चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख और पवित्र त्योहारों में से एक है। यह त्योहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है। प्रथम दिन मां शैलपुत्री पूजन होता हैं।
नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और इनका महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत अधिक है।
नवरात्रि का पहला दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन घटस्थापना (कलश स्थापना) की जाती है, जिसे पूरे नवरात्रि व्रत का आधार माना जाता है।
इस दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है, जो सती के अगले जन्म में अवतरित हुई थीं।
इनकी पूजा करने से व्यक्ति को धैर्य, आत्मविश्वास और स्थिरता प्राप्त होती है।
इस लेख में हम चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की घटस्थापना विधि, मां शैलपुत्री की पूजा विधि, उनकी कथा, महत्व और लाभ के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

घटस्थापना की विधि (कलश स्थापना)
शुभ समय घटस्थापना के लिए
घटस्थापना का सही समय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे अशुभ समय पर करने से पूजा का पूरा प्रभाव कम हो सकता है।
घटस्थापना तिथि: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
शुभ समय: सुबह जल्दी (सुबह 6:00 बजे से 9:00 बजे तक)
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:45 बजे से दोपहर 12:30 बजे के बीच
शुभ नक्षत्र: रेवती, अश्विनी या चित्रा नक्षत्र
अनुशंसित लग्न: वृषभ, सिंह, तुला या मकर लग्न
घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
घटस्थापना के लिए विशेष पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है:
मिट्टी का बर्तन या लकड़ी का तख्ता – जौ (यव) बोने के लिए।
जौ (यव) के बीज – जीवन में समृद्धि और प्रगति का प्रतीक।
कलश (तांबा, मिट्टी या चांदी) – इसे अमृत और जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
पवित्र जल (गंगा जल, कुएं का पानी या किसी पवित्र नदी का पानी)
आम के पत्ते, नारियल, लाल कपड़ा, सुपारी, चावल, दूर्वा, बेल के पत्ते, रोली, कुमकुम, हल्दी, पान के पत्ते
धूप, दीप, नैवेद्य (फल और मिठाई का प्रसाद), पंचमेवा, पंचगव्य

घटस्थापना की विधि
- पूजा स्थल को गंगाजल और गाय के गोबर से शुद्ध करें।
- लकड़ी के पटरे या मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं।
- बीच में तांबे या मिट्टी का बर्तन स्थापित करें और उसमें पवित्र जल भरें।
- बर्तन के मुंह पर आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर नारियल स्थापित करें।
- नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर मौली (कलावा) बांधें।
- बर्तन पर रोली, अक्षत और कुमकुम से तिलक लगाएं।
- मां दुर्गा का आह्वान करें और घटस्थापना का संकल्प लें।
मां शैलपुत्री पूजा विधि
मां शैलपुत्री का स्वरूप और महत्व
नवदुर्गा में मां शैलपुत्री प्रथम स्वरूप हैं। इनका स्वरूप दिव्य और सौम्य है।
वाहन: वृषभ (बैल)
दायाँ हाथ: त्रिशूल
बायाँ हाथ: कमल का फूल
माँ शैलपुत्री का आध्यात्मिक महत्व:
उनकी पूजा से मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
जीवन में शांति, धैर्य और आत्मविश्वास बढ़ता है।
विवाह और पारिवारिक जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि
- सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थल पर मां शैलपुत्री की मूर्ति स्थापित करें।
- गणपति की पूजा के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें।
- उन्हें चंदन, कुमकुम, अक्षत और लाल फूल अर्पित करें।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मां के बीज मंत्र “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” का 108 बार जाप करें।
- मां का पंचामृत से अभिषेक करें।
- आरती करें और भक्तों में प्रसाद बांटें।
मां शैलपुत्री की कथा
मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। जब राजा दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया तो सती क्रोधित हो गईं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया।
अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय के घर जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
उन्होंने भगवान शिव को पुनः पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और अंत में शिव से विवाह किया।
उनकी यह कथा त्याग, भक्ति और अटूट विश्वास का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री की पूजा के लाभ
- मानसिक शांति और आत्मविश्वास – माँ की पूजा से मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- पारिवारिक सुख-समृद्धि – दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।
- कष्टों से मुक्ति – सभी प्रकार की बाधाएँ और कष्ट दूर होते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति – साधक की साधना और ध्यान शक्ति बढ़ती हैं।

माँ शैलपुत्री के लिए विशेष कार्य
नवरात्रि का पहला दिन बहुत ही शुभ और पवित्र होता है।
इस दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
उनकी पूजा से जीवन में स्थिरता, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
इस दिन विशेष रूप से निम्न कार्य करने चाहिए—
- स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और नवरात्रि व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- घटस्थापना: शुभ मुहूर्त में विधिवत तरीके से घटस्थापना करें। इसमें कलश स्थापना और जौ (यव) बोने का विशेष महत्व है।
- मां शैलपुत्री की पूजा: देवी को लाल फूल, चंदन, धूप-दीप, नैवेद्य चढ़ाएं और “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
- व्रत की शुरुआत: इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और सात्विक भोजन का सेवन करते हैं।
- दुर्गा सप्तशती पाठ: मां दुर्गा के नौ रूपों की महिमा के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- दान-पुण्य करें: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और अनाज दान करें।
- सकारात्मकता बनाए रखें: नवरात्रि के दौरान मन, वाणी और कर्म की पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
इन कार्यों से मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
निष्कर्ष
चैत्र नवरात्रि का पहला दिन अत्यंत शुभ और पवित्र होता है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से साधक को आध्यात्मिक चेतना, मन की स्थिरता और जीवन में सफलता मिलती है।
घटस्थापना के माध्यम से पूरे नवरात्रि की सकारात्मक ऊर्जा संरक्षित रहती है।
जो व्यक्ति सच्चे मन से देवी की पूजा करता है, वह भय, शोक और नकारात्मकता से मुक्त हो जाता है।
उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख और समृद्धि आती है और साधक को आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
“जय माता दी!”