निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी का व्रत हिंदुओं में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। वर्ष में 24 एकादशियां आती है किंतु इन सब में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इस एक एकादशी का व्रत रखकर पूरे साल भर की एकादशी का फल प्राप्त होता है। इसे पांडव या भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
आइये सुनते हैं निर्जला एकादशी व्रत कथा।

एक बार पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीमसेन ने व्यास जी से कहा -हे परम बुद्धिमान पितामह मेरी बात सुनिए, राजा युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव भी एकादशी को कभी भोजन नहीं करते और मुझे भी हमेशा यही कहते हैं की भीमसेन एकादशी को तुम भी कुछ नहीं खाया करो।
परंतु मैं उनसे यही कहता हूं कि मुझे भूख बर्दाश्त नहीं होती। मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूं दान भी दे सकता हूं परंतु भोजन के बिना मैं नहीं रह सकता।
इस पर व्यास जी ने कहा है भीमसेन यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो हर महीने की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो।
भीम ने कहा हे पितामह मैं तो पहले ही कह चुका हूं मैं भूख सहन नहीं कर सकता यदि वर्ष भर में कोई एक व्रत हो तो मैं उसे रख सकता हूं। क्योंकि मेरे पेट में वक्र नाम वाली अग्नि है उसे मैं भोजन करके ही शांत कर सकता हूं।
भोजन करने से वह शांत रहती है इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन के रहना मेरे लिए कठिन है। इसके बाद आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए वर्ष में सिर्फ एक ही बार करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।
यह सुनकर श्री व्यास जी ने कहा है पुत्र बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाए हैं। जिसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
इसी प्रकार शास्त्रों में बताया गया है कि दोनों पक्षों की एकादशी का व्रत करने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। व्यास जी के वचन सुनकर भीमसेन नर्क में जाने से भयभीत हो गए और कहने लगे अब क्या करूं हर महीने मैं दो व्रत तो मैं नहीं कर सकता लेकिन पूरे वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न में अवश्य कर सकता हूं।
इसलिए पूरे वर्ष में एक दिन व्रत करने से मेरी मुक्ति हो जाए ऐसा कोई व्रत बताइए। यह सुनकर श्री व्यास जी कहने वालों की वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है इसका नाम निर्जला है।
तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो इस एकादशी के व्रत मैं स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में 6 मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान जैसा हो जाता है।
इस दिन भोजन भी नहीं करना चाहिए क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि निर्जला एकादशी के सूर्य उदय से लेकर द्वादशी के सूर्य उदय तक अगर कोई जल ग्रहण न करें तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है।
द्वादशी को सूर्य उदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए इसके बाद भूखे और सच्चे ब्राह्मण को भोजन कराकर आपको भी भोजन कर लेना चाहिए।
इस एकादशी का फल पूरे वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।
व्यास जी कहने लगे हे भीमसेन मुझे यह बात स्वयं भगवान ने बताई है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थो और दोनों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य के निर्जल रहने से उसे समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।
जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय दूध जाकर नहीं ठहरते उन्हें तो भगवान के पार्षद पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग ले जाते हैं।
अतः संसार में सर्वश्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। पूरे यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। इस दिन “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करना चाहिए और हो सके तो गोदान भी अवश्य करना चाहिए।
इस प्रकार श्री व्यास जी की आज्ञा के अनुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि है भगवान आज मैं निर्जला व्रत करता हूं दूसरे दिन भोजन करूंगा। मैं इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करूंगा अतः आपकी कृपा से मेरे सभी पाप नष्ट हो जाए।
इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढककर दान करना चाहिए। जो लोग इस दिन यज्ञ आदि करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त हो जाता है।
जो मनुष्य इस दिन अन्य खाते हैं वह चांडाल के समान है वे अंत में नर्क में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है चाहे वह ब्रह्म हत्यारा हो, मदिरा पान करता हो, चोरी करता हो या गुरु के साथ द्वेष करता हो इस व्रत के प्रभाव से वह स्वर्ग जाता है।
श्री व्यास जी ने कहा जो पुरुष या स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करते हैं उन्हें सबसे पहले भगवान का पूजन करना चाहिए फिर गोदान करना चाहिए और उसके बाद फिर ब्राह्मणों को मिष्ठान और दक्षिणा देकर जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए।
निर्जला के दिन अन्य वस्त्र और जूते आदि का दान भी करना चाहिए जो मनुष्य भक्ति पूर्वक इस कथा को पढ़ने या सुनते हैं उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
।। निर्जला एकादशी की कथा समाप्त हुई।।
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श्री विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
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