अक्षय तृतीया जिसे ‘अक्ती’ या ‘अखाती तीज’ के नाम से भी जाना जाता है, सनातन धर्म में बहुत ही शुभ और पुण्य तिथि मानी जाती है।
यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पड़ती है और बिना मुहूर्त के किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने के लिए इसे सबसे उत्तम माना जाता है।
इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु, कुबेर और परशुराम जी की विशेष पूजा की जाती है।
इस लेख में हम अक्षय तृतीया 2025 की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत, धार्मिक मान्यता और विशेष उपायों का विस्तार से वर्णन करेंगे।
अक्षय तृतीया का धार्मिक और पौराणिक महत्व
अक्षय तृतीया का अर्थ है वह तिथि जिस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल अक्षय यानी कभी नष्ट न होने वाला हो।
पुराणों के अनुसार इसी दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी और भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में अवतार भी इसी दिन लिया था।
मान्यता है कि इस दिन किए गए पवित्र स्नान, दान, जप और तप का फल करोड़ों गुना बढ़ जाता है।
देवी लक्ष्मी की कृपा से धन, सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य जीवन भर शुभ फल देता है।

पूजा से पहले की तैयारी
अक्षय तृतीया पर पूजा करने से पहले घर की सफाई करनी चाहिए।
पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और परशुराम जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
चंदन, अक्षत, हल्दी, केसर, फूल, पंचामृत, धूप, दीप, फल, मिठाई, तांबे का लोटा, कलश आदि पूजन सामग्री एकत्रित करें।
व्रत रखने वालों को सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा की तैयारी करें।
पूजा करते समय पीले वस्त्र पहनना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया 2025: तिथि, मुहूर्त और पंचांग विवरण
वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।
तृतीया तिथि प्रारंभ: 29 अप्रैल को शाम 5:31 बजे
तृतीया तिथि समाप्त: 30 अप्रैल को दोपहर 2:12 बजे
शुभ पूजन मुहूर्त: 30 अप्रैल को सुबह 5:58 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक
इस समय अवधि में पूजा, जप, दान, व्रत और धार्मिक कार्य अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, वाहन या सोना खरीदना भी इस मुहूर्त में फलदायी होता है।
इस दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाएगी।
पूजा विधि और मंत्र
पूजा की शुरुआत में भगवान गणेश का आह्वान करें और फिर नवग्रहों की पूजा करें।
इसके बाद भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
उन्हें पीले फूल, चंदन, तुलसी के पत्ते, धूपबत्ती और नैवेद्य अर्पित करें।
परशुराम जी को चंदन, दूर्वा और कुल्हाड़ी भी अर्पित करें।
लक्ष्मी मंत्र “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” और विष्णु मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का 108 बार जाप करें।
शंख में जल भरकर पूजा में प्रयोग करें।
आरती के बाद अपने परिवार, धन और जीवन की समृद्धि के लिए प्रार्थना करें।
अंत में परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें।
व्रत और उपवास की विधि
अक्षय तृतीया का व्रत संकल्प, तप और संयम का प्रतीक है।
व्रती को इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
यह व्रत निर्जल, फलाहार या जल-फल के रूप में किया जा सकता है। पूरे दिन सात्विक भोजन और विचारों का पालन करें।
व्रत के दौरान धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें, जैसे विष्णु सहस्रनाम, श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र और परशुराम कथा।
संध्या के समय पूजा करें, दीपदान करें और फलाहार के साथ व्रत का समापन करें।
यह व्रत जीवन में समृद्धि, धन-संपत्ति में वृद्धि तथा सुख-शांति प्रदान करता है।
अक्षय तृतीया के विशेष दान और पुण्य
इस दिन दान करने का बहुत महत्व है।
तांबा, जल से भरा घड़ा, चावल, गेहूं, घी, वस्त्र, छाता, जूते, फल, मिठाई, सोना और चीनी का दान पुण्यकारी माना जाता है।
खास तौर पर ब्राह्मणों को दान करने से जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती।
गौ सेवा, अन्न दान और जल सेवा से भी अक्षय पुण्य मिलता है।
कुछ लोग इस दिन जरूरतमंदों को आम के पत्ते, बेलपत्र, पीपल या तुलसी के पौधे से बने तोरण भी दान करते हैं।
संभव हो तो मंदिर में दीपदान या जलकुंभी रखें।
ये उपाय जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं।
अक्षय तृतीया पर किए जाने वाले अन्य शुभ कार्य
अक्षय तृतीया पर विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन, भूमि पूजन, दुकान शुरू करना, नया व्यापार, आभूषण खरीदना, सोना या चांदी खरीदना, वाहन खरीदना – ये सभी कार्य अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करने और सोना या चांदी खरीदने से घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती हैं।
कृषि से जुड़े लोग इस दिन बीज बोते हैं। विद्यार्थी नए पाठ्यक्रम शुरू करते हैं।
इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य जीवन भर सकारात्मक परिणाम देता है।
यह तिथि अपने आप में शुभता का प्रतीक है।
निष्कर्ष
अक्षय तृतीया का पर्व एक दिव्य अवसर है जो जीवन में अनंत शुभता, समृद्धि और संतुलन लाता है।
सही तरीके से पूजा, व्रत और दान करने से व्यक्ति को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
2025 में यह पर्व 30 अप्रैल को पड़ रहा है और यह दिन नई शुरुआत, आध्यात्मिक शुद्धि और आर्थिक प्रगति के लिए बहुत लाभकारी है।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करके हम अपने जीवन में स्थिरता, सुख और समृद्धि का आह्वान कर सकते हैं।
यह पर्व धर्म और संस्कृति की जड़ों को मजबूत करने का भी एक बेहतरीन अवसर है।