विष्णु पुराण प्रथम अंश अध्याय 7
श्री विष्णु पुराण के अनुसार इस अध्याय में मारीच आदि प्रजापति गण तामसिक सर्ग स्वयंभू मनु और शतरूपा तथा उनकी संतान का वर्णनकिया गया है।
आइये पढ़ते हैं विष्णु पुराण प्रथम अंश का सातवें अध्याय की कथा। तो बोलिए प्रेम से भगवान विष्णु की जय। माता लक्ष्मी की जय। सर्व देवी देवता की जय।
विष्णु पुराण में श्री पाराशर जी बोले फिर उन प्रजापति के ध्यान करने पर उनके देह स्वरूप भूतों से उत्पन्न हुए। शरीर और इंद्रियों के सहित मानस प्रजा उत्पन्न हुई। उसे समय मति मां ब्रह्मा जी के जड़ शरीर से ही चेतन जीवों का प्रादुर्भाव हुआ। मैंने पहले जिसका वर्णन किया है देवताओं से लेकर स्थावर पर्वत मैं सभी त्रिगुणात्मक चर और अचर जीव इसी प्रकार उत्पन्न हुए हैं।
जब महा बुद्धिमान प्रजापति की वह प्रजा पुत्र, पत्र आदि क्रम से और ना बड़ी तब उन्होंने भृगु, पुलस्त, पुलह, क्रतु, अंगिरा, मारीच, दक्ष, अत्रि और वशिष्ठ। इन अपने ही सदृश्य अन्य मानस पुत्रों की सृष्टि की पुराण में यह नौ ब्रह्मा माने गए हैं। फिर ख्याति, भूति, संभुति, क्षमा, प्रीती, संतती, ऊर्जा,अनुसूया तथा प्रसूति इन नौ कन्याओं को उत्पन्न कर उन्हें इन महात्माओं को तुम उनकी पत्नी हो ऐसा कहकर सौंप दिया।
ब्रह्मा जी पहले जिन सानंद नाद को उत्पन्न किया था वे निरपेक्ष होने के कारण संतान और संसार आदि में प्रति नहीं हुए। वे सभी ज्ञान संपन्न विरक्त और मत्स्यरादी दोषों से रहित थे। उन महात्माओं को संसार रचना से ब्रह्मा जी को त्रिलोकी को भस्म कर देने वाला महान क्रोध उत्पन्न हुआ।
हे महामुनि उन ब्रह्मा जीके क्रोध के कारण संपूर्ण त्रिलोकी ज्वाला महिलाओं से अत्यंत देवीप्यमान हो गई।उस समय उनकी टेढ़ी, भ्रकुटी और क्रोध संत संतप्त ललाट से दोपहर के सूर्य के समान प्रकाशमान रुद्र की उत्पत्ति हुई। उसका आती प्रचंड शरीर आधा नर और आधा नारी रूप था। तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर का विभाग कर ऐसा कहकर अंतर ध्यान हो गए। ऐसा कहे जाने पर रूद्र ने अपने शरीरत स्त्री और पुरुष दोनों भागों को अलग-अलग कर दिया और फिर पुरुष भाग को 11 भागों में विभक्त कर दिया तथा स्त्री भाग भी सौम्य, क्रूर, शांत, अशांत, और श्याम,गौरी आदि कई रूपों में विभक्त कर दिया।
तदातर हे द्विज अपने से उत्पन्न अपने ही स्वरूप स्वयंभू को ब्रह्मा जी प्रजापालन के लिए प्रथम मनु बनाया। उन स्वयंभू ने अपने ही साथ उत्पन्न हुई तप के कारण निष्पाप शतरूपा नाम की स्त्री को अपनी पत्नी रूप से ग्रहण किया। हे धर्मग्य ओम स्वयंभू मनु से शतरूपा देवी ने प्रियवत्त और उत्तानपाद नामक दो पुत्र तथा उदार रूप और गुना से संपन्न प्रसूति और आकुती नाम की दो कन्याएं उत्पन्न की।
उनमें से प्रसूति को दक्ष के साथ और आकुती को रुचि प्रजापति के साथ विवाह दिया। हे महाभाग्य, प्रजापति ने उसे ग्रहण कर लिया। तब महाभारत रुचि प्रजापति ने उसे ग्रहण कर लिया। तब उन दम्पति के यज्ञ और दक्षिणा यह युगल जुड़वा संतान उत्पन्न हुई। यज्ञ के दक्षिणा से 12 पुत्र हुए जो स्वयं भुव मन मंतर में याम नाम के देवता कहलाए।
