नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। उनकी मुस्कान अत्यंत सौम्य होती है, जिससे उन्हें “कूष्मांडा” कहा जाता है। यह माना जाता है कि कूष्मांडा माता ने अपने हाथों से अंड (ब्रह्मांड) का निर्माण किया, इसलिए उनका नाम “कूष्मांडा” पड़ा, जिसका अर्थ है ‘सृष्टि का अंडा’। अब हम जानेंगे माँ कूष्मांडा की कथा और पूजा विधि।
माँ की पूजा से भक्तों के सभी दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं, और उन्हें सुख, समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कूष्मांडा माता की पूजा का महत्त्व
माँ कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि, शक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माँ अपने भक्तों पर सदा कृपा बनाए रखती हैं और उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा पूरी श्रद्धा और ध्यान से करनी चाहिए। इस दिन उनकी पूजा करने से भक्तों के सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही, दीर्घायु, यश, बल और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। कूष्मांडा माता सरल हृदय वाली देवी हैं और सच्चे मन से की गई भक्ति से शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
माँ कूष्मांडा की पूजा विधि
1. स्नान और ध्यान
पूजा शुरू करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, माँ कूष्मांडा का ध्यान करें।
2. पूजन सामग्री अर्पित करें
माँ कूष्मांडा को धूप, सुगंधित अक्षत, लाल फूल, सफेद कद्दू, मेवे और शुभ सामग्रियाँ अर्पित करें।
3. भोजन का भोग लगाएं
माँ को भोजन का भोग लगाएं और फिर वह प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।
4. मालपुए का भोग
माँ को मालपुए का भोग विशेष रूप से लगाया जाता है। मान्यता है कि इससे देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं।
5. दही और हलवा अर्पण
माँ कूष्मांडा को दही और हलवा भी अर्पित किया जाता है। यह भोग देवी को प्रिय है।
6. हरे रंग के फल और नारियल अर्पित करें
हरे रंग के फल जैसे हरे केले, अंगूर, और शरीफा माँ कूष्मांडा को अर्पित करें। साथ ही, नारियल चढ़ाना भी अति शुभ माना जाता है।
7. हरे वस्त्र धारण करें
नवरात्रि के चौथे दिन हरे रंग के वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ होता है। माँ कूष्मांडा को हरा रंग बहुत प्रिय है।
माँ कूष्मांडा का मंत्र
पूजन के दौरान इस मंत्र का जाप करें:
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
इस मंत्र के जाप से माँ कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
माँ कूष्मांडा की कथा
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है। माँ कूष्मांडा की आठ भुजाएँ हैं। उनकी सात भुजाओं में कमंडल, धनुष और बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र और गदा है। उनकी आठवीं भुजा में रुद्राक्ष है, जो सभी प्रकार की सिद्धियाँ और धन-वैभव प्रदान करता है। कूष्मांडा माता का वाहन सिंह है, जो भक्तों को निर्भीकता का अनुभव कराता है।
कूष्मांडा माता की पूजा से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। “कूष्मांडा” का अर्थ है ऊर्जा का पवित्र गोला, वह गोला जिसने इस ब्रह्मांड की रचना की। ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था और चारों ओर अंधकार था, तब एक छोटा ऊर्जा का गोला प्रकट हुआ। यह ऊर्जा चारों ओर चमकने लगी और फिर इसने स्त्री का रूप धारण कर लिया।
आदिशक्ति का प्रथम स्वरूप
जिस स्त्री ने ऊर्जा का रूप लेकर आदिशक्ति का पहला स्वरूप धारण किया, वही कूष्मांडा माता हैं। उनका वास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है, जहाँ और कोई देवी-देवता निवास करने की क्षमता नहीं रखते। यहीं से माँ समस्त प्राणियों को ब्रह्मांड की सृष्टि और उसका पालन करने के लिए ऊर्जा प्रदान करती हैं।
कूष्मांडा माता द्वारा सृष्टि की प्रारंभिक रचना
माँ कूष्मांडा ने सृष्टि की रचना के लिए सबसे पहले तीन जीवों को उत्पन्न किया। उनकी कृपा से ब्रह्मांड का विस्तार हुआ और यह जगत जीवन से भर गया। माँ की इस कृपा के कारण ही उन्हें सृष्टि की रचनाकार और आदिशक्ति कहा जाता है।
कूष्मांडा माता की पूजा से भक्तों के सभी दुख और कष्ट दूर होते हैं। माँ अपने भक्तों को साहस, शक्ति, और समृद्धि प्रदान करती हैं। उनकी पूजा से जीवन में ऊर्जा का संचार होता है, और भक्त को अद्भुत शक्ति व आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
यह थी माँ की दिव्य कथा। इस कथा से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता से भरपूर रहना चाहिए। माँ की भक्ति करने से हर बाधा दूर होती है, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
माँ कूष्मांडा द्वारा तीन परम देवियों की रचना
कूष्मांडा माता ने अपने तीन नेत्रों से तीन परम देवियों की रचना की। उन्होंने अपने बाएँ नेत्र से एक भयानक रूप उत्पन्न किया, जिसे महाकाली नाम दिया गया। अपने ललाट (माथे) के नेत्र से उन्होंने दूसरा रूप रचा, जिसे महालक्ष्मी कहा गया। इसके बाद, अपने दाएँ नेत्र से उन्होंने तीसरा रूप उत्पन्न किया, जिसे महा सरस्वती का नाम दिया गया।
माँ कूष्मांडा के तेज से महाकाली के शरीर से एक पुरुष और एक स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष को भगवान शिव और स्त्री को सरस्वती नाम दिया गया।
कूष्मांडा माता की शक्ति और महालक्ष्मी के शरीर से भी एक पुरुष और एक स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम ब्रह्मा और स्त्री का नाम लक्ष्मी रखा गया।
इसी प्रकार, कूष्मांडा माता की शक्ति और महा सरस्वती के शरीर से भी एक पुरुष और एक स्त्री प्रकट हुए। पुरुष का नाम विष्णु और स्त्री का नाम लक्ष्मी रखा गया।
त्रिदेव और त्रिदेवियों का विवाह
माता कूष्मांडा ने शिवजी को शक्ति प्रदान की, ब्रह्मा को सरस्वती और विष्णु को लक्ष्मी उनकी पत्नी के रूप में प्रदान की। इस प्रकार, त्रिदेव और त्रिदेवियों का संतुलन स्थापित हुआ।इसके बाद, माता कूष्मांडा स्वयं एक दिव्य ऊर्जा और शक्ति के रूप में सूर्य में प्रवेश कर गईं। वहाँ से वह पूरे ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करती हैं।