माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे। इसी कारण हर वर्ष इस तिथि को भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन संस्कारित परिवार की प्राप्ति के लिए पूजा, पाठ और कथा सुनने की परंपरा है।
आज के दिन लोग भीष्म पितामह का श्राद्ध कर्म भी करते हैं। महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए भीष्म पितामह अर्जुन के तीरों से घायल होकर शरशय्या पर लेट गए थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस समय सूर्य दक्षिणायन में था, और मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यही कारण है कि भीष्म पितामह ने उत्तरायण का इंतजार किया। मकर संक्रांति पर जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश कर गया, तब माघ शुक्ल अष्टमी के दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए।
भीष्म अष्टमी महत्व
भीष्म पितामह एक संस्कारित और आज्ञाकारी पुत्र थे। लोग भीष्म अष्टमी के दिन पूजा करते हैं और उनकी कथा सुनते हैं ताकि उन्हें भी भीष्म जैसे संस्कारी और पिता-भक्त संतान की प्राप्ति हो। हर वर्ष माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है। हिंदू धर्म में यह तिथि अत्यंत शुभ मानी जाती है।
इसी कारण लोग भीष्म अष्टमी के दिन व्रत रखते हैं। यह तिथि महाभारत के महान पात्र भीष्म पितामह को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भीष्म पितामह ने प्राण त्याग किए थे। यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति भीष्म अष्टमी का व्रत रखता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और पितृ दोष से भी छुटकारा पाता है।
भीष्म अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
भीष्म अष्टमी बुधवार 5 फरवरी, 2025 को पड़ रही है है।
तिथि प्रारंभ: 5 फरवरी 2025, दोपहर 02:30 बजे
तिथि समाप्त: 6 फरवरी 2025, दोपहर 12:35 बजे
5 फरवरी 2025 2025 को सुबह 11:26 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक पूजनीय समय है।
भीष्म अष्टमी पूजा विधि
इस दिन भीष्म पितामह को जल और तिल अर्पित किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भीष्म अष्टमी के दिन पूरी विधि-विधान से भीष्म पितामह की पूजा करनी चाहिए।
आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी की पूजा विधि:
- इस दिन प्रातःकाल जल्दी उठें और अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करें। यदि संभव हो, तो किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें।
- गंगा नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर के स्नान जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
- स्नान के बाद, अपने हाथ में जल लेकर तर्पण करें। तर्पण करते समय अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें।
- यदि आप यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करते हैं, तो इसे अपने दाहिने कंधे पर धारण करें और इस प्रकार तर्पण करें। तर्पण के समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:
“ॐ भीष्माय स्वधा नमः। पितृपितामहे स्वधा नमः।”
- विधिपूर्वक तर्पण पूर्ण होने के बाद, यज्ञोपवीत को पुनः बाएं कंधे पर धारण करें।
- इसके बाद गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य अर्पित करें।
इस प्रकार, पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से भीष्म अष्टमी के दिन पूजा और तर्पण करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में पवित्रता और शांति का वास होता है।
कथा
भीष्म अष्टमी के इस पावन अवसर पर आइए, भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा और इच्छा मृत्यु के वरदान से जुड़ी इस कथा को सुनें और समझें।
हस्तिनापुर के राजा शंतनु का विवाह देवी गंगा से हुआ था। उनके एक पुत्र हुए, जिनका नाम देवव्रत रखा गया। भीष्म पितामह का बचपन का नाम देवव्रत था। देवव्रत ने महर्षि परशुराम से शिक्षा प्राप्त की और एक कुशल योद्धा बने। इसके बाद उन्हें हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया गया।
दूसरी ओर, राजा शंतनु सत्यवती नामक एक कन्या से विवाह करना चाहते थे। विवाह के प्रस्ताव पर सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी कि उनकी बेटी से उत्पन्न पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा। इस शर्त से राजा शंतनु धर्म संकट में पड़ गए। तब देवव्रत ने अपने पिता के प्रति अपनी भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए यह प्रण लिया कि वे कभी विवाह नहीं करेंगे और न ही हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बनेंगे।
देवव्रत की इस प्रतिज्ञा को भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से जाना जाता है। इस महान प्रतिज्ञा के कारण उन्हें भीष्म कहा गया। उनके पिता शंतनु ने प्रसन्न होकर भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। इसके बाद राजा शंतनु का विवाह सत्यवती से हुआ।
जब महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ, तो भीष्म पितामह कौरवों की ओर से सेनापति बने। जब तक भीष्म पितामह युद्ध में थे, पांडव विजय प्राप्त नहीं कर सके। तब एक रणनीति के तहत शिखंडी ने उन्हें युद्ध के लिए चुनौती दी। शिखंडी को देखकर भीष्म पितामह ने अपना धनुष नीचे रख दिया। तब अर्जुन ने उन पर बाणों की वर्षा की और उन्हें घायल कर दिया।
इस प्रकार, भीष्म पितामह शरशय्या पर लेट गए और उत्तरायण में माघ शुक्ल अष्टमी के दिन उन्होंने प्राण त्याग दिए। भीष्म अष्टमी के दिन पितामह का श्राद्ध किया जाता है।