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Reading: June Pradosh Vrat: 7 या 8 जून? जानें प्रदोष व्रत की सही तिथि व पूजन विधि
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Marg Darshan > Blog > Puja Vidhi > June Pradosh Vrat: 7 या 8 जून? जानें प्रदोष व्रत की सही तिथि व पूजन विधि
Puja VidhiVrat

June Pradosh Vrat: 7 या 8 जून? जानें प्रदोष व्रत की सही तिथि व पूजन विधि

Anushka Mishra
Last updated: May 13, 2025 12:07 pm
By Anushka Mishra
8 Min Read
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हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को बहुत ही पवित्र और फलदायी व्रत माना जाता है। यह व्रत हर माह की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।

Contents
प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्तप्रदोष व्रत पूजा विधिरवि प्रदोष व्रत का महत्वप्रदोष व्रत से जुड़े नियम और सावधानियांप्रदोष का व्रत रखने के लाभ और धार्मिक मान्यताएंनिष्कर्ष: शिव भक्ति का सर्वोच्च व्रतFAQs

“प्रदोष” का अर्थ है दिन और रात के मिलन का समय।

इस संध्या काल में भगवान शिव बहुत दयालु होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

प्रदोष व्रत में शिवलिंग का अभिषेक, बेलपत्र चढ़ाना, शिव चालीसा का पाठ और आरती विशेष रूप से की जाती है।

यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि मानसिक शांति, रोग मुक्ति और समृद्धि पाने के लिए भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

शिव भक्तों के लिए यह दिन बहुत ही शुभ होता है।

प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्त

वर्ष 2025 में अगला रवि प्रदोष व्रत 8 जून, रविवार को मनाया जाएगा।

यह व्रत विशेष फलदायी तब होता है जब यह रविवार को पड़ता है, जिसे ‘रवि प्रदोष’ कहा जाता है।

वैदिक पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि 8 जून को सुबह 7:17 बजे से शुरू होकर 9 जून को सुबह 9:35 बजे समाप्त होगी।

वहीं, प्रदोष काल का शुभ समय 8 जून को शाम 7:32 बजे से 9:29 बजे तक रहेगा।

इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है।

प्रदोष काल में व्रत खोलना और आरती करना शास्त्रों के अनुसार है।

इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को पूरे दिन उपवास रखना चाहिए और शाम को पूजा करनी चाहिए।

प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष की पूजा विधि बहुत सरल लेकिन प्रभावी है।

व्रत करने वाले को सुबह स्नान करके भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

पूरे दिन फलाहार या निर्जल व्रत रखा जा सकता है।

प्रदोष काल (शाम का समय) में शिवलिंग का गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और शुद्ध जल से अभिषेक किया जाता है।

बेलपत्र, धतूरा, आक, सफेद फूल और भस्म अर्पित की जाती है।

इसके बाद शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और शिव पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें।

पूजा के अंत में घी का दीपक जलाकर आरती करें और नैवेद्य अर्पित करें।

कुछ लोग रात्रि जागरण करते हैं और ‘शिव नाम’ का जाप करते हैं जो बहुत पुण्यदायी होता है।

रवि प्रदोष व्रत का महत्व

जब प्रदोष रविवार को पड़ता है तो यह और भी खास हो जाता है।

रवि प्रदोष में सूर्य देव और भगवान शिव दोनों का प्रभाव एक साथ होता है।

यह व्रत विशेष रूप से स्वास्थ्य, दीर्घायु और पारिवारिक सुख प्राप्ति के लिए किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि रवि प्रदोष सूर्य संबंधी दोषों को दूर करता है और आत्मविश्वास, तेज और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

यह व्रत मानसिक तनाव और रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

जो लोग नियमित रूप से प्रदोष व्रत करते हैं उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।

सूर्य और शिव की संयुक्त कृपा से व्यक्ति का जीवन उज्जवल और रोग मुक्त हो जाता है।

प्रदोष व्रत से जुड़े नियम और सावधानियां

प्रदोष रखते समय कुछ नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।

व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ही करें, अगर फलाहार करें तो करें।

घर को साफ रखें और शिव मंदिर जाने से पहले स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।

पूजा में कभी भी तुलसी के पत्ते, केतकी के फूल, हल्दी या काले तिल का प्रयोग न करें।

प्रदोष काल से पहले ही सारी पूजन सामग्री तैयार रखें और इसी समय पूजा करें।

क्रोध, छल-कपट और बुरे विचारों से बचें, क्योंकि यह व्रत आत्मशुद्धि और मन की शांति के लिए रखा जाता है।

हो सके तो पूरे दिन मौन रहकर शिव का नाम जपें और जरूरतमंदों को दान दें। इससे व्रत का पुण्य और बढ़ जाता है।

शंकर पार्वती

प्रदोष का व्रत रखने के लाभ और धार्मिक मान्यताएं

प्रदोष को भगवान शिव की कृपा पाने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है।

मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक और नियमित रूप से करने से पापों का नाश होता है और सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।

जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रदोष करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह व्रत विवाह में आने वाली रुकावटों, आर्थिक संकट और पारिवारिक क्लेशों को भी दूर करता है।

शिवपुराण और स्कंदपुराण में भी इस व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है।

प्रदोष काल में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु भी शिव की पूजा करते हैं, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

प्रदोष व्रत व्यक्ति के जीवन में शुभता, समृद्धि और शांति लाता है।

निष्कर्ष: शिव भक्ति का सर्वोच्च व्रत

प्रदोष का व्रत एक ऐसा अवसर है, जब भक्त मन, वचन और कर्म से भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

यह व्रत केवल उपवास का ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और आस्था का भी प्रतीक है।

नियमित रूप से प्रदोष के व्रत करने से शिव की कृपा से जीवन में संतुलन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।

खासकर रवि प्रदोष जैसे अवसर पर, जब शिव और सूर्य दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है, तो यह व्रत अत्यंत प्रभावी माना जाता है।

इसलिए इस व्रत को भक्ति और नियम के साथ करें तथा शिव नाम का स्मरण कर आत्मिक शांति प्राप्त करें।

FAQs

प्रदोष के व्रत में प्रदोष काल का क्या महत्व है?

उत्तर: प्रदोष काल (शाम का गोधूलि समय) भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का विशेष समय माना जाता है। इस समय पूजा करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।

रवि, सोम और शनि प्रदोष में क्या अंतर है?

उत्तर: इन व्रतों का नाम उस दिन के अनुसार रखा गया है जिस दिन वे आते हैं।

रवि प्रदोष दीर्घायु और तेजस्विता का विशेष लाभ देता है, सोम प्रदोष मानसिक शांति देता है और शनि प्रदोष बाधाओं को दूर करने का विशेष लाभ देता है।

क्या महिलाएं प्रदोष का व्रत रख सकती हैं?

उत्तर: हां, महिलाएं भी इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रख सकती हैं। उन्हें भी शिव-पार्वती की पूजा विधि के अनुसार करनी चाहिए।

एक वर्ष में कितनी बार प्रदोष व्रत आता है?

उत्तर: प्रदोष का व्रत हर महीने में दो बार आता है – शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को। यानि साल में करीब 24 बार।

प्रदोष के व्रत में क्या नहीं करना चाहिए?

उत्तर: क्रोध, झूठ, कटु वचन, मांस-मदिरा और मांसाहारी भोजन से बचें। पूजा में तुलसी, हल्दी या केतकी का प्रयोग न करें।

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ByAnushka Mishra
An enthusiast author at Marg Darshan who holds the proficiency in the fields of Finance, Ethics and Sports.
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