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Reading: Durga Saptshati Path 3: श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय महिषासुर वध
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Durga Saptshati Path 3: श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय महिषासुर वध

Sadhana Pandey
Last updated: January 8, 2025 11:02 pm
By Sadhana Pandey
8 Min Read
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Mahishasur vadh
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Contents
श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्यायदेवी के दिव्य रूप का वर्णनचिक्षुर के राक्षस सेनापति का आक्रोशभद्रकाली का प्रकोप और चिक्षुर का विनाशचामर का पराजय और देवी का प्रहारउदग्र और कराल का संहार :दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्यायदुर्मुख का यमलोक प्रस्थानमहिषासुर का प्रचंड आक्रमण और देवी का क्रोधराक्षस महिषासुर का स्वरूप परिवर्तनमहिषासुर का अत्यधिक विरोध :दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्यायमहिषासुर का वधदुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय सार

दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय में श्री जगदंबा माँ ने सेनापतियो सहित महिषासुर का वध कैसे किया, उस का वर्णन किया गया है।

श्री दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

देवी के दिव्य रूप का वर्णन

श्री जगदंबा का तेज हजारों सूर्यों के उदयकाल के समान है। वह लाल रंग की साड़ी पहने हुए हैं, उनके शरीर पर खोपड़ियों की माला सुशोभित है। उनके दोनों वक्षों पर लाल चंदन का लेप लगा हुआ है। उनके हाथों में मालिका विद्या, अभय और वर मुद्रा हैं।

उनका त्रिनेत्री मुख अत्यंत सुंदर दिख रहा है। उनके सिर पर चंद्रमा के साथ रत्नजड़ित मुकुट है। वह कमल के आसन पर विराजमान हैं। मैं ऐसी देवी को अपनी भक्ति सहित प्रणाम करता हूं।

चिक्षुर के राक्षस सेनापति का आक्रोश

ऋषि कहते हैं कि जब राक्षसों की सेना इस प्रकार नष्ट हो रही थी, तब महान राक्षस सेनापति चिक्षुर क्रोधित होकर अम्बिका देवी से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा।

उसने देवी पर तीरों की वर्षा इस प्रकार शुरू की जैसे बादल धैर्यवान पर्वत के सिर पर जल की धारा बहा रहा हो। देवी ने अपने तीरों से उसके तीरों के समूह को सरलता से काट दिया और उसके घोड़े व अन्य साथी भी मार डाले।

चिक्षुर के धनुष, रथ, घोड़े और तीर नष्ट हो जाने के बाद, वह राक्षस देवी की ओर तलवार और ढाल लेकर दौड़ा। उसने अपने सिर पर तलवार का प्रहार किया और देवी के बाईं भुजा पर तेज प्रहार किया। लेकिन जैसे ही तलवार वहां पहुंची, वह टूट गई।

भद्रकाली का प्रकोप और चिक्षुर का विनाश

चिक्षुर क्रोध में अपनी आंखें लाल करते हुए, अपनी ढाल को हाथ में लेकर देवी के पास पहुंचा। तब उस महादैत्य ने भद्रकाली पर आक्रमण किया। भद्रकाली ने अपने दिव्य तेज से चिक्षुर को मार गिराया। देवी के प्रचंड स्वरूप के सामने वह राक्षस टिक न सका।

जब चिक्षुर ने अपने पूरे बल से देवी पर हमला किया, तब देवी ने अपनी शक्ति से उसे धराशायी कर दिया। उसका शरीर, जो तेजस्वी सूर्य के समान चमक रहा था, देवी के प्रचंड प्रहार के आगे ध्वस्त हो गया।

देवी के प्रचंड प्रहार से महादैत्य चिक्षुर के अनेक टुकड़े हो गए और उसका अंत हो गया। उसके जीवन का दीपक बुझ गया। चिक्षुर के निधन के बाद, महिषासुर का सेनापति चामर, जो देवताओं को सताने वाला था, हाथी पर सवार होकर युद्ध करने आया।

चामर का पराजय और देवी का प्रहार

चामर ने देवी पर अपनी शक्ति से आक्रमण किया, लेकिन देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से उसका आक्रमण विफल कर दिया। देवी की शक्ति से उसकी शस्त्र शक्ति धरती पर गिरकर खंडित हो गई। यह देखकर चामर क्रोधित हुआ, परंतु देवी ने उसे भी अपने बाणों से मार गिराया।

इसी बीच, देवी का सिंह चामर के हाथी के सिर पर कूद पड़ा और पूरी ताकत से उससे युद्ध करने लगा। दोनों के बीच भीषण संग्राम हुआ। अंततः सिंह ने चामर को आकाश में उछाल दिया और गिरने के बाद अपने तेज नखों से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया।

उदग्र और कराल का संहार :दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

देवी ने उदग्र को पत्थरों और वृक्षों से मारकर पराजित कर दिया। कराल भी देवी के प्रहारों से धराशायी हो गया। देवी के गुस्से में भरे प्रहारों से कराल का अंत हुआ।

