल से जो भी लिया था, उसे अपने मामा-मामी के बच्चों को लौटा दिया था। ससुराल से जो भी मिला, उसे अपने साले-सलहज के बच्चों को वापस कर दिया। इसी कारण इस जीवन में भी उसका हर जगह आदर-सम्मान होता है।
वहीं दमनक ने अपने ननिहाल से जो भी लिया, उसे वापस करने का कष्ट नहीं किया। ससुराल में भी वह जो कुछ लेकर आता, उसे वापस नहीं करता था। इसलिए इस जन्म में दमनक का अपमान होता है और उसे कहीं भी आदर नहीं मिलता।”
शिवजी ने समझाया, “इसलिए हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि यदि भाई से कुछ लिया है, तो भतीजे को लौटाना चाहिए। मामा से लिया है, तो मामा के बच्चों को लौटाना चाहिए। ससुराल से लिया है, तो साले के बच्चों को लौटाना चाहिए। जिस किसी का भी भोजन या सामान लिया हो, उसे लौटाना चाहिए। जो लौटाता है, वही इसे बार-बार पाता है।”