तथा दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याये उत्पन्न की। मुझसे उनके शुभ नाम सुनो- श्रद्धा,लक्ष्मी,धृति,तूष्टि, मेधा, पुष्टि,क्रिया, बुद्धि, लज्जा,वपू, शांति, सिद्धि और तेरहवीं कृति इन दक्ष कन्याओ को धर्म ने पत्नी रूप से ग्रहण किया। इनसे छोटी शेष 11 कन्याएं जो की – ख्याति, सती, संभुति, अस्मृति, प्रीति, क्षमा, संतती, अनुसूया, ऊर्जा, स्वाहा, और स्वधा थी ।
हे मुनीसत्तम इन ख्याति आदि कन्याओं को क्रमशः भृगु, शिव, मारीच, अंगिरा, पुलस्त, पुलह, कृतू, अत्रि, वशिष्ठ इन मुनियो तथा अग्नि और पितरो ने ग्रहण किया। श्रद्धा से काम चला। लक्ष्मी से दर्प। धृति से नियम। तुष्टि से संतोष और पुष्टि से लाभ की उत्पत्ति हुई।तथा मेधा से श्रुत,क्रिया से दंड,नय और विनय,बुद्धि से बोध,लज्जा से विनय,वपू से उसका पुत्र व्यवसाय, शांति से क्षेम, सिद्धि से सुख और कृति से यश का जन्म हुआ। यही धर्म के पुत्र है।रति ने काम से धर्म के पौत्र हर्ष को उत्पन्न किया।
धर्म की स्त्री हिंसा थी उसने अनृत्य नामक पुत्र और निकृति नामक पुत्री उत्पन्न की। उन दोनों से भय और नरक नाम के पुत्र तथा उनकी पत्निया माया और वेदना नाम की कन्याएं हुई।उन्होंने माया नामक कन्या ने सभी प्राणियों का संघार करता मृत्यु नामक पुत्र पैदा किया। वेदना ने भी नरक के द्वारा अपने पुत्र दुख को जन्म दिया और मृत्यु से व्याधि, जरा, शोक, तृष्णा और क्रोध की उत्पत्ति हुई।
यह सब धर्म रूप है और दुख उत्तर नाम से प्रसिद्ध है। क्योंकि इसे परिणाम में दुख ही प्राप्त होता है और उनके ना ही कोई स्त्री है और ना संतान। यह सब उधरवरेता हैं। हे मुनि कुमार ये भगवान विष्णु के बड़े भयंकर रूप है और यही संसार के नित्य प्रलय के कारण होते हैं।
हे महाभाग्य मारीच अत्री और भृगु आदि प्रजापति गण इस जगत के नित्य सर्ग के कारण है। तथा मनु और मनु के पराक्रमी सन्मार्ग परायण और शूरवीर पुत्र राजागण इस संसार की नित्य स्थिति के कारण है।
श्री मैत्रेय जी बोले की है ब्राह्मण आपने जो नित्य स्थिति नित्य सर्ग और नित्य प्रलय का उल्लेख किया सो कृपा करके मुझे इसका स्वरूप वर्णन कीजिए। श्री पाराशर जी बोले जिनकी गति कहीं नहीं रुकती वह अचिंत आत्मा सर्व व्यापक भगवान मधुसूदन निरंतर इन मनु आदि रूपों से संसार की उत्पत्ति स्थिति और नाश करते रहते हैं।
हे द्विज समस्त भूतों का चार प्रकार प्रलय है। नैमित्तीक, प्राकृतिक, आत्यन्तीक, और नित्य उनमें नैमित्तीक प्रलय ही ब्राह्मण प्रलय है जिसमें जगतपति ब्रह्माजी कल्पान्त में शयन करते है तथा प्राकृतिक प्रलय में ब्रम्हांड प्रकृति में लीन हो जाता है। ज्ञान के द्वारा योगी का परमात्मा में लेना जाना अत्यधिक प्रलय है और रात दिन जो भूतों का सही होता है वही नित्य प्रलय है।प्रकृति से महत्व कर्म से जो सृष्टि होती है वह प्राकृतिक सृष्टि कहलाती है।