देवी ने गदा के प्रहार से उध्दतका को कुचल दिया। भिंदीपाल से वाष्कल को तथा बाणो से ताम्र और अन्धक को मौत के घाट उतार दिया। त्रिनेत्र देवी ने अपने त्रिशूल से उग्रास्य  उग्रवीर्य और महाहनु जैसे राक्षसों का संहार किया। विडाल का सिर तलवार के एक ही प्रहार से काट दिया।

दुर्मुख का यमलोक प्रस्थान

देवी के बाणों से दुर्मुख और दुर्धर भी यमलोक भेज दिया गया। अपनी सेना का इस प्रकार विनाश होते देख, महिषासुर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने भैंसे का रूप धारण कर देवियों पर आक्रमण करना आरंभ किया।

महिषासुर का प्रचंड आक्रमण और देवी का क्रोध

महिषासुर ने अपने विशाल शरीर से देवियों को कुचलना शुरू किया। वह कभी अपने सींगों से वार करता, तो कभी अपनी गति से सैनिकों को चकनाचूर कर देता। उसके गरजने से कुछ घायल हो गए, कुछ उसकी सांसों की तीव्रता से नष्ट हो गए। इस प्रकार उसने देवी की सेना को बिखेर दिया।

राक्षस महिषासुर ने अपनी प्रचंड शक्ति से महादेव के सिंह पर हमला कर दिया। यह देख देवी जगदंबा अत्यधिक क्रोधित हो उठीं। दूसरी ओर, महिषासुर अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए पृथ्वी को कंपाने लगा।

महिषासुर ने अपनी पूंछ से ऊंचे-ऊंचे पर्वतों को उखाड़कर फेंक दिया। उसकी गति से पृथ्वी फटने लगी और समुद्र अपने किनारों को तोड़ने लगा। उसकी सींगों की टक्कर से बादल फटने लगे। तेज हवा के झोंकों से पर्वत गिरने लगे।

महिषासुर की इस भयंकर शक्ति को देखकर चंडिका देवी ने उसे मारने का दृढ़ संकल्प लिया। उन्होंने उसे पास जाकर घेर लिया और भयंकर युद्ध शुरू हुआ।

राक्षस महिषासुर का स्वरूप परिवर्तन

युद्ध के दौरान, महिषासुर ने भैंसे का रूप त्यागकर सिंह का रूप धारण कर लिया। फिर वह राक्षस के रूप में प्रकट हुआ। जैसे ही मां जगदंबा ने उसका सिर काटने की तैयारी की, वह एक पुरुष के रूप में प्रकट होने लगा।

गणों और देवों से परेशान महिषासुर ने अपना रूप फिर से भैंस का बदल लिया और तीनों लोकों को भयभीत करना शुरू कर दिया। इस पर देवी चंडी ने क्रोध में आकर मधुर शहद पीना शुरू कर दिया और अपनी आंखों से लाल होते हुए हंसने लगीं।

महिषासुर का अत्यधिक विरोध :दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय

महिषासुर ने देवी चंडी पर सींगों से भारी-भरकम पर्वत फेंकने शुरू किए, लेकिन देवी ने अपने बाणों से उन पर्वतों को तोड़ दिया। उनकी आवाज में उग्रता और लालिमा बढ़ रही थी। इसके बाद देवी ने एक घातक छलांग लगाई और महिषासुर को अपने पांव से दबाकर उसकी गर्दन पर अपने बिचुए से प्रहार किया।

भले ही देवी ने महिषासुर को दबाया, वह पूरी तरह से हार मानने को तैयार नहीं था। महिषासुर ने दूसरी तरह से देवी के खिलाफ युद्ध जारी रखा। लेकिन देवी ने उसकी पूरी शक्ति और प्रभाव से उसे पराजित कर दिया।

महिषासुर का वध

अंत में देवी ने अपनी बड़ी तलवार से महिषासुर का सिर काट डाला। महिषासुर का सिर काटते ही उसकी पूरी सेना भाग गई और देवता, देवियाँ, और तमाम ऋषि-मुनि खुश होकर देवी दुर्गा की पूजा करने लगे।

गंधर्वराज ने संगीत की धुनें छेड़ी और अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। इस प्रकार महिषासुर वध की कथा पूरी हुई, जो देवी महात्म्य के तीसरे अध्याय के अंतर्गत श्री मार्कंडेय पुराण में आती है।

जय श्री दुर्गा

दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय सार

दुर्गा सप्तशती तीसरा अध्याय में महिषासुर वध की यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है। जय माता दी।

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BySadhana Pandey
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1 Comment
  • Gyan Prakash Sharma says:
    March 30, 2025 at 9:31 pm

    धन्यवाद जय हो

    Reply

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If the guidance is right then even a small lamp is no less than the sun..

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