शिव पुराण एक पवित्र संस्कृत ग्रंथ है जो हिंदू धर्म का अहम् हिस्सा है।
इसमें भगवान शिव के गुण, महिमा और उनके उपदेशों का वर्णन है। यह पुराण जीवन के आध्यात्मिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों को सिखाता है।
इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, धर्म, कर्म और मोक्ष के रहस्यों को प्रकट किया गया है।
शिवपुराण में शिवभक्ति, रुद्राभिषेक और शिवलिंग की पूजा के महत्व का वर्णन है।
इस ग्रंथ से भक्तों को भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और विश्वास में वृद्धि होती है।
शिवपुराण का अध्ययन करने से व्यक्ति पापों से मुक्ति प्राप्त करता है और उसे आत्मिक शांति मिलती है।

शिव पुराण-विद्येश्वर संहिता अध्याय 1
प्रयाग में सूत जी से मुनियों का तुरंत पापनाश करने वाले साधन के विषय में प्रश्न
जो आदि से लेकर अंत में है, नित्य मंगलमय है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करते हैं, जिनमें पांच मुख है, और जो खेल-खेल में जगत की रचना पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभाव रूप पांच प्रबल कर्म करते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ उमापति भगवान शिव का मै मन ही मन चिंतन करता हूं।
व्यास जी कहते हैं,धर्म का महान क्षेत्र जहां गंगा जमुना का संगम है उसे पुण्य में प्रयाग जो ब्रह्म लोक का मार्ग है, वहां एक बार महा तेजस्वी, महात्मा मुनियों ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया, उसे ज्ञान यज्ञ का समाचार सुनकर, ऋषि व्यास जी के शिष्य सूत जी ऋषि मुनियों के दर्शन के लिए आए।
सूत जी का सभी मुनियों ने विधिवत स्वागत व सत्कार किया। उनकी स्तुति कर हाथ जोड़कर उनसे कहा,-हे सर्वज्ञ विद्वान रोम हर्षण जी, आप बड़े भाग्यशाली है, अपने स्वयं व्यास जी से पुराण विद्या प्राप्त की है।
आप आश्चर्य स्वरूप कथाओं का भंडार है। आप भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता है। हमारा सौभाग्य है कि आपके दर्शन हुए। आपका यहां आना निरर्थक नहीं हो सकता। आप कल्याणकारी है।
हे उत्तम बुद्धि वाले सूत जी यदि आपका अनुग्रह है, तो गोपनीय होने पर भी आप सुभाषित तत्व का वर्णन करें, जिससे हमारी तृप्ति नहीं होती और उसे सुनने की इच्छा हमें ऐसे ही होती रहती है। कृपा कर उसे विषय का वर्णन करें।
घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुण्य कम से दूर होकर दुराचार में फंस जाएंगे, दूसरों की बुराई करेंगे, पराई स्त्रियों के प्रति असत होंगे, हिंसा करेंगे, मूर्ख, नास्तिक, और पशु बुद्धि हो जाएंगे, सूत जी कलयुग में वेद प्रतिपादित वर्ण आश्रम व्यवस्था नष्ट हो जाएगी।
प्रत्येक वर्ण और आश्रम में रहने वाले अपने-अपने धर्म के आचरण का परित्याग कर विपरीत आचरण करने में सुख प्राप्त करेंगे।
इस सामाजिक वर्ण संकरता से लोगों का पतन होगा।
परिवार टूट जाएंगे समाज बिखर जाएगा, प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोगों की मृत्यु होगी।