और अवांतर प्रलय के अनंतर जो ब्रह्मा के द्वारा चराचर जगत की उत्पत्ति होती है वह दयानंदिनी सृष्टि कहीं जाती है और हे मुनिश्रेष्ठ जिसमें प्रतिदिन प्राणियों की उत्पत्ति होती रहती है उसे पुराणा अर्थ में कुशल महानुभावों यह नृत्य सृष्टि कहां है। इस प्रकार समस्त शरीर में स्थित भूत भावन भगवान विष्णु जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय करते रहते हैं। हे मैत्री और सृष्टि स्थिति और विनाश की इन वैश्णवी शक्तियों का समस्त शरीर में समान भाव से अहर संचार होता रहता है अतः हे ब्राह्मण, यह तीनों महती शक्तियां त्रिगुणमयी हैं।
अतः जो उन तीनों गुना का अतिक्रमण कर जाता है वह परम पद को ही प्राप्त हो जाता है फिर जन्म मरण आदि के चक्र में नहीं पड़ता इस प्रकार से श्री विष्णु पुराण प्रथम अंश में सातवें अध्याय की कथा संपन्न हुई। तो प्रेम से बोलिए श्री हरि विष्णु की जय। माता लक्ष्मी की जय। सर्व देवी देवता की जय।

अध्याय 8
श्री विष्णु पुराण के अनुसार इस अध्याय में रौद्र सृष्टि और भगवान तथा लक्ष्मी जी की सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है।
बोलिए प्रेम से भगवान विष्णु की जय। माता लक्ष्मी की जय। सर्व देवी देवता की जय।
श्री विष्णु पुराण के अनुसार श्री पाराशर जी बोले की है महामुनि मैं तुमसे ब्रह्मा जी के तामस सर्ग का वर्णन किया अब मैं रुद्र सर्ग का वर्णन करता हूं तो सुनो कप के आदि में अपने सामान पुत्र उत्पन्न होने के लिए चिंतन करते हुए ब्रह्मा जी की गोद मैं नील लोहित वर्ण के एक कुमार का प्रादुर्भाव हुआ। हे गूगल जन्म के अनंतर ही वह जोर-जोर से रोने और इधर-उधर दौड़ने लगा उसे रोता देख ब्रह्मा जी ने उससे पूछा तुम क्यों रोते हो उसने कहा मेरा नाम रखो, तो ब्रह्मा जी बोले हे देव तेरा नाम रूद्र है अब तुम मत रो धैर्य धारण करो ऐसा कहने पर भी वह सात बार और रोया तब भगवान ब्रह्मा जी ने उसके सा नाम और रखें तथा उन आठो के स्थान स्त्री और पुत्र भी निश्चित किए।
हे द्विज प्रजापति ने उसे भाव सर्व ईशान पशुपति भीम उग्र और महादेव कहकर संबोधन किया। यही उसके नाम रखे और उनके स्थान भी निश्चित किया सूर्य, जल, पृथ्वी,वायु, अग्नि, आकाश, यज्ञ में दीक्षित ब्राह्मण, और चंद्रमा यह क्रमशः उनकी मूर्तियां है। हे द्विज श्रेष्ठ रूद्र आदि नाम के साथ सूर्य आदि मूर्तियों की क्रमशः सुवर्चुला, उषा, विकेशी, अपरा, शिवा, स्वाहा, दिशा, दीक्षा, और रोहिणी नाम की पत्नियों है। हे महाभाग्य अब उनके पुत्रों के नाम सुनो उन्हीं के पुत्र पौत्र आदि से यह संपूर्ण जगत परिपूर्ण हैं।
सनेश्वर, शुक्र, लोहितांग, स्कंद, सर्ग, संतान और बुध यह क्रमशः उनके पुत्र है। ऐसे भगवान रुद्र ने प्रजापति दक्ष की अनिंदिता पुत्री सती को अपनी भार्या रूप से ग्रहण किया। हे दुयोत्तम उस सती ने दक्ष पर कुपित होने के कारण अपना शरीर त्याग दिया था फिर वह मेनाघ के गर्भ से हिमाचल की पुत्री उमा हुई। भगवान शंकर ने उसे अनन्य परायणा उमा से फिर भी विवाह किया।
भृगु के द्वारा ख्याति ने धाता और विधाता नामक दो देवताओं तथा लक्ष्मी जी को जन्म दिया जो भगवान विष्णु की पत्नी हुई। श्री मैत्रेय जी बोले कि भगवान सुना जाता है कि लक्ष्मी जी तो अमृत मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न हुई थी फिर आप ऐसा तुमसे कह सकते हैं कि वह भृगु के द्वारा ख्याति से उत्पन्न हुई? श्री पराशर जी बोले की है मैत्रेय भगवान का कभी संग ना छोड़ने वाली जगत जननी लक्ष्मी तो जिस प्रकार श्री विष्णु भगवान सर्व व्यापक वैसे ही यह भी है।
