आदित्य हृदय स्तोत्र क्या है?
आदित्य हृदय स्तोत्र वाल्मीकि रामायण में वर्णित है और यह रामायण के 105वें अध्याय में लिखा गया है। इस स्तोत्र को महर्षि अगस्त्य ने भगवान श्रीराम को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए सुनाया था। उन्होंने भगवान राम से कहा था कि आप आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें, इससे आप युद्ध में विजय प्राप्त करेंगे। आदित्य हृदय स्तोत्र के अनेक नियम, महत्व और लाभ है।
यदि आप सूर्य के समान तेजस्वी बनना चाहते हैं, अपने व्यक्तित्व में चमक लाना चाहते हैं, और किसी भी प्रकार के मुकदमे, शिक्षा, या जीवन के संघर्षों में विजय पाना चाहते हैं, तो आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अचूक माना गया है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का महत्त्व
जीवन में चाहे कोई भी विषय हो, शिक्षा, प्रतियोगिता या नौकरी, हर जगह हम सफलता और विजय पाना चाहते हैं। पराजय कौन चाहता है? जब बात सफलता और विजय की होती है, तो ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह सूर्य देव माने जाते हैं। यदि सूर्य देव की उचित रूप से पूजा की जाए, तो जीवन की सबसे कठिन राहें भी आसान हो सकती हैं। चाहे समस्या कितनी भी बड़ी हो, आप विजय प्राप्त कर सकते हैं।
विजय प्राप्त करने का मार्ग आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से होकर जाता है।
यह स्तोत्र किनके लिए लाभकारी है?
- सरकारी मामलों या सरकारी मुकदमों में विजय प्राप्त करने के लिए।
- यदि आप किसी बीमारी, विशेषकर हड्डियों या आंखों की समस्या से परेशान हैं।
- यदि आपके और आपके पिता के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं या आपके पिता को किसी बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
- जीवन के किसी भी बड़े कार्य में सफलता और विजय के लिए।
आदित्य हृदय स्तोत्र विनियोग
ओम अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
पूर्व पिठित
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्। येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्। चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।
मूल -स्तोत्र
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्। पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:। एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि:।।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:। महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः।।
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:। वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:।
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्। सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:।।
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्। तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:। अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन:।।
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:। घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।।
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव:।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:। तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:।।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:। नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम:।।
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम:। नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे। भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने। कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे। नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:। पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:। एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च। यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु:।।
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च। कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्। एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि। एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा। धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्।।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्। त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्। सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ के नियम और विधि
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ धन प्राप्ति के लिए किया जाता है। अगर कर्क, वृश्चिक और मीन राशि के लोग जीवन में उच्च पद और बहुत सारा धन चाहते हैं, तो उन्हें इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। यह उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी है जिनकी कुंडली में सूर्य की स्थिति अच्छी नहीं है।
सूर्य की कुंडली में स्थिति:
यदि आपकी कुंडली में सूर्य दूसरे, तीसरे, चौथे, छठे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में है, तो इसका मतलब है कि सूर्य की स्थिति बहुत अनुकूल नहीं है। ऐसे लोग भी आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
पाठ के नियम और विधि:
- पाठ का समय:
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रविवार के दिन सुबह के समय करें।
- जब सूर्य उदय हो रहा हो या धीरे-धीरे उग रहा हो, उस समय इसका पाठ करना सबसे अच्छा होता है।
- यदि आप हर दिन सूर्य उदय के समय पाठ करेंगे, तो यह और भी शुभ होगा।
- सुबह की तैयारी:
- सुबह जल्दी उठें, स्नान करें।
- स्नान के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
- जल अर्पित करने के बाद सूर्यदेव के सामने बैठकर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ का समय सीमा:
- यदि आप सुबह 5:30 या 6:00 बजे पाठ करेंगे, तो यह सर्वोत्तम समय है।
- सर्दियों में 10:00 बजे के बाद सूर्य के सामने पाठ करने से समस्या हो सकती है।
- ग्रीष्मकाल में सूर्य की तेज गर्मी के कारण देर से पाठ करना कठिन हो सकता है।
- ध्यान और प्रार्थना:
- पाठ करने के बाद सूर्यदेव का ध्यान करें।
- ध्यान करते हुए और हाथ जोड़कर अपनी इच्छाओं और विजय प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।
- खान-पान के नियम:
- जो लोग आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कर रहे हैं, उन्हें रविवार के दिन मांसाहार, शराब और तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- अगर आप बीमारियों से मुक्ति के लिए यह पाठ कर रहे हैं, तो सूर्यास्त के बाद नमक का सेवन बंद कर दें।
- ईमानदारी और नियमितता:
- ईमानदारी और श्रद्धा से आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- नियमित रूप से पाठ करने से जीवन में हर तरह की विजय प्राप्त की जा सकती है।
विशेष सुझाव:
आदित्य हृदय स्तोत्र एक अद्भुत प्रार्थना है। इसके नियमों का पालन करके और इसे पूर्ण श्रद्धा से पढ़कर आप अपने जीवन में हर प्रकार की समस्याओं का समाधान और विजय प्राप्त कर सकते हैं।
Nice, translation. AUM ghrini suryay namah🙏