हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था, जिसे परशुराम जयंती के रूप में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है।
धार्मिक दृष्टि से यह दिन बहुत पवित्र माना जाता है और इसी दिन अक्षय तृतीया भी पड़ती है।
परशुराम का चरित्र शक्ति, न्याय, साहस और तपस्या का प्रतीक है।
ब्राह्मण होते हुए भी वे एक योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
परशुराम जयंती धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश की प्रेरणा देती है।
भगवान परशुराम का परिचय
भगवान परशुराम का जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था।
इनका जन्म भृगु ऋषि के वंश में हुआ था, इसलिए इन्हें ‘भृगुवंशी’ भी कहा जाता है।
इनका वास्तविक नाम ‘राम’ था, लेकिन जब वे भगवान शिव से प्राप्त ‘परशु’ (कुल्हाड़ी) को हमेशा अपने साथ रखते थे, तब से उन्हें ‘परशुराम’ के नाम से जाना जाने लगा।
परशुराम जी स्वभाव से शांत, अनुशासित और तपस्वी थे, लेकिन जब धर्म खतरे में पड़ा तो वे एक उग्र और न्यायप्रिय योद्धा के रूप में प्रकट हुए।
उनका जीवन कर्म, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम रहा है।
परशुराम जी का अवतार क्यों हुआ?
भगवान परशुराम का अवतार धरती पर तब हुआ जब क्षत्रिय राजा अपनी शक्ति के अभिमान में अंधे होकर लोगों पर अत्याचार करने लगे।
धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया।
उनका उद्देश्य अधर्मी और अहंकारी क्षत्रियों का वध करके न्याय और शांति स्थापित करना था।
एक बार हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि का अपमान किया और उनके आश्रम को लूट लिया।
इस घटना से क्रोधित होकर परशुराम जी ने बदला लिया और कार्तवीर्य अर्जुन का वध कर दिया।
इसके बाद उन्होंने 21 बार धरती से क्षत्रियों का संहार किया।

परशुराम जी की प्रमुख कृतियाँ
भगवान परशुराम के जीवन में कई ऐसे कार्य हैं, जो उन्हें एक महान तपस्वी और न्यायप्रिय योद्धा के रूप में स्थापित करते हैं।
उन्होंने अपने पिता के आदेश पर अपनी माता रेणुका को मारने का कठोर निर्णय लिया और बाद में जब उनके पिता प्रसन्न हुए तो उन्होंने उनसे अपनी माता को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा।
उन्होंने भगवान शिव से दिव्य अस्त्रों की शिक्षा ली और उनसे परशु प्राप्त किया।
कार्तवीर्य अर्जुन के वध के बाद उन्होंने एक बार नहीं बल्कि 21 बार पृथ्वी से अधर्मी क्षत्रियों का संहार करके न्याय का पाठ पढ़ाया।
उन्होंने कई शिष्यों को युद्ध विद्या सिखाई, जिनमें भीष्म, कर्ण और द्रोणाचार्य जैसे महान योद्धा शामिल हैं।
परशुराम जयंती कब और कैसे मनाई जाती है?
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है, जो 2025 में 29 अप्रैल को मनाई जाएगी।
यह दिन अक्षय तृतीया के साथ ही पड़ता है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, भगवान परशुराम की पूजा करते हैं और मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
व्रत रखने वाले लोग सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं और भगवान परशुराम की मूर्ति या तस्वीर पर फूल, चावल, चंदन, तुलसी, फल और प्रसाद चढ़ाते हैं।
साथ ही परशुराम चालीसा, आरती और स्तोत्र का पाठ किया जाता है।
कुछ लोग पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं।
परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व
परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।
इस दिन को धर्म की जीत और अधर्म के नाश का प्रतीक माना जाता है।
भगवान परशुराम को ‘अविनाशी अवतार’ कहा गया है, क्योंकि माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और कल्कि अवतार को शस्त्रविद्या प्रदान करेंगे।
ब्राह्मण समाज में उन्हें ज्ञान, शस्त्र और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।
वे ज्ञान और युद्ध दोनों का अद्वितीय उदाहरण हैं।
उनकी पूजा करने से व्यक्ति को साहस, शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त होती है।
इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का नाश होता है।
साथ ही व्यक्ति को धर्म, समर्पण और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
परशुराम जी और अन्य अवतारों से संबंध
भगवान परशुराम का अन्य विष्णु अवतारों से गहरा संबंध है।
वे त्रेता युग में भगवान राम से मिले और उन्हें शिवधनुष तोड़ने की चुनौती दी।
परन्तु श्री राम के तेज और मर्यादा से प्रभावित होकर उन्होंने उन्हें विष्णु का अवतार स्वीकार कर लिया।
द्वापर युग में उन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं को शस्त्रविद्या प्रदान की।
जब उन्होंने कर्ण को ब्राह्मण समझकर शिक्षा दी और सच्चाई जानने के बाद उसे श्राप दे दिया, तब भी उसने धर्म का पालन किया।
इससे पता चलता है कि वह सिर्फ गुरु नहीं, बल्कि न्याय के अवतार थे।
कलियुग में भी माना जाता है कि वह जीवित हैं और भगवान कल्कि के आने पर उसे शस्त्र विद्या देंगे।

परशुराम जी का आधुनिक संदेश
भगवान परशुराम का जीवन सिर्फ एक पौराणिक कथा ही नहीं है, बल्कि आज के युग के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।
उन्होंने सिखाया कि शक्ति का प्रयोग सिर्फ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए होना चाहिए, स्वार्थ के लिए नहीं।
आज जब समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और अधर्म बढ़ रहा है, तब परशुराम का आदर्श व्यक्ति को सत्य और साहस के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
वह दिखाते हैं कि ब्राह्मण होते हुए भी अगर समय आए तो अधर्म के खिलाफ शस्त्र उठाना भी धर्म है।
उनका जीवन संयम, ज्ञान, विवेक और वीरता का संगम है।
हर युवा को उनके चरित्र से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को ऊर्जावान और मजबूत बनाना चाहिए।
परशुराम जयंती पर विशेष आयोजन
परशुराम जयंती के दिन देशभर में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं।
ब्राह्मण समाज इसे बड़े उत्साह के साथ मनाता है।
मंदिरों में भगवान परशुराम की मूर्तियों की विशेष पूजा की जाती है।
कई जगहों पर जुलूस निकाले जाते हैं, जिसमें लोग परशुराम जी की झांकी, झंडे और भक्ति गीतों के साथ भाग लेते हैं।
धार्मिक प्रवचन, यज्ञ, हवन और सामूहिक भोज का भी आयोजन किया जाता है।
कुछ समाजों में व्रत कथाएं सुनाई जाती हैं और बच्चों को परशुराम के गुणों से परिचित कराया जाता है।
स्कूलों और सामाजिक संगठनों में व्याख्यान और निबंध प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
यह दिन केवल पूजा तक सीमित नहीं रहता, बल्कि समाज को सकारात्मक दिशा देने का अवसर बन जाता है।
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उपसंहार
परशुराम जयंती केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है।
बल्कि एक चेतना है, जो हमें सत्य, साहस, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
भगवान परशुराम का जीवन हमें सिखाता है कि जब भी अधर्म बढ़ता है, तो उसका शक्ति और तप से विरोध करना चाहिए।
यह पर्व युवाओं को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है तथा समाज में सकारात्मक सोच फैलाने का माध्यम बनता है।
हमें परशुराम जी के आदर्शों को आत्मसात कर अपने जीवन को धर्म, संयम और सेवा की ओर अग्रसर करना चाहिए।
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