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Aas Mata 2025: आस माता व्रत कब करें, महत्व और पूजा विधि 

Sadhana Pandey
Last updated: January 9, 2025 10:30 pm
By Sadhana Pandey
9 Min Read
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आस माता व्रत 2025
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Contents
आस माता व्रत का महत्व आस माता का व्रत कब करें? माता की पूजा तिथि 2025व्रत और पूजा की विधि आस माता पूजा की विधि:आस माता की कथाराजा और उनका पुत्रराजकुमार का वन की ओर मार्गआस माता की कृपापूजा के बाद:आस माता के व्रत और उद्यापन की विधिउद्यापन की विधिव्रत का फल 

आइए जानते हैं आस माता का व्रत कब रखा जाता है, उनकी पूजा कैसे की जाती है, और आस माता के उद्यापन का सही समय क्या है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तिथि के बीच किसी भी दिन यह व्रत और पूजा की जा सकती है। 

आस माता व्रत का महत्व 

माता की पूजा और व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में कोई कठिनाई नहीं आती। जो भी समस्या आती है, वह माता की कृपा से सरलता से दूर हो जाती है। यह व्रत बहुत ही फलदायी माना गया है। 

आस माता का व्रत कब करें? 

माता की पूजा तिथि 2025

  • आरंभ तिथि: शुक्रवार, 28 फरवरी 2025
  • अंतिम तिथि: शुक्रवार, 07 मार्च 2025

आस माता की पूजा का व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक कभी भी किया जा सकता है। इस दिन आस माता की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत करने से सभी इच्छायें पूरी होती है। यह व्रत का महिलायें द्वारा किया जाता है।

व्रत और पूजा की विधि 

आस माता का यह व्रत बहुत ही दुर्लभ है और इसकी विधि भी अत्यंत सरल है। व्रत करने वाले व्यक्ति को माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत से परिवारिक संबंधों में मिठास आती है और जीवन में सदैव सुख-शांति बनी रहती है। 

आस माता का व्रत फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक किया जा सकता है। इस दिन का व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है। व्रत के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान पर एक ताम्बे का कलश रखें। उस पर स्वस्तिक बनाएं।

कुमकुम से पूजा करें। गेहूँ के दाने लेकर आस माता की कथा सुनें। फिर हलवा-पुरी और पैसे निकालकर पूजा में शामिल करें। इस दिन सास के चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

आस माता पूजा की विधि:

1. स्नान आदि के बाद शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा स्थल पर एक चौकी रखें।

2. इस चौकी पर एक कलश में पानी भरकर रखें।

3. अब उसमें अगरबत्ती और दीपक जलाकर कलश पर स्वस्तिक बनाएं, जिसमें होली के प्रतीकों का उपयोग किया जाए।

4. स्वस्तिक बनाने के बाद उस कलश में चावल चढ़ाएं।

5. फिर गेहूं के दाने लेकर हाथ में रखें और आस माता की कथा सुनें या सुनाएं।

आस माता की कथा

आस माता की कहानी एक प्राचीन राजा और उनके पुत्र से जुड़ी हुई है।

राजा और उनका पुत्र

प्राचीन काल में एक राजा था, जिसका एक ही पुत्र था। राजा ने अपने पुत्र को बहुत स्नेह और प्यार से पाला। इस अधिक स्नेह के कारण उसका पुत्र बहुत जिद्दी हो गया और अपनी मर्जी से काम करने लगा।

राजा का पुत्र नदी किनारे बैठकर पानी भरने वाली महिलाओं के पानी के घड़ों को गिरा दिया करता था। जब राजा को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने आदेश दिया कि अब कोई भी महिला नदी किनारे मिट्टी के घड़े लेकर न जाए। इसके बाद, सभी महिलाएं तांबे के बर्तनों और बंदूकों से जल लाने लगीं।

लेकिन राजा के पुत्र की मस्ती फिर भी जारी रही। वह घरों में लोहे के टुकड़े फेंकने लगा। जब राजा को यह पता चला, तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने पुत्र को घर से निकाल दिया।

राजकुमार का वन की ओर मार्ग

राजकुमार घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल पड़ा। रास्ते में उसे चार वृद्ध महिलाएं मिलीं। अचानक, राजकुमार का छड़ी गिर पड़ा। जब राजकुमार घोड़े से उतरकर छड़ी उठाने लगा, तो इन चारों वृद्ध महिलाओं ने सोचा कि वह उन्हें प्रणाम कर रहा है।

