कनकधारा स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य प्रार्थना है, जिसका पाठ देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए किया जाता है।
‘कनक’ का अर्थ है सोना और ‘धारा’ का अर्थ है धारा – इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
ऐसा माना जाता है कि जब शंकराचार्य ने इसे गाया था, तब देवी लक्ष्मी ने एक गरीब गृहिणी पर सोने की वर्षा की थी।
यह स्तोत्र न केवल आर्थिक कठिनाइयों को दूर करता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।
भक्ति के साथ इसका पाठ धन और समृद्धि प्राप्त करने का साधन बन जाता है।

।। कनकधारा स्तोत्र।।
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्_
आनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्_
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्_
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्_
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्_
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन ।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्_
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र_
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति ।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥१३॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
संतनोति वचनाङ्गमानसैस्_
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥१४॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥१५॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट_
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष_
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥१६॥
कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥१८॥

कनकधारा स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
1) जिस प्रकार भ्रमरी अर्ध-खिले हुए पुष्पों से सुशोभित तमला वृक्ष का आश्रय लेता है, उसी प्रकार रोमांच से सुशोभित श्री हरि के शरीर के अंगों पर जो प्रकाश पड़ता रहता है तथा जिसमें समस्त ऐश्वर्य विद्यमान रहते हैं, वह समस्त मंगलों की अधिष्ठात्री भगवती महालक्ष्मी का कटाक्ष मेरे लिए मंगलकारी हो।। 1।।
2) जिस प्रकार भौंरा महान कमल की पंखुड़ी पर मँडराता रहता है, उसी प्रकार जो सदैव प्रेम से श्री हरि के मुख की ओर जाता है तथा लज्जा के कारण लौट आता है, वह समुद्र पुत्री लक्ष्मी की मनमोहक मुग्ध दृष्टि मुझे धन-धान्य प्रदान करे।।2।।
3) जो समस्त देवों के स्वामी इन्द्र के पद का वैभव तथा विलास देने में समर्थ है, जो मधु के संहारक श्री हरि को अधिकाधिक आनन्द प्रदान करता है तथा जो नील कमल के भीतरी भाग के समान सुन्दर प्रतीत होता है, वह लक्ष्मी के उन अर्ध-खुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर पड़े।। 3।।
4) शेष पर लेटी हुई भगवान विष्णु की पत्नी श्री लक्ष्मी के नेत्र हमें समृद्धि प्रदान करें, जिनकी पुतलियाँ और पलकें अनंग के प्रभाव से आधी खुली हुई हैं, किन्तु साथ ही साथ आनंद के स्रोत श्री मुकुंद को अपने निकट पाकर थोड़ी तिरछी हो जाती हैं, जो पलकें झपकाए बिना देखते रहते हैं।। 4।।
5) कमल-वन में निवास करने वाली कमला की पलकें, जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभ-मणि से सुशोभित वक्षस्थल पर इंद्र-नील की माला के समान सुन्दर लगती हैं तथा जो उनके हृदय में भी प्रेम का संचार करती हैं, वे मुझे आशीर्वाद दें।। 5।।
6) जैसे बादलों में बिजली चमकती है, वैसे ही कैटभशत्रु श्री विष्णु के श्याम सुन्दर वक्षस्थल पर चमकने वाली, जिन्होंने अपने स्वरूप से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की माता हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे आशीर्वाद दें।।6।।
7) समुद्र की कन्या कमला की वह मन्द, आलसी, मन्द और आधी खुली हुई दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने पहली बार शुभ भगवान मधुसूदन के हृदय में स्थान पाया था, यहाँ मुझ पर पड़े।।7।।
8) भगवान नारायण की प्रिय लक्ष्मी की मेघ-सी दृष्टि, दया की अनुकूल वायु से प्रेरित होकर, पाप कर्मों के निवास (धन कमाने के विरुद्ध अशुभ प्रारब्ध) को बहुत समय के लिए दूर कर दे और मुझ बेचारे चातक पर, जो दुःख रूपी धर्म के ताप से पीड़ित है, धन रूपी जल की वर्षा करे।।8।।
9) पद्मासन पद्मा की वह खिलते हुए कमल के समान तेजस्वी दृष्टि, जिसके प्रभाव से विशेष बुद्धि वाले लोग उसके प्रेम के पात्र बन जाते हैं, सहज ही स्वर्ग का पद प्राप्त करे।
पद्मासन पद्मा की वह चमकीली दृष्टि, खिलते हुए कमल के समान, मुझे अभीष्ट पोषण दे।।9।।
10)तीनों लोकों के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन चिरयुवा प्रिय श्री लक्ष्मी को नमस्कार है, जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में तथा शाकम्भरी (देवी दुर्गा) या चन्द्रशेखर वल्लभ पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में निवास करती हैं।
तीनों लोकों के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन चिरयुवा प्रिय श्री लक्ष्मी को नमस्कार है।।10।।
11) माता: अच्छे कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको नमस्कार है।
सुंदर गुणों की सागर रति के रूप में आपको नमस्कार है।
कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि के स्वरूप पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।। 11।।
12) कमल के समान कमला को नमस्कार है। क्षीरसागर सभ्यता की सागर श्रीदेवी को नमस्कार है।
चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की प्रियतमा को नमस्कार है।। 12।।
13) कमल के समान नेत्रों वाली पूज्य माता! आपके चरणों में किया गया प्रणाम धन देने वाला, समस्त इन्द्रियों को सुख देने वाला, साम्राज्य देने वाला तथा समस्त पापों को हरने वाला है।
वे सदैव मेरी शरण में रहें। (मुझे आपके चरणों की पूजा करने का शुभ अवसर सदैव प्राप्त हो)।। 13।।
14) जिनकी कृपा के लिए की गई पूजा से उपासक की समस्त कामनाएँ तथा सम्पदाएँ बढ़ जाती हैं, मैं श्रीहरि की हृदय-पत्नी, उन लक्ष्मी देवी को मन, वाणी तथा शरीर से पूजता हूँ।। 14।।
15)हे देवी हरिप्रिया! आप कमल वन में रहती हैं, आपके हाथों में नीला कमल सुशोभित है।
आप अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, सुगंध तथा माला आदि से सुशोभित हैं। आपका दर्शन अत्यंत मनोरम है।
त्रिभुवन का धन देने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हों।।15।।
16) मैं प्रातःकाल उन जगत् जननी लक्ष्मी को नमस्कार करता हूँ, जो भगवान विष्णु की पत्नी, समस्त लोकों के स्वामी तथा क्षीरसागर की पुत्री हैं, जिनके शरीर के अंग दैत्यों द्वारा स्वर्ण के घड़ों के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं सुन्दर जल से अभिषिक्त होते हैं।।16।।
17) कमल-नयन केशव की सुन्दर एवं मनोहर स्त्री कमला! मैं दीन-दुखियों में श्रेष्ठ हूँ, अतः मैं स्वभावतः आपकी दया की अधिकारी हूँ। आप करुणा की बाढ़ की तरह कटाक्ष से मेरी ओर देखें।।17।।
18) जो मनुष्य प्रतिदिन इन स्तोत्रों के माध्यम से तीनों लोकों की माता भगवती लक्ष्मी की पूजा करते हैं, वे इस पृथ्वी पर अत्यन्त पुण्यशाली एवं अत्यन्त भाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके भावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।।
कनकधारा स्तोत्र को कोटि-कोटि नमस्कार है।
कनकधारा स्तोत्र के पाठ की विधि
स्तोत्र का पाठ सुबह स्नान करके, साफ कपड़े पहनकर और शांत जगह पर बैठकर करना चाहिए।
पाठ शुरू करने से पहले देवी लक्ष्मी का ध्यान करें और दीपक जलाएं।
सफेद या पीले फूल, अक्षत, तुलसी के पत्ते और मिठाई चढ़ाएं।
इसके बाद शांत मन से स्तोत्र का पाठ करें।
शुक्रवार, पूर्णिमा, दिवाली या अक्षय तृतीया पर इसका विशेष महत्व है।
पाठ के अंत में देवी लक्ष्मी से कष्टों से मुक्ति तथा सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।
पाठ के बाद ‘श्री सूक्त‘ या लक्ष्मी मंत्र का जाप करने से उत्तम फल प्राप्त होते हैं।

