हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। आमलकी एकादशी का व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सौ तीर्थ स्थलों के दर्शन का फल प्राप्त होता है। आमलकी एकादशी का व्रत करने से सभी यज्ञों के समान फल मिलता है, व्यक्ति को सुख, राजयोग और धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन आंवले का वृक्ष मंदिर में अवश्य लगाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
2025 में आमलकी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
साल 2025 में आमलकी एकादशी सोमवार, 10 मार्च को मनाई जाएगी।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 9 मार्च 2025 को प्रातः 7:40 बजे।
- एकादशी तिथि समाप्त: 10 मार्च 2025 को प्रातः 7:35 बजे।
व्रत का शुभ मुहूर्त
- 10 मार्च 2025 को सुबह 7:35 बजे से।
- 11 मार्च 2025 को सुबह 6:36 बजे से 8:58 बजे तक।
- कुल व्रत अवधि: 2 घंटे 22 मिनट।
आमलकी एकादशी: पूजा सामग्री, विधि और नियम
पूजा सामग्री
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्रियों की आवश्यकता होती है:
- भगवान विष्णु और शालिग्राम की मूर्ति
- आंवला फल (विशेष रूप से)
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और चीनी)
- तुलसी के पत्ते
- पीला वस्त्र
- धूप, दीप, और अगरबत्ती
- चंदन और हल्दी
- गंगाजल
- मौसमी फल और मिठाई
- फूल (विशेष रूप से पीले फूल)
- नौ रत्नों से भरा कलश
- अक्षत (चावल)
- शुद्ध घी का दीपक
- थाली और घंटी
आमलकी एकादशी व्रत के लिए नियम
- दशमी तिथि से नियमों का पालन करें:
- दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन करना आरंभ करें।
- अष्टमी तिथि को केवल सात्विक भोजन करें।
- सूर्यास्त के बाद भोजन न करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें और भगवान नारायण का ध्यान करें।
- तिथि के दिन परहेज करें:
- चावल, उड़द, चना, मूंग, मसूर, प्याज, लहसुन, शराब और किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन न करें।
द्वादशी तिथि का महत्व और व्रत तोड़ने का सही समय
द्वादशी तिथि के पहले प्रहर में व्रत तोड़ना उचित नहीं माना जाता। व्रत को दोपहर के बाद तोड़ना चाहिए, तभी यह पूर्ण माना जाता है। व्रत की कथा सुनना और उसका पालन करना अनंत पुण्यफल प्रदान करता है।
आमलकी एकादशी पूजा विधि
- भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
- स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें।
- घी का दीपक जलाएं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- पूजा के दौरान एक नौ रत्नों से भरा कलश आंवले के पेड़ के नीचे रखें।
- यदि आंवला का पेड़ उपलब्ध न हो, तो आंवला फल को भगवान विष्णु को भोग लगाएं।
- धूप, दीप, चंदन, होली के फूल, अक्षत आदि से आंवले के पेड़ की पूजा करें।
- पेड़ के नीचे किसी गरीब, जरूरतमंद या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
- अगले दिन द्वादशी को स्नान आदि कर भगवान विष्णु की पूजा करें और ब्राह्मण को कलश, वस्त्र और आंवला का दान दें। इसके बाद अन्न ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
इस प्रकार, आमलकी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
आमलकी एकादशी का महत्व
पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि जब भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना की, तो उन्होंने आंवला वृक्ष को भी उत्पन्न किया। इस वृक्ष के स्मरण मात्र से गोदान का फल प्राप्त होता है। आंवला फल के सेवन से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
आंवला एकादशी का व्रत फाल्गुन मास में शिवरात्रि और होली के बीच मनाया जाता है। इस दिन आंवला वृक्ष का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु को आंवला फल अत्यधिक प्रिय है। आंवला वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना गया है।
स्कंद पुराण में आमलकी एकादशी का वर्णन करते हुए बताया गया है कि यह व्रत सभी पापों को नष्ट करता है और व्यक्ति को सौभाग्यशाली बनाता है। ब्रह्मांड पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से दुःख समाप्त होते हैं और अशुभता शुभता में परिवर्तित हो जाती है।
पौराणिक कथा: व्रत कथा
महर्षि वशिष्ठ ने राजा को बताया, “हे राजन, मैं आपको आंवला एकादशी व्रत की कथा सुनाता हूं। यह व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ है और मोक्ष प्रदान करता है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस व्रत का फल एक हजार गायों के दान के बराबर है। अब सुनिए इसकी पौराणिक कथा।”
आमलकी एकादशी: एक पौराणिक कथा
प्राचीन समय में एक नगर था जिसका नाम वैदिक था। इस नगर में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र चारों वर्ण अत्यंत सुखी और संतुष्ट थे। नगर में हमेशा उनके मंगलमय स्वर गूंजते रहते थे। वहां कोई पापी, दुष्ट या नास्तिक नहीं था।
