शीतलाष्टमी, जिसे बासौड़ा पर्व के नाम से भी जाना जाता है, माता शीतला को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है।
यह त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल में पड़ता है।
माता शीतला को रोग निवारण और विशेष रूप से चेचक, खसरा और संक्रामक रोगों से सुरक्षा की देवी माना जाता है।
यह त्योहार उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
इस दिन भक्त माता शीतला की पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और रोगों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
शीतलाष्टमी की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 मार्च को सुबह 04:23 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 23 मार्च को सुबह 05:23 मिनट पर होगा।
उदया तिथि को देखते हुए इस साल शीतला अष्टमी का व्रत शनिवार, 22 मार्च 2025 को रखा जाएगा।
शीतलाष्टमी का महत्व
धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में माता शीतला को स्वास्थ्य और पवित्रता की देवी माना जाता है।
माता शीतला की पूजा करने से रोगों से रक्षा होती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इस दिन ताजा भोजन नहीं पकाया जाता है, बल्कि एक दिन पहले बना ठंडा भोजन (बासोड़ा) खाया जाता है, जिससे माता प्रसन्न होती हैं।

सामाजिक और पारिवारिक महत्व
यह त्यौहार परिवार में स्नेह और एकता को बढ़ाने का काम करता है, क्योंकि सभी सदस्य एक साथ पूजा करते हैं और एक साथ भोजन करते हैं।
पुराने समय में, सभी गाँव और समुदाय माता शीतला के मंदिरों में एक साथ भजन और कीर्तन गाते थे, जिससे आपसी प्रेम बढ़ता था।
वैज्ञानिक और स्वास्थ्य महत्व
गर्मी के मौसम में ताजा खाना जल्दी खराब हो सकता है, जिससे फूड पॉइज़निंग और अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।
शीतलाष्टमी पर ठंडा खाना खाने का वैज्ञानिक कारण यह भी है कि इससे शरीर ठंडा रहता है और पेट की समस्याएँ कम होती हैं।
इस त्यौहार में साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता पर विशेष जोर दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी है।
शीतलाष्टमी का इतिहास और पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता
स्कंद पुराण और भागवत पुराण में माता शीतला के बारे में कई कहानियाँ मिलती हैं।
एक प्रमुख कथा के अनुसार, एक बार गाँव में महामारी फैल गई, जिसके कारण कई लोग बीमार पड़ गए।
एक बूढ़ी महिला ने माता शीतला की पूजा की और बासौड़ा (ठंडा भोजन) खाया और उसकी बीमारी ठीक हो गई।
इसके बाद इस परंपरा को पूरे गांव ने अपना लिया और सभी लोग स्वस्थ हो गए।
माता शीतला का स्वरूप
माता शीतला को चार भुजाओं वाली देवी के रूप में दर्शाया गया है।
वे गधे पर सवार हैं और उनके हाथों में झाड़ू, घड़ा, नीम के पत्ते और एक बर्तन है।
उनके इस स्वरूप को रोग निवारण और स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है।
शीतला माता के प्रसिद्ध मंदिर
- शीतला माता मंदिर, गुड़गांव (हरियाणा) – यह भारत में सबसे प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर है।
- शीतला माता मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – माता शीतला का एक प्राचीन मंदिर वाराणसी में स्थित है।
- शीतला माता धाम, राजस्थान – राजस्थान में भी माता शीतला के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं।
- शीतला माता मंदिर, मध्य प्रदेश – मध्य प्रदेश के विभिन्न इलाकों में शीतला माता के भव्य मंदिर हैं।
शीतलाष्टमी पर व्रत रखने वाले भक्तों के लिए विधि
व्रत की तैयारी (एक दिन पहले की जाने वाली तैयारी)
व्रत से एक दिन पहले (सप्तमी तिथि) भोजन तैयार किया जाता है।
भोजन में पूरी, कचौड़ी, मीठे व्यंजन, चावल, दही, बेसन की रोटी आदि शामिल होते हैं।
यह भोजन अगले दिन माता शीतला को भोग लगाने के बाद ही खाया जाता है।
व्रत के दिन पालन किए जाने वाले नियम
सूर्योदय से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
माता शीतला की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से स्नान कराएं।
माता को ठंडा भोजन, जल, दही, हलवा आदि का भोग लगाएं।
पूरे दिन केवल फलाहार करें और निर्जला व्रत रखने वाले भक्तों को अगले दिन व्रत खोलना चाहिए।
व्रत का पारण (व्रत तोड़ने की विधि)
अगले दिन नवमी तिथि को माता शीतला को फिर से जल चढ़ाया जाता है।
घर में ताजा भोजन बनाया जाता है और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित किया जाता है।
इस दिन पानी में नीम के पत्ते डालकर स्नान करना शुभ माना जाता है।
शीतलाष्टमी पर व्रत न रखने वालों के लिए नियम
चूल्हा नहीं जलाना चाहिए और बासौड़ा खाना चाहिए।
माता शीतला की पूजा करनी चाहिए और मंदिर जाना शुभ माना जाता है।
गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी होता है।
शीतलाष्टमी पूजा विधि
पूजा सामग्री:
माता शीतला की प्रतिमा या चित्र
जल का लोटा, चावल
हल्दी, रोली, फूलों की माला
ठंडा भोजन (बसोड़ा), दही, पूरी, मिठाई
कपूर और अगरबत्ती
शीतला माता की कथा की पुस्तक
पूजा विधि:
- सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- माता शीतला को जल, फूल और चावल चढ़ाएं।
- ठंडा भोजन (बसोड़ा) चढ़ाएं।
- शीतला माता की कथा पढ़ें और आरती करें।
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।

शीतलाष्टमी पर व्रत और पूजा के लाभ
स्वास्थ्य लाभ
माता शीतला की पूजा करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है।
यह पर्व स्वच्छता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
मानसिक और आध्यात्मिक लाभ
उपवास करने से मन को शांति और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
यह पर्व धैर्य और संयम का महत्व सिखाता है।
पारिवारिक और सामाजिक लाभ
इस दिन परिवार और समाज में सौहार्द और एकता का माहौल बनता है।
लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और माता शीतला की पूजा में भाग लेते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से शीतलाष्टमी का महत्व
शीतलाष्टमी का महत्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी है।
इस दिन ठंडा भोजन (बसोड़ा) खाने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और फूड पॉइजनिंग का खतरा कम होता है।
नीम के पत्तों का सेवन संक्रमण, डेंगू, मलेरिया और त्वचा रोगों से बचाव में सहायक होता है।
माता शीतला को जल चढ़ाने और स्वच्छता का पालन करने से कीटाणु नष्ट होते हैं।
चूल्हा न जलाने की परंपरा ऊर्जा संरक्षण और प्रदूषण को कम करने में सहायक होती है।
इस दिन पूजा और ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
यह पर्व स्वच्छता, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
निष्कर्ष
शीतलाष्टमी न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व है, बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वच्छता और वैज्ञानिक सोच को भी बढ़ावा देता है।
इस दिन माता शीतला की पूजा करने, व्रत रखने और ठंडा भोजन ग्रहण करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
चाहे व्रत रखा जाए या न रखा जाए, माता शीतला की भक्ति से जीवन में शुभता और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
आप भी इस पावन अवसर पर माता शीतला का पूजन करें, व्रत करें या बसोड़ा ग्रहण करें और माता का आशीर्वाद प्राप्त करें!
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