पास खड़े लोग यह देखकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने राजकुमार से पूछा कि वह इन महिलाओं को क्यों प्रणाम कर रहा है। राजकुमार ने कहा कि वह इन महिलाओं को सम्मान दे रहा है। यह सुनकर वह महिलाएं बहुत खुश हुईं और आकाश से उनके ऊपर आशीर्वाद बरसाया। आकाश ने कहा, “जब तक तुम्हारे पास ये चार महिलाएं रहेंगी, तुम्हें सभी कार्यों में सफलता मिलेगी।”

आस माता की कृपा

इन महिलाओं का आशीर्वाद लेकर राजकुमार अपनी यात्रा जारी रखता है और एक देश की राजधानी पहुंचता है। उस देश का राजा जुआ खेलने में लिप्त था, लेकिन राजकुमार कभी भी जुए में नहीं हारता। एक दिन वह राजा सभी संपत्ति हार चुका था और उसे अपने राज्य की रक्षा के लिए एक विचार आया।

राजा ने अपने मंत्री से सलाह ली कि वह अपनी बेटी की शादी राजकुमार से कर दे। मंत्री की सलाह पर राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से कर दिया। राजकुमार के साथ शादी के बाद, राजकुमारी अपने ससुराल आई और उसे लगा कि उसे अपनी सास और ननंद की कमी महसूस हो रही है।

राजकुमारी ने अपनी सास और ननंद की कमी को पूरा करने के लिए कपड़े की गुड़ियाँ बनाई और उनका आशीर्वाद लिया। एक दिन वह अपने पति से यह कहती है कि वह अपनी सास और ननंद की सेवा करना चाहती है। राजकुमार और राजकुमारी अपने घर लौट आते हैं।

राजकुमार के माता-पिता उनकी वापसी से बहुत खुश होते हैं, लेकिन उनकी आँखों की रोशनी चली गई थी क्योंकि वे हमेशा अपने बेटे के बिछड़ने पर रोते रहते थे। राजकुमारी ने अपनी सास और ससुर का आशीर्वाद लिया और कुछ ही दिनों में वह एक बेटे को जन्म देती है। आस माता की कृपा से राजा और रानी की आँखों की रोशनी वापस आ जाती है और उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं।

पूजा के बाद:

1. पूजा के बाद एक थाली में पुरी, हलवा और दक्षिणा रखें।

2. वायना निकालकर उसे अपनी सास या परिवार की किसी बुजुर्ग महिला या ब्राह्मणी को दें।

3. उन्हें पैर छूकर आशीर्वाद लें।

4. भोजन करते समय व्रत को पूरा करें, बिना किसी आक्षेप के भोजन ग्रहण कर सकते हैं।

आस माता के व्रत और उद्यापन की विधि

आस माता का व्रत एवं पूजा अत्यंत फलदायक और शुभ होता है। इस व्रत को करने से घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती और समृद्धि बनी रहती है।

उद्यापन की विधि

यदि किसी घर में पुत्र का जन्म हुआ है या पुत्र का विवाह हुआ है, तो उस वर्ष आप आस माता का उद्यापन कर सकते हैं।अब हम जानेंगे आस माता के उद्यापन की विधि, जो बेहद सरल और प्रभावशाली है।

1. सात स्थानों पर चार पुरी और हलवा रखें।

2. एक पुरी को दक्षिण दिशा में रखें।

3. फिर यह पुरी अपनी सास या विवाहित महिलाओं को दें।

4. अगर संभव हो तो सात महिलाओं को एक पूरा भोजन भी खिलाएं।

5. इस दिन भी आस माता की कथा सुनना अनिवार्य है।

आस माता के व्रत और उद्यापन से घर में सुख-शांति, समृद्धि और शांति बनी रहती है। यह व्रत करने से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में हर संकट का समाधान होता है।

व्रत का फल 

जो व्यक्ति आस माता की पूजा और व्रत करता है, उसे माता की सुरक्षा प्राप्त होती है और वह जीवन के हर संकट से सुरक्षित रहता है। यह व्रत करने से शुभ परिणाम मिलते हैं और जीवन में खुशहाली बनी रहती है। 

यह माना जाता है कि इस व्रत से सभी कष्ट दूर होते हैं और सभी कार्य सफल होते हैं। इस व्रत में मीठी वस्तुएँ नहीं खाई जातीं। व्रत में महिलाएँ मंगलसूत्र पहनकर पूजा करती हैं, और व्रति के तौर पर साधना करती हैं।

आस माता की पूजा से परिवार में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। यह व्रत संतान सुख और परिवार में खुशहाली के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

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