धन का क्षय होगा स्वार्थ और लाभ भी प्रवृत्ति बढ़ जाएगी, ब्राह्मण लोभी हो जायेंगे। वेद भेज कर धन प्राप्त करेंगे, मद से मोहित होकर दूसरों को ठगेंगे, पूजा पाठ नहीं करेंगे और ब्रह्म ज्ञान से शुन्य होंगे।
क्षत्रिय अपने धर्म को त्याग कर, कुसंग पापी और व्यभिचारी हो जाएंगे शौर्य से रहित हो वह शुद्र जैसा व्यवहार करेंगे और काम में अधीन हो जाएंगे।
वैश्य धाम से विमुख हो संस्कार भ्रष्ट होकर कुमार्ग धनो पाजर्न पराणय होकर नापतोल में ध्यान लगाएंगे।
शूद्र अपना धर्म कर्म छोड़कर अच्छी वेशभूषा से सुशोभित हो व्यर्थ घूमेंगे। वह कुटिल और ईर्ष्यालु होकर अपने धर्म के प्रतिकूल हो जाएंगे।
कुकर्मी और वाद विवाद करने वाले होंगे, वह स्वयं को कुलिन मानकर सभी धर्म और वर्णों में विवाह करेंगे। स्त्रियां सदाचार से विमुख हो जाएगी। वह अपने पति का अपमान करेंगी और सास ससुर से लड़ेंगी।
मालिन भोजन करेंगे उनका शील स्वभाव बहुत बुरा होगा। सूत जी इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गई है और जिन्होंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है, ऐसे लोग लोक परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त करेंगे इस चिंता से हम सभीव्याकुल है।
परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है इस धर्म का पालन करने वाला दूसरों को सुखी करता हुआ स्वयं भी प्रसन्नता अनुभव करता है। यह भावना यदि निष्काम हो तोकरता का हृदय शुद्ध करते हुए उसे परमती प्रदान करती है।
हे महामुनि आप समस्त सिद्धांतों के ज्ञाता है कृपा कर कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे इन सबके पापों का तत्काल नाश हो जाए।
विदेश्वर संहिता का प्रथम अध्याय संपन्न
शिवपुराण-विद्येश्वर संहिता अध्याय 2
शिव पुराण का परिचय और महिमा
सूत जी कहते हैं साधु महात्माओ,आपने बहुत अच्छी बात पूछी है यह प्रश्न तीनों लोको का हित करने वाला है आप लोगों के स्नेह पूर्ण आग्रह पर गुरुदेव व्यास का स्मरण कर मैं समस्त पाप राशियों से उद्धार करने वाले शिव पुराण की अमृत कथा का वर्णन कर रहा हूं।
यह वेदांत का सार सर्वस्व है, यहीं पर लोक में परमार्थ को देने वाला है तथा दुष्टो का विनाश करने वाला है। इसमें भगवान शिव के उत्तम यश का वर्णन है धर्म अर्थ काम और मोक्ष आदि पुरुषार्थ को देने वाला पुराण अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है।
शिव पुराण के अध्ययन से कलयुग के सभी पापों में लिप्त जीव उत्तम गति को प्राप्त होंगे। इसके उदय से ही कलयुग का उत्पादन शांत हो जाएगा शिव पुराण को वेद तुल्य माना जाएगा।
इसका प्रवचन सर्वप्रथम भगवान शिव नहीं किया था। इस पुराण के 12 खंड है या भेद है यह 12 संहिता है, एक विदेश्वर संहिता, दो रुद्र, तीन विनायक संहिता, चार उमा संहिता,पांच सहस्त्र कोटी रूद्र संहिता, छः एकादश रुद्रा संहिता,सात कैलाश संहिता, आठ शत्र रूद्र संहिता, नौ कोटी रूद्र संहिता, 10 मातृ संहिता, 11 विविया संहिता तथा 12 धर्म संहिता