कनकधारा स्तोत्र के लाभ
कनकधारा स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं तथा जीवन में लक्ष्मी का वास होता है।
यह स्तोत्र न केवल धन प्राप्ति में सहायक होता है बल्कि दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा असफलताओं को भी दूर करता है।
जिनके घर में खर्च अधिक तथा आय कम हो, उन्हें इसका विशेष रूप से पाठ करना चाहिए।
यह स्तोत्र मानसिक शांति, आत्मविश्वास तथा सकारात्मक ऊर्जा भी देता है।
विद्यार्थी, व्यवसायी तथा गृहस्थ सभी इससे लाभ उठाते हैं।
विशेष रूप से शुक्रवार को इसका पाठ करने से देवी लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं तथा घर में समृद्धि का वास होता है।
FAQs
प्रश्न 1. कनकधारा स्तोत्र की रचना किसने की?
आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।
प्रश्न 2. इसका पाठ कब करना चाहिए?
इसे सुबह या शुक्रवार को करना सबसे अच्छा माना जाता है।
प्रश्न 3. क्या महिलाएं इसका पाठ कर सकती हैं?
हां, महिलाएं भी भक्ति भाव से इसका पाठ कर सकती हैं।
प्रश्न 4. क्या यह केवल धन प्राप्ति के लिए है?
नहीं, यह मानसिक शांति, शुभता और समृद्धि भी प्रदान करता है।
प्रश्न 5. पाठ की भाषा क्या होनी चाहिए?
इसे संस्कृत में करना सबसे अच्छा है, लेकिन इसका हिंदी अनुवाद भी किया जा सकता है।
प्रश्न 6. क्या मंत्र जाप के बिना इसका पाठ किया जा सकता है?
हां, केवल स्तोत्र का पाठ करना भी फलदायी है, लेकिन मंत्र जाप से सबसे अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
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