मोहिनी एकादशी व्रत कथा
मोहिनी एकादशी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है भगवान श्री कृष्णा और युधिष्ठिर महाराज के बीच एक महत्वपूर्ण संवाद हो रहा था।
युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा हे जनार्दन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी आती है और इसके पालन से क्या फल प्राप्त होता है? कृपा करके मुझे विस्तार पूर्वक बताएं।
तब भगवान श्री कृष्ण बोले हे युधिष्ठिर वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है।
इस एकादशी का पालन करने से व्यक्ति संसार के सभी दुखों और पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।
प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक एक राज्य था।
वहां राजा धृतिमान राज करते थे। उनके राज्य में एक धनपाल नाम का वैष्णव रहता था।
वह भगवान विष्णु का परम भक्त था,दान पुण्य आदि कार्यों में वह सदा लगा रहता था।
उसने अपने राज्य में अनेक धर्मशालाओं प्याऊ आदि की स्थापना करवाई थी।
धर्मपाल के पंच पुत्र थे, सुमना, प्रीतिमान, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।
उनका पांचवा पुत्र नाम के अनुसार अत्यंत दुराचारी था। मदिरा पान, मांस भक्षण आदि करता था।
पाप कर्मों में वह सदा लगा रहता था। एक दिन उसके पिता ने उसे वैश्या के साथ देख लिया।
इस समय उसने उसे अपने घर से निकाल दिया। आप धृष्टबुद्धि ने अपने नगर में चोरी करना शुरू कर दिया।
पकड़े जाने पर वह जंगल की ओर भाग गया। पशु पक्षियों को मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख प्यास से पीड़ित होकर खाने की तलाश में वह घूमता हुआ पुंडीर ऋषि के पास पहुंच गया।
उसे समय वैशाख मास चल रहा था। मुनिवर गंगा स्नान करके वापस लौट रहे थे। उनके भीगे हुए कपड़ो के छीटे धृष्टबुद्धि पर पड़े जिससे उसे सद्बुद्धि की प्राप्ति हुई।
वह बोला हे मुनिवर मैंने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं आप मुझे इन पापों से छुटकारा पाने का कोई उपाय बताएं
उसकी यह बात सुनकर ऋषि बोले तुम वैशाख के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत करो इससे तुम्हारा समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे।
मुनि के वचन सुनकर वह प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गए और अंत में उसे विष्णु लोग प्राप्त हुआ।
इससे व्यक्ति को मोह जाल से मुक्ति प्राप्त होती है। पुरे संसार में इससे श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है।
इसकी कथा पढ़ने और सुनने से हजार गौ दान का पुण्य प्राप्त होता है।

।। जय श्री हरी विष्णू।।
।।मोहिनी एकादशी व्रत कथा समाप्त।।
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श्री विष्णू आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
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