इस नगर में चैत्र रथ नामक एक प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा का शासन था। यह राजा अत्यंत विद्वान और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। राज्य में कोई भी गरीब या कंजूस नहीं था। वहां के सभी निवासी भगवान विष्णु के भक्त थे। वहां के लोग आंवला एकादशी का व्रत बड़े ही श्रद्धा और भक्तिभाव से करते थे।
फाल्गुन मास की आंवला एकादशी का पर्व
एक बार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की आंवला एकादशी आई। राजा अपने प्रजा के साथ मंदिर गए। वहां उन्होंने कुंभ स्थापित कर, धूप, दीप, नौ वैद्य, पंचरत्न छत्र आदि से विधिपूर्वक एकादशी का पूजन किया। उन्होंने आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की स्तुति की।
राजा द्वारा आंवला वृक्ष की पूजा
राजा ने आंवला वृक्ष की पूजा करते हुए कहा,
“हे धात्री, आप ब्रह्मा का स्वरूप हैं। आप ब्रह्मा से उत्पन्न हुए हैं और सभी पापों का नाश करने वाले हैं। मैं आपको नमन करता हूं। मेरी भेंट स्वीकार करें। आप श्रीरामचंद्र जी द्वारा सम्मानित हैं। मैं आपकी पूजा करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि मेरे सारे पाप दूर हों।”
पापी शिकारी का आगमन
उस रात सभी भक्तों ने मंदिर में जागरण किया। उसी समय, एक शिकारी वहां आया। वह बहुत पापी और दुष्ट था, जो अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जानवरों का शिकार करता था। उस दिन शिकारी भूखा और प्यासा था। वह मंदिर के एक कोने में बैठ गया और भगवान विष्णु और एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा।
इस प्रकार, शिकारी ने पूरी रात जागरण किया और सुबह अपने घर लौट गया। सभी भक्त भी अपने-अपने घर चले गए। कुछ समय बाद शिकारी की मृत्यु हो गई। आंवला एकादशी के व्रत और जागरण के प्रभाव से शिकारी अगले जन्म में राजा के घर में पैदा हुआ।
राजा वसुरत का जन्म और साम्राज्य की स्थापना
पिछले जन्म के आंवला एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से शिकारी ने अगले जन्म में एक राजा के रूप में जन्म लिया। उसका नाम वसुरत रखा गया। जब वह बड़ा हुआ और राजा बना, तो उसके पास एक विशाल सेना थी। उसका राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण था। उसकी शक्ति चंद्रमा के समान, पराक्रम भगवान विष्णु के समान और स्थिरता पृथ्वी के समान थी।
वन में शिकार के दौरान मार्ग भटकना
एक दिन राजा वसुरत शिकार के लिए जंगल गए। भगवान की इच्छा से वह जंगल में रास्ता भटक गए। दिशा न जानने के कारण उन्होंने एक आंवला पेड़ के नीचे विश्राम किया और सो गए।
उसी समय पहाड़ से डाकुओं का एक समूह वहां आ गया। उन्होंने राजा को अकेला देखा और चिल्लाने लगे, “मारो, मारो।” डाकुओं ने कहा, “इस राजा ने हमारे माता-पिता, पुत्रों और सभी रिश्तेदारों को मार दिया है। इसे देश से निकाल दिया गया है, इसलिए हमें इसे मार डालना चाहिए।” यह कहते हुए डाकुओं ने राजा पर हथियारों से हमला करना शुरू कर दिया।
डाकुओं का पराजय और देवी का प्रकट होना
जब डाकुओं ने राजा पर हमला किया, तो ऐसा लगा जैसे उनके हथियार राजा के शरीर से टकराते ही फूल बन गए हों। उनके सभी हथियार उल्टे उन पर ही वार करने लगे। इससे सभी डाकू बेहोश हो गए। उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य देवी प्रकट हुईं।
वह देवी अत्यंत सुंदर थीं और सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों से सुसज्जित थीं। उनकी आंखों से लाल अग्नि की किरणें निकल रही थीं। देवी ने तुरंत डाकुओं पर आक्रमण किया और सभी को मार डाला।
राजा की जिज्ञासा और आकाशवाणी
जब राजा वसुरत जागे, तो उन्होंने डाकुओं को मृत पाया। उन्होंने सोचा, “इन दुश्मनों को किसने मारा? इस जंगल में मेरा शुभचिंतक कौन है?” तभी आकाश से एक दिव्य वाणी आई, “हे राजन, इस संसार में तुम्हारी रक्षा भगवान विष्णु के अलावा और कौन कर सकता है?”
आकाशवाणी सुनने के बाद राजा अपने राज्य लौट आए और खुशी-खुशी शासन करने लगे।
इस प्रकार, यह आमलकी एकादशी व्रत की कथा है। जो भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं और अंत में वह विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
आंवला वृक्ष में देवताओं का वास
आंवला वृक्ष के हर भाग में देवताओं का निवास होता है:
- जड़ में विष्णु, ब्रह्मा और शिव का वास।
- शाखाओं में ऋषि-मुनियों का निवास।
- टहनियों में सभी देवता।
- पत्तियों में वसु।
- फूलों में मरुतगण।
- फलों में सभी प्रजापति।
इसलिए, आंवला वृक्ष का पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है।
आमलकी एकादशी के लाभ
- सभी पापों का नाश होता है।
- स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- अशुभता दूर होकर सौभाग्य बढ़ता है।
- भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
सार
इस प्रकार, यह व्रत व्यक्ति को भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान की आराधना करने की प्रेरणा देता है।आमलकी एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट होते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।