विदेश्वर संहिता में 10000 श्लोक है, रुद्र,विनायक, उमा और मातृ संहिता प्रत्येक में 8000 श्लोक है।
एकादश रूद्र संहिता में 13000, कैलाश संहिता में 6000, शत्र रूद्र संहिता में 3000, कोटि रुद्रसंहिता में 9000, सहस्त्र कोटी रूद्र संहिता में 11000, वायवीय संहिता में 4000, तथा धर्म संहिता में 12000 श्लोक है। मूल शिव पुराण में कल 1 लाख श्लोक है। परंतु व्यास जी ने इसे 24000 श्लोक में संक्षिप्त कर दिया है।
पुराणों की क्रम संख्या में शिव पुराण का चौथा स्थान है जिसमें 7 संहिताये हैं।
पूर्व काल में भगवान शिव ने 100 करोड लोगों का पुराण ग्रंथ ग्रंथित किया था।
सृष्टि के आरंभ में निर्मित यह पुराण साहित्य अधिक विस्तृत था द्वापर युग में द्वपयान आदि महर्षियों ने पुराण को 18 भागों में विभाजित कर चार लाख श्लोक में इसको संक्षिप्त कर दिया इसके उपरांत व्यास जी ने 24000 श्लोको में इसका प्रतिपादन किया यह वेद तुल्य पुराण, विदेश्वर रूद्र संहिता, शत्र रूद्र संहिता, कोटी रुद्र संहिता, उमा संहिता, कैलाश संहिता, और वायवीय संहिता नामक सात सताओ में विभाजित है।
यह सात सताओ वाला शिव पुराण वेद के समान प्रमाणिक तथा उत्तम गति प्रदान करने वाला हैं। इस निर्मल शिव पुराण की रचना भगवान शिव द्वारा की गई है तथा इसको संक्षेप में संकलित करने का श्री व्यास जी को जाता है।
शिव पुराण सभी जीवो का कल्याण करने वाला सभी पापों का नाश करने वाला है यही सत्पुरुष को कल्याण प्रदान करने वाला है। यह तुलना रहित है तथा इसमें वेद प्रतिपादित अद्वैत ज्ञान तथा निष्कपट धर्म का प्रतिपादन है।
शिव पुराण श्रेष्ठ मंत्र समूह का संकलन है तथा यही सभी के लिए शिव धाम की प्राप्ति का साधन है। समस्त पुराणों में सर्वश्रेष्ठ शिव पुराण इर्षा रहित अंतरण वाले विद्वानों के लिए जानने की वस्तु है।
इसमें परमात्मा का गण किया गया है इस अमृतमय शिव पुराण को आधार से पढ़ने और सुनने वाला मनुष्य भगवान शिव का प्रिया होकर परम गति को प्राप्त कर लेता है।
विदेश्वर संहिता का द्वितीय अध्याय संपन्न हुआ।
शिवपुराण-विद्येश्वर संहिता अध्याय 3
श्रवण कीर्तन और मनन साधनों की श्रेष्ठता
व्यास जी कहते हैं, सूत जी के वचनों को सुनकर सभी महर्षि बोले भगवन आप वेद तुल्य अद्भुत एवं पुण्यम शिव पुराण कीकथा सुनाइए, सूट जी ने कहा है महर्षि गण आप कल्याणमय भगवान शिव का स्मरण करके वेद के सर से प्रकट हुए शिव पुराण की अमृत कथा सुनिए।
शिव पुराण में भक्ति ज्ञान और वैराग्य का गण किया गया है। जब शृष्टि आरंभ हुई तो छह स्कूलों के महर्षि आपस में वाद विवाद करने लगे कि अमुक वस्तु उत्कृष्ट है अमुक नहीं।
जब इस विवाद में बड़ा रूप धारण कर लिया तो सभी अपनी शंका के समाधान के लिए सृष्टि की रचना करने वाले अविनाशी ब्रह्मा जी के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगे हे प्रभु आप संपूर्ण जगत को धारण उनका पोषण करने वाले हैं।
प्रभु हम जानना चाहते हैं की संपूर्ण तत्वों से परे परात्पर पुराण पुरुष कौन है?
