अगहन मास बृहस्पति व्रत का महत्व।
कार्तिक मास के बाद पड़ने वाले अगहन (मार्गशीर्ष) मास के प्रत्येक गुरुवार को धन की देवी श्री महालक्ष्मी जी के बड़े विधि-विधान से पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। अगहन मास में इस पूजा का प्रचलन काफी पुराना है। घरों में महिलाएं दिनभर व्रत धारण करती है तथा दोपहर के वक्त अगहन बृहस्पति की कथा सुनती है। इस पूजन से माता महालक्ष्मी से धन-धान्य में वृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन घर के मुख्य द्वार में दीपो को प्रज्वलित किया जाता है। कहा जाता है कि इस माह में श्री महालक्ष्मी जी की पूजा से सभी कष्ट दूर होते हैं। प्रत्येक गुरुवार को अलग-अलग पकवानों, पीले वस्त्रों व पीले फूल चढ़ाने का भी महत्व है।
अगहन मास बृहस्पति व्रत की पूजन सामग्री।
अगहन बृहस्पति व्रत की पूजन सामग्री निम्नलिखित है-
श्री महालक्ष्मी जी की फोटो, एक जल भरा कलश नारियल केले व आम के पत्ते, आवले की डंगाल, रखिया, धान की बालियां, धन से भरी हुई टोकरी, गंगाजल, सिंदूर, कुंकुम, अक्षत, हल्दी, पीला चावल, मौली, फल, कमल, गुलाब व गेंदे का फूल, दुबी, चना दाल, पंचामृत, पंचमेवा, भोग व नैवेद्य, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, सुहाग का सामान।
अगहन मास बृहस्पति व्रत के नियम।
अगहन बृहस्पति व्रत के नियम निम्नलिखित है।
- यह पूजा अगहन मास के प्रथम गुरुवार से शुरू की जाती है तथा माह के अंतिम गुरुवार को समापन किया जाता है।
- व्रत करने वाले स्त्री व पुरुष दोनों ही मन से स्वस्थ होकर महालक्ष्मी जी का व्रत करें तथा व्रत की कथा पढ़े।
- प्रथम गुरुवार को छोड़ बचे गुरुवार के दिन आठ सुहागिनों या कुंवारी कन्याओं को बुलाकर उन्हें सम्मान पूर्वक आसन पर बिठाकर महालक्ष्मी का रूप समझकर हल्दी व कुमकुम लगायें और पूजा के बाद प्रसाद व फल वितरण कर कथा की एक प्रति देकर उन्हें प्रणाम करें।
- जिस दिन व्रत हो, उपवास करें । उपवास में दूध, फलाहार व सुखे मेवे लें। रात को भोजन से पहले देवी को भोग लगाए एवं परिवार के साथ भोजन करें।
- किसी दूसरी पूजा का उपवास गुरुवार को पड़ने पर भी यह पूजा की जा सकती है।
अगहन मास बृहस्पति व्रत की पूजन विधि।
पूजा की तैयारी व्रत के एक दिन पूर्व ही शुरू कर दी जाती है। घर को गोबर से लिपा या फिर गीले कपड़े से पोछा जाता है। घर के मुख्यद्वार से लेकर आंगन व पूजा स्थल तक चावल के आटे के घोल से आकर्षक अल्पनाएं बनाई जाती है। इन अल्पनाओं में श्री महालक्ष्मी जी के पांव विशेष रूप से बनाए जाते हैं। व्रत के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त हो स्ननादि के बाद पूजा स्थल को स्वच्छ कर एक चौकी में कपड़ा रखकर उसके बीच में चावल रख उस पर जल भरा एक कलश रखे। उसमें सुपारी, दूबी व कुछ पैसे डालें तथा कलश में ५-७ आम के पत्ते डालकर बीच में नारियल रखें और महालक्ष्मी जी की फोटो उसमें लगायें। कलश पर हल्दी, कुमकुम लगायें, साथ ही महालक्ष्मी जी की प्रतिमा या फोटो को पूर्व दिशा की ओर मुंह रखते हुए साथ में ही एक सुपारी गणेश स्वरूप मानकर स्थापना करें व माता के सिंहासन को आंवला व आंवले की डाली, रखिया व धान की बोलियों से सजायें। व्रत कथा भी सामने रख फिर पूजा शुरू करें- मां वह शरीर शुद्धि हेतु ऊँ केशवय नमः, ऊँ नारायणाय नमः, व ऊँ माधवाय नमः कहते हुए तीन बार आचरमण करें फिर ऊँ हृषिकेशाय नम कहते हुए हाथ धो ले। फिर पूजा का संकल्प करने हेतु हाथ में फूल व अक्षत लेकर तिथि वार आदि कहे, मैं अपने परिवार में धन-धान्य में वृद्धि, सुख, ऐश्वर्य व मनवांछित फल की प्राप्ति हेतु अगहन मास के बृहस्पतिवार का व्रत रखूंगा या रखूंगी तथा महालक्ष्मी जी का विधिवत पूजन करूंगा या करूंगी, ऐसा कहते हुए संकल्प करें। सर्वप्रथम श्री गणेश जी का ध्यान करें तत्पश्चात पञ्चोपचार विधि से उनका पूजन करें फिर महालक्ष्मी जी को फूलों से जल का छींटा देते हुए स्नान करायेंऔर पीलें वस्त्र में सुहाग का सामान चढ़ाये। हल्दी, कुमकुम व अक्षत लगायें, पुष्प- हार अर्पित कर धूप, दीप जलाए तथा चना दाल-गुड, मेवा, भोग के लिए बने व्यंजन नैवेद्य के साथ पान व दक्षिणा चढ़ाएं। फिर देवी को प्रणाम कर व्रत कथा का पाठ शुरू करें। कथा की समाप्ति पर देवी की आरती करें। उसके बाद महालक्ष्मी जी को वायन दान करते हुए हाथ जोड़कर कहें- हे महालक्ष्मी! हे महादेवी! है सब कष्टो को दूर करने वाली! मैं आपका अगहन मास बृहस्पतिवार का जो व्रत किया है वह आपकी कृपा से पूर्ण हो जाए, ऐसा कहकर प्रार्थना करें तथा चना दाल-गुड, सुहाग का सामान व विभिन्न पकवानों के साथ आपको वायनदन देता/ देती हूं। आप मुझ पर प्रसन्न हो। रात को फिर देवी की पूजा करें व भोग लगायें तथा गौ माता के लिए भी अन्न रखें इसके बाद परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर भोजन करें। दूसरे दिन संपूर्ण पूजन व वायन दान की सामग्री को ब्राह्मण को देवें। जिस पर पूजा की गई थी वहां पर हल्दी, कुमकुम छिड़कर प्रणाम करें। इसी प्रकार अगहन मास के हर गुरुवार को पूजा करें। व्रत करने वाले चाहे तो महालक्ष्मी जी के द्वादशनाम स्तोत्र, महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र व चालीसा आदि का भी पाठ कर सकते हैं।
(अगहन मास बृहस्पतिवार व्रत की पूजा विधि समाप्त)
।।बोलो महालक्ष्मी माता की जय।।