कार्तिक मास के बाद आने वाले अगहन मास के प्रत्येक गुरुवार को महालक्ष्मी जी के बड़े विधि विधान से पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। घर में महिलाएं दिनभर व्रत धारण करती है और कथा सुनकर मां लक्ष्मी को याद करती है। महिलाएं माता लक्ष्मी को प्रसन्न करके मनवांछित फल की कामना करती है।
अगहन गुरुवार महालक्ष्मी व्रत कथा।
भारतवर्ष के सौराष्ट्र देश के द्वापर युग की यह कहानी है। सौराष्ट्र में उसे वक्त भद्रश्रवा नाम के राजा रहते थे, वह बहुत पराक्रमी राजा थे।उन्हें चार वेद, छह शास्त्र और 18 पुराणो का ज्ञान था। उनकी रानी का नाम सूरतचंद्रिका था, रानी दिखने में सुंदर व सुलक्षणा थी और पतिव्रता थी। उन दोनों को सात पुत्र थे और उसके बाद उन्हें एक कन्या का वरदान मिला था। उन्होंने कन्या का नाम शामबाला रखा था। एक बार महालक्ष्मी जी के मन में आया की जाकर उन राजा के राज प्रसाद में रहे इससे राजा को दुगनी धन संपत्ति प्राप्त होगी वह धन दौलत से उसकी प्रजा को और सुख दे पाएंगे। गरीब के घर जाने पर वह स्वार्थी होकर केवल अपने ऊपर ही खर्च करेगा। ऐसा सोचकर उन्होंने एक बुढी़ ब्राह्मण स्त्री का रूप धारण कर हाथ में लाठी लेकर रानी के द्वार तक पहुंची। उन्हें देखकर एक दासी सामने आई, उसने उनके बारे में पूछा। बुढी़ का रूप धारण किए महालक्ष्मी जी ने कहा- मेरा नाम कमला है व मेरे पति का नाम भुवनेश है और हम द्वारिका में रहते हैं।उसने बताया कि तुम्हारी रानी पिछले जन्म में एक गरीब वैश्य की पत्नी थी। दरिद्रता के कारण रोज उन में झगड़े होते तथा उसका पति उसे रोज पिटता था जिससे परेशान होकर वह