विष्णु अर्थ है और यह वाणी हैं। हरि नियम है और यह नीति है। भगवान विष्णु बोध है और यह बुद्धि है। तथा वे धर्म है और यह सत क्रिया है। हे मैत्रेय भगवान जगत के सृष्टा है और लक्ष्मी जी सृष्टि हैं। श्री हरी भूधर, पर्वत अथवा राजा हैं तो लक्ष्मी जी भूमि हैं। तथा भगवान संतोष हैं और लक्ष्मी जी नित्य तुष्टि हैं। भगवान काम है और लक्ष्मी की इच्छा है।
वे जगह है और वह दक्षिण है श्री जनार्दन पूर्व दास हैं और लक्ष्मी जी घृत की आहुति है। हे मुने मधुसूदन यजमान गृह हैं और लक्ष्मी जी पत्नी शाला हैं श्री हरी युप हैं और लक्ष्मी जी चीती हैं तथा भगवान कुशा हैं और लक्ष्मी जी इदमा हैं। भगवान श्याम स्वरुप हैं और श्री कमला देवी उद गीति हैं।
जगतपति भगवान तासन हैं और लक्ष्मी जी स्वाहाः हैं। हे दुयोत्तम भगवान विष्णु शंकर हैं और श्री लक्ष्मी जी गौरी हैं। हे मैत्रेय श्री केशव सूर्य हैं और कमल वासनी श्री लक्ष्मी जी उनकी प्रभा हैं। श्री विष्णु पितृगन है और श्री कमल नित्य पुष्टि दायनी है। विष्णु अती विस्तीर्ण सर्वात्मक अवकाश है और लक्ष्मी जी स्वर्ग लोक है।
भगवान श्रीधर चंद्रमा है और लक्ष्मी जी उनकी अक्षय कांति है। हरी सर्वगामी वायु है और लक्ष्मी जी जगत चेष्टा है। जगत की गति और धृति आधार है। हे महामुने श्री गोविंद समुद्र है और हे द्विज लक्ष्मी जी उनकी तरंग है। भगवान मधुसूदन देवराज इंद्र है और लक्ष्मी जी इंद्राणी है। चक्र वाणी भगवान यम है और असली कमला एवं पत्नी धुमुर्ना है। देवाधिदेव श्री विष्णु कुबेर है और स्वयं श्री लक्ष्मी जी साक्षात रिद्धि है। श्री केशव स्वयं वरुण है और लक्ष्मी जी गौरी है। हे द्विजराज श्री हरि देव सेनापति स्वामी कार्तिकेय है और लक्ष्मी जी देवसेना है। हे दुयोत्तम भगवान गदाधर आश्रय है और लक्ष्मी जी शक्ति है। भगवान निमेष है और लक्ष्मी जी काष्ठा है।
वे मुहूर्त है और यह कला है सर्वेश्वर सर्व रूप श्री हरी दीपक है और लक्ष्मी जी ज्योति है। श्री विष्णु वृक्ष रूप है और जगन माता श्री लक्ष्मी जी लाता है चक्र गदाधर देव श्री विष्णु दिन है और लक्ष्मी जी रात्रि है। हे वरदाय श्रीहरि वर है और पद्म निवासिनी श्री लक्ष्मी जी वधू है पूर्ण राम भगवान नद है और श्री लक्ष्मी जी नदी हैं। जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ है और लक्ष्मी जी तृष्णा है तथा है मैत्रेय रति और राग भी साक्षात लक्ष्मी जी और विष्णु भगवान रूप ही हैं।
अधिक क्या कहा जाए संक्षेप में यह कहना चाहिए कि देवराय और मनुष्य आदि में पुरुषवाची भगवान हरि है,और स्त्री वाची श्री लक्ष्मी जी उनके परे और कोई नहीं है।
इस प्रकार से श्री विष्णु पुराण प्रथम अंश अथवा अध्याय संपन्न हुआ।
बोलिए प्रेम से भगवान विष्णु की जय।
माता लक्ष्मी की जय।
सर्व देवी देवता की जय।
संपूर्ण विष्णु पुराण “VIDEO”