हनुमान जयंती हिंदू धर्म में एक विशेष पर्व है। पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान का जन्मदिन माना जाता है। इस दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। राम भक्त हनुमान जी को संकट मोचन कहा जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार, उनकी पूजा से जीवन के बड़े से बड़े संकट भी दूर हो जाते हैं। आइए जानें हनुमान जयंती 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, कथा और इसका महत्व।
कुछ स्थानों पर यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भी मनाई जाती है। इसके अलावा, हनुमान जयंती चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि पर भी मनाई जाती है।
हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार और सूर्यदेव का पुत्र माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि हनुमान जी आज भी पृथ्वी पर विराजमान हैं। जो व्यक्ति हनुमान जयंती के दिन उनकी पूजा और व्रत करता है, उसे जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति और सुख-शांति प्राप्त होती है।
हनुमान जयंती 2025 की तिथि
वर्ष 2025 में हनुमान जयंती शनिवार, 12 अप्रैल को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ :12 अप्रैल को प्रातः 3:02 बजे होगा
पूर्णिमा तिथि का समापन :13 अप्रैल को प्रातः 5:51 बजे होगा।
शुभ मुहूर्त
प्रातःकालीन पूजा का शुभ समय: सुबह 7:35 बजे से 9:10 बजे तक।
सायंकालीन पूजा का शुभ समय: शाम 6:45 बजे से 8:09 बजे तक।
व्रत की पूर्व संध्या
हनुमान जयंती का व्रत रखने वाले भक्तों को व्रत से एक रात पहले जमीन पर सोना चाहिए। सोने से पहले भगवान राम, हनुमान जी और माता सीता का ध्यान करें।
हनुमान जयंती 2025 की पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गंगाजल हाथ में लेकर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद, भगवान श्रीराम, माता सीता, और हनुमान जी का ध्यान करते हुए पूजा स्थल पर उनकी मूर्तियों को स्थापित करें।
- भगवान हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
- उन्हें सिंदूर, चांदी का वर्क, और गुड़-चने का भोग अर्पित करें।
- नैवेद्य के रूप में मालपुआ, बेसन के लड्डू या बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
- कनेर, गुड़हल या गुलाब के फूल अर्पित करें।
- रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करें।
- हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।
- अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
पौराणिक हनुमान जयंती – हनुमान जी की जन्म कथा
त्रेता युग में जब अयोध्या के राजा दशरथ तीन रानियों के साथ सुख-समृद्धि से राज्य कर रहे थे, तो उन्हें एक बड़ा दुःख झेलना पड़ा। उनके पास कोई संतान नहीं थी। एक संतान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया। जब यज्ञ पूरा हुआ, तब अग्निदेव यज्ञ कुंड से एक कटोरा खीर लेकर उसे राजा दशरथ को दे दिया और कहा, “राजन्, इस खीर को अपनी रानियों के बीच में बाँट दो। इसे बाँटने से तुम्हें संतान की सुख-समृद्धि मिलेगी।” ऐसा कहकर अग्निदेव गायब हो गए।
गरुड़ और खीर
राजा दशरथ ने उस कटोरे की खीर को लेकर अपनी रानियों के बीच में बाँट दिया। माता कौसल्या और माता सुमित्रा ने उस खीर को खा लिया, लेकिन जैसे ही रानी कैकेयी उस खीर को खाने आई, तभी वहाँ एक गरुड़ उड़ते हुए आया और उस खीर का एक हिस्सा छीनकर अपने मुंह में डालकर वहाँ से उड़ गया। उड़ते हुए गरुड़ ने वहाँ पहुँचा जहाँ माता अंजनी और वानरराज केसरी महादेव की तपस्या कर रहे थे एक संतान प्राप्ति के लिए। उस गरुड़ ने वहाँ उस खीर को माता अंजनी के हाथ में गिराया, जिसके कारण माता अंजनी की तपस्या भंग हो गई और उन्होंने वानरराज केसरी को पूरी बात सुनाई। वानरराज केसरी ने उनसे कहा, “संभव है कि यह भोलेनाथ का प्रसाद हो। इसे स्वीकार करो।”
वानरराज केसरी की सलाह पर माता अंजनी ने खीर को स्वीकार किया और इसका परिणाम यह हुआ कि माता अंजनी गर्भवती हो गईं। कुछ समय बाद, एक दिन माता अंजनी पर्वत की चोटी पर खड़ी होकर सूर्य की सुंदरता का आनंद ले रही थीं। तभी अचानक तेज़ हवाएँ चलने लगीं, और उनके वस्त्र उड़ने लगे। उन्होंने चारों ओर देखा, लेकिन आसपास के पेड़ों के पत्ते तक नहीं हिल रहे थे। यह देखकर वह क्रोधित हो गईं और बोलीं, “यह कैसा जादू है? यहाँ कौन है जो एक पतिव्रता स्त्री का अपमान करने का प्रयास कर रहा है?”
माता अंजनी को ऋषि का श्राप
तभी पवन देव उनके सामने प्रकट हुए और बोले, “देवी, कृपया मुझे क्षमा करें। पिछले जन्म में आप इंद्रदेव के दरबार में एक अप्सरा थीं। आपका नाम पुंज स्थला था। आप अत्यंत सुंदर थीं, लेकिन आपका स्वभाव चंचल और शरारती था। एक बार एक ऋषि वन में तपस्या कर रहे थे। अपनी चंचलता के कारण आपने गलती से पेड़ पर फल फेंक दिया, जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई। ऋषि आपसे क्रोधित हो गए और उन्होंने आपको श्राप दिया कि अगले जन्म में आप वानर रूप में जन्म लेंगी।”
इसके बाद जब आपने उनसे क्षमा याचना की, तो उन्होंने कहा कि वह अपना श्राप वापस नहीं ले सकते, लेकिन वह आपको एक वरदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा, “उस रूप में तुम्हें एक दिव्य पुत्र की प्राप्ति होगी, जो स्वयं महादेव का अवतार होगा और जिसकी महिमा और कीर्ति युगों-युगों तक गूँजेगी।”
पवन देव ने आगे कहा, “इसी वरदान के कारण मैंने तुम्हें स्पर्श किया है। अब महादेव का अंश तुम्हारे पुत्र के रूप में प्रकट होगा।”
इस प्रकार अंजनी नंदन, पवन पुत्र, अत्यंत बलशाली रामदूत, केसरी नंदन, महावीर बजरंग बली हनुमान जी का जन्म हुआ।
हनुमान जयंती पर उपाय
- इस दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर उन्हें लाल फूल और नारियल चढ़ाएं।
- गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करें।
- हनुमान जी का नाम लेकर 108 बार “ॐ हनुमते नमः” मंत्र का जाप करें।
- हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं।
- लड्डू और मीठा पान का भोग लगाएं।
- हनुमान जी को गुलाब के फूलों की माला।
- चोला और चमेली का तेल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
निष्कर्ष
हनुमान जयंती का दिन भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त करने का अद्भुत अवसर है। हनुमान जयंती पर विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है। यह दिन विशेष रूप से संकटों को दूर करने, मनोकामनाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
हनुमान चालीसा : हिंदी अनुवाद के साथ