नरसिंह जयंती भगवान विष्णु के चौथे अवतार के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।
इस दिन भगवान विष्णु ने आधे सिंह और आधे मनुष्य के रूप में अवतार लिया था और भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकश्यप का वध किया था।
यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और सच्ची भक्ति की महिमा का प्रतीक है।
भक्त व्रत रखते हैं, विष्णु मंत्रों का जाप करते हैं और शाम को विशेष पूजा करते हैं।
नरसिंह जयंती मनाने से न केवल धार्मिक आस्था मजबूत होती है, बल्कि यह आंतरिक शक्ति, साहस और धर्म के प्रति अटूट आस्था को भी प्रेरित करती है।
नरसिंह जयंती 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में नरसिंह जयंती 11 मई, रविवार को मनाई जाएगी।
यह त्यौहार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ता है, जिसे भगवान नरसिंह के अवतार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान की विशेष पूजा करते हैं।
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 10 मई 2025 शाम 5:29 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 11 मई 2025 रात 8:01 बजे
शाम पूजन मुहूर्त: शाम 4:21 बजे से शाम 7:03 बजे तक
मध्याह्न संकल्प समय: सुबह 10:57 बजे से दोपहर 1:39 बजे तक
शाम के समय भगवान नरसिंह की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
यह समय उनके उग्र रूप की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है।

नरसिंह जयंती का पौराणिक महत्व
नरसिंह जयंती का पौराणिक महत्व विष्णु पुराण और भागवत पुराण से जुड़ा है।
हिरण्यकश्यप नामक राक्षस को ब्रह्मा से ऐसा वरदान मिला था कि उसे न दिन में मारा जा सकता था, न रात में, न अंदर न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मनुष्य से, न पशु से।
उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था और उसने क्रोध में आकर उसे बार-बार मारने की कोशिश की।
भगवान विष्णु धर्म और अपने भक्त की रक्षा के लिए खंभे से प्रकट हुए और नरसिंह का रूप धारण किया – आधा सिंह, आधा मनुष्य।
उन्होंने संध्या के समय दरवाजे की चौखट पर अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
यह अवतार धर्म, न्याय और भक्ति की जीत का प्रतीक बन गया।
नरसिंह जयंती का संदेश यह है कि भगवान हर युग में अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए प्रकट होते हैं।
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व्रत और व्रत विधि
नरसिंह जयंती पर व्रत करना पुण्यदायी माना जाता है।
यह व्रत विशेष रूप से भय, बाधाओं और शत्रु भय को नष्ट करता है।
व्रत करने वाला व्यक्ति सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनता है और भगवान नरसिंह की मूर्ति या तस्वीर के सामने व्रत का संकल्प लेता है।
कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं, जबकि कुछ फल खाते हैं।
पूरे दिन भगवान का ध्यान करते हुए भजन, कीर्तन और मंत्रों का जाप करना चाहिए।
“ॐ नरसिंहाय नमः” और “ॐ क्ष्रुं नरसिंहाय नमः” जैसे मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी होता है।
व्रत के दिन सात्विकता बनाए रखें – तामसिक भोजन, क्रोध, कटु वचन आदि से बचें।
शाम की पूजा के बाद आरती करें और फिर प्रसाद ग्रहण करें।
जो भक्त इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करता है, उसे सभी भय से मुक्ति मिलती है और मनोबल बढ़ता है।
नरसिंह जयंती पूजा विधि
नरसिंह जयंती के दिन विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले घर या मंदिर को शुद्ध जल और गंगाजल से साफ करें।
पूजन स्थल पर भगवान नरसिंह और भक्त प्रह्लाद की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा की थाली में रोली, अक्षत, चंदन, धूप, दीप, फूल, तुलसी के पत्ते, नैवेद्य, पंचामृत और फल रखें।
पूजा विधि में सबसे पहले जल पीकर संकल्प लें, फिर भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद चंदन, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। फिर “ॐ नरसिंहाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए पूजा करें।
भक्त प्रह्लाद की कथा सुनें और भगवान से अपने भय, कष्ट और बाधाओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।
अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।
यह पूजा विधि सरल होते हुए भी, यदि श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाए तो अत्यंत प्रभावशाली है।

विशेष मंत्र, स्तोत्र और आरती
नरसिंह जयंती पर मंत्र और स्तोत्र का जाप अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है।
ये मंत्र न केवल भय और संकट को दूर करते हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करते हैं।
प्रमुख मंत्र:
“ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय नमः” –
यह बीज मंत्र है जो संकटों को दूर करता है।
“ॐ उग्रम वीरं महाविष्णु ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नरसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्।
यह श्लोक भगवान के उग्र स्वरूप की स्तुति करता है।
नरसिंह कवच: इसका उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है और इसे सुरक्षा कवच के रूप में पढ़ा जाता है।
नरसिंह आरती: “जय नरसिंह देवा, जय नरसिंह देवा…”
शाम की पूजा में इसे अवश्य गाएं।
यह आरती भक्त के हृदय को भक्ति से भर देती है और वातावरण को सात्विक बना देती है।
नरसिंह अवतार का गहरा अर्थ
आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टि से नरसिंह अवतार का गहरा अर्थ है।
यह अवतार हमें सिखाता है कि जब अन्याय, अत्याचार और अहंकार की सीमाएँ पार हो जाती हैं, तो भगवान स्वयं प्रकट होते हैं।
भगवान नरसिंह का रूप – आधा मानव, आधा सिंह – यह दर्शाता है कि भगवान परे हैं मर्यादाएँ।
हिरण्यकश्यप को कोई भी प्राणी, स्थान या काल नहीं मार सकता था, इसलिए भगवान ने संध्या के समय अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया, द्वार पर ही ब्रह्मा का वरदान पूरा किया और धर्म की रक्षा की।
यह अवतार यह भी सिखाता है कि सच्चे भक्त की रक्षा भगवान स्वयं करते हैं, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो।
नरसिंह का रूप हमें जीवन में धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है, भगवान हमेशा हमारे साथ रहते हैं।

नरसिंह जयंती पर क्या करें और क्या न करें
क्या करें:
पूरे दिन व्रत और संयम रखें।
भगवान का ध्यान करें, मंत्रों का जाप करें और उनकी स्तुति करें।
घर को साफ रखें और पूजा स्थल को सजाएँ।
शाम को विधिपूर्वक पूजा करें और आरती करें।
जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और पानी का दान करें।
नरसिंह स्तोत्र, विष्णु सहस्रनाम या भक्त प्रह्लाद की कथा पढ़ें।
क्या न करें:
तामसिक भोजन, मदिरा, मांस आदि का सेवन वर्जित है।
क्रोध, झूठ, अपमान और वाणी की कटुता से बचें।
पूजा से पहले स्नान और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
अशास्त्रीय या अपवित्र विधियों से पूजा न करें।
इस दिन संयम, भक्ति और सेवा की भावना सर्वोपरि है।
अगर नरसिंह जयंती सच्चे मन से मनाई जाए तो जीवन में कई सकारात्मक बदलाव आते हैं।
निष्कर्ष
नरसिंह जयंती केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि साहस, भक्ति और न्याय का उत्सव है।
यह दिन हमें सिखाता है कि सच्चे मन और विश्वास से की गई भक्ति व्यर्थ नहीं जाती।
भगवान नरसिंह का स्वरूप हमें प्रेरणा देता है कि जब अधर्म और अन्याय बढ़ता है तो भगवान स्वयं उसका अंत करते हैं।
इस पावन अवसर पर हमें धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए और दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।
आइए इस नरसिंह जयंती पर भगवान से शक्ति, बुद्धि और भक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना करें।