माना जाता है कि किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत भगवान श्री गणेश की पूजा से की जाती है| बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश को समर्पित है| विघ्नहर्ता गणेश जी को विघ्न विनाशक के नाम से भी जाना जाता है| मान्यता है कि चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा आराधना करने से उन्हें जल्दी ही प्रसन्न किया जा सकता है| श्री गणेश जी का पूजन करने से जीवन में ऊर्जा का संचार होता है एवं सुख शांति बनी रहती है|
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अगहन गणेश चौथ व्रत कथा
पार्वती बोली- हे पुत्र अगहन मास में किस गणेश की पूजा करनी चाहिए? गणेश जी बोले- दुर्गे ! इस मास में श्री गजानन की पूजा करनी चाहिए। दिन भर निराहार रहकर ब्राह्मण को भोज करावे, चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें, पूजन के अंत में तिल, जौ, धूप आदि से हवन करें। त्रेता में दशरथ नाम के धर्मात्मा राजा थे। उन्हें एक ब्राह्मण ने श्राप दिया था कि जिस तरह पुत्र शोक में मेरी मृत्यु हो रही है, उसी प्रकार तुम्हारी भी होगी। श्राप सुन राजा को बड़ा दुख हुआ। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। उसके प्रभाव से जगतपति श्री राम न रूप में प्रकट हुए और लक्ष्मी उनकी स्त्री हुई। पिता की आज्ञा से राम लक्ष्मण सीता वन को गए। रावण ने सीता जी का हरण किया और राम ने राक्षसों का वध करके जनक नंदिनी को प्राप्त किया। सीता जी के वियोग में श्री राम सीता को ढूंढते हुए रियष्मूक पर्वत पर पहुंचे। वहीं पर सुग्रीव से मित्रता की। हनुमान के साथ वानर सीता की खोज करने लगे, वहां वानरों ने संपाती को देखा, संपाति बोला- तुम कौन हो और इस वैन में क्यों आए हो? वानरों ने सीता हरण तथा जटायु मरण की कथा कही। संपाति बोला कि भाई तुम सब धन्य हो, जिसने रामकाज में अपना शरीर त्याग दिया। समुद्र के पार राक्षसों की नगरी लंका है। देखो, वह अशोक वृक्ष के नीचे जानकी जी बैठी हुई है। मुझे सब दिखाई पड़ रहा है। हनुमान जी इस कार्य को श्री गणेश की कृपा से तुम कर सकते हो। हनुमान जी, तुम संकट नाशक श्री गणेश चौथ व्रत करो। श्री गणेश की कृपा से तुम जगत जननी सीता की खोज लगा सकोगे और क्षण भर में समुद्र पार हो जाओगे। हनुमान जी ने गणेश चौथ व्रत किया और उनकी कृपा से क्षण भर में सागर पर हो गए। श्री कृष्णा बोले- राजन ! तुम भी इस व्रत को करो और संग्राम में शत्रुओं को जीतकर अपना राज्य प्राप्त करो। युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण के वचनों को सुनकर व्रत कर अपने राज्य को प्राप्त किया।
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।। अगहन गणेश चौथ व्रत कथा समाप्त ।।