ब्रह्मा जी ने कहा ब्रह्मा विष्णु रुद्र और इंद्र आदि से युक्त संपूर्ण जगत समस्त भूतों और इंद्रियों के साथ पहले प्रकट हुआ है वे देव महादेव ही सर्वज्ञ और संपूर्ण है भक्ति से ही इनका साक्षात्कार होता है दूसरे किसी उपाय से इनके दर्शन नहीं होते।
भगवान शिव में अटूट भक्ति मनुष्य को संसार बंधन से मुक्ति दिलाती है। भक्ति से उन्हें देवता की कृपा प्रसाद प्राप्त होता है जैसे अंकुर से बीज और बीज से अंकुर पैदा होता है भगवान शंकर की कृपा प्रसाद प्राप्त करने के लिए आप सब ब्रह्म ऋषि धरती पर सहस्त्र वर्षों तक चलने वाले विशाल यज्ञ करो।
यज्ञपती भगवान शिव की कृपा से ही विद्या के सार तत्व साधन का ज्ञान प्राप्त होता है। शिवपद की प्रति साध्य और उनकी सेवा ही साधन है तथा जो मनुष्य बिना किसी फल की कामना किए उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं वहीं साधक है।
कर्म के अनुष्ठान से प्राप्त फल कोभगवान शिव के श्री चरणों में समर्पित करना ही परमेश्वर की प्राप्ति का उपाय है तथा यही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है साक्षात महेश्वर ने ही भक्ति के साधनों का प्रतिपादन किया है।
कान से भगवान के नाम,गुण और लीलाओं का श्रवण वाणी द्वारा उनका कीर्तन तथा मन में उनका मनन शिव पद की प्राप्ति के महान साधन है तथा इन साधनों से ही संपूर्ण मनोरथ की सिद्धि होती है।
जिस वस्तु को हम प्रत्यक्ष अपनी आंखों के सामने देख सकते हैं उसकी तरफ आकर्षण स्वाभाविक है परंतु जिस वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं जा सकता उसे केवल सुनकर और समझ कर ही उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न किया जाता है अतः श्रवण पहला साधन है, श्रवण द्वारा ही गुरु मुख से तत्व को सुनकर श्रेष्ठ बुद्धि वाला विद्वान अन्य साधन, कीर्तन और मनन की शक्ति व सिद्धि प्राप्त करने का यत्न करता है।
मनन के बाद इस साधन की साधना करते रहने से धीरे-धीरे भगवान शिव का सहयोग प्राप्त होता है और लौकिक आनंद की प्राप्ति होती रहती है
विदेश्वर संहिता तीसरा अध्याय समाप्त

शिवपुराण-विद्येश्वर संहिता अध्याय 4
सनत कुमार व्यास संवाद
सूत जी कहते हैं मुनिया इस साधन का महत्व बताते समय मैं एक प्राचीन वृतांत का वर्णन करूंगा जिसे आप ध्यान पूर्वक सुने। बहुत पहले की बात है पराशर मुनि के पुत्र मेरे गुरु व्यासदेव जी सरस्वती नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे।
एक दिन सूर्य के समान तेजस्वी विमान से यात्रा करते हुए भगवान सनत कुमार वहां जा पहुंचे।
मेरे गुरु ध्यान से मग्न थे, जागने पर अपने सामने सनत कुमार जी को देखकर वह बड़ी तेजी से उठे और उनके चरणों का स्पर्श कर उन्हें अर्घ्य देकर योग्य आसन पर विराजमान किया प्रसन्न होकर सनत कुमार की गंभीर वादी में बोले मुनि तुम सत्य का चिंतन करो सत्य तत्व का चिंतन ही श्रेय प्राप्ती का मार्ग है इसी से कल्याण प्रताप का मार्ग प्रशस्त होता है।
यही कल्याणकारी है। जब यह जीवन में आ जाता है तो सब सुंदर हो जाता है।सत्य का अर्थ है सदैव रहने वाला इस काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह सदा एक समान रहता है सनत कुमार जी ने महर्षि व्यास को आगे समझते हुए कहा, महर्षि सत्य पदार्थ भगवान शिव ही है।
भगवान शंकर का कीर्तन और मनन ही उन्हें प्राप्त करने के सर्वश्रेष्ठ साधन है। पूर्व काल में मैं दूसरे अनेका नेक साधनों के भ्रम में पड़ा घूमता हुआ तपस्या करने मंदराचल पर जा पहुंचा।
कुछ समय बाद महेश्वर शिव की आज्ञा से सबकी साक्षी तथा शिव गणों के स्वामी नंदी केश्वर वहां आए और स्नेह पूर्वक मुक्ति का साधन बताते हुए बोल शंकर का श्रवण कीर्तन और मनन ही मुक्ति का स्रोत है यह बात मुझे स्वयं देवाधि देव भगवान शिव ने बताई है अतः तुम इन्हीं साधनों का अनुष्ठान करो।
व्यास जी से ऐसा कहकर अनुगा सहित सनत कुमार ब्रह्म धाम को चले गए इस प्रकार इस उत्तम वृतांत का संक्षेप में मैं वर्णन किया है।
ऋषि बोले सूत जी आपने श्रवण कीर्तन और मनन को मुक्ति का उपाय बताया है। किंतु जो मनुष्य इन तीनों सदनों में असमर्थ हो वह मनुष्य कैसे मुक्त हो सकता है? किस कर्म के द्वारा बिना यत्न के ही मोक्ष मिल सकता है?
विदेश्वर संहिता चौथा अध्याय संपन्न हुआ
शिव पुराण-विद्येश्वर संहिता अध्याय 5
शिवलिंग का रहस्य एवं महत्व
सूत जी कहते हैं हे शौनक जी श्रवण कीर्तन और मनन जैसे साधनों को करना प्रत्येक के लिए सुगम नहीं है इसके लिए योग्य गुरु और आचार्य चाहिए गुरु मुख से सुनी हुई वाणी मन की शंकाओं को दगद करती है।
गुरमुख से सुने शिव तत्व द्वारा शिव के रूप स्वरूप के दर्शन और गुणानुवाद में रसानुभूति होती है। तभी भक्त कीर्तन कर पता है।
यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो मोक्षार्थी को चाहिए कि वह भगवान शंकर के लिंग एवं मूर्ति की अपना करके रोज उनकी पूजा करें।
इसे अपना कर वह इस संसार सागर से पर हो सकता है। संसार सागर से पर होने के लिए इस तरह की पूजा आसानी से भक्तिपूर्वक की जा सकती है। अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार धनराशि से शिवलिंग या शिव मूर्ति की स्थापना करेंऔर उसकी पूजा करें।
मंडप गोपुर तीर्थ मठ एवं क्षेत्र की स्थापना कर उत्सव का आयोजन करना चाहिए तथा पुष्प,धूप, वस्त्र, गंध, दीप तथा पुआ और तरह-तरह के भोजन नैवेद्य के रूप में अर्पित करने चाहिए श्री शिवजी ब्रह्मा रूप और निष्कल अर्थात कल रहित भी है और कला सहित भी मनुष्य इन दोनों स्वरूपों की पूजा करते हैं।
शंकर जी को ही ब्रह्मा पदवी भी प्राप्त है कल पूर्ण भगवान शिव की मूर्ति पूजा भी मनुष्य द्वारा की जाती है और वेदों में भी इस तरह की पूजा की आज्ञा दी है।
सनत कुमार जी ने पूछा है नंदीकेश्वर पूर्व काल में उत्पन्न हुए लिंग वर अर्थात मूर्ति की उत्पत्ति के संबंध में आप हमें विस्तार से बताइए नंदीकेश्वर ने बताया, मुनेश्वर प्राचीन काल में एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य युद्ध हुआ तो उनके बीच स्तंभ रूप में शिवजी प्रकट हो गए इस प्रकार उन्होंने पृथ्वी लोक का संरक्षण किया उसी दिन से महादेव जी का लिंग के रूप में पूजन होना शुरू हुआ।
अन्य देवताओं की साकार अर्थात मूर्ति पूजन होने लगी जो की अभीष्ट फल प्रदान करने वाली थी परंतु शिव जी के लिंग और मूर्ति दोनों ही रूप पूजनीय है।
विदेश्वर संहिता का पांचवा अध्याय संपन्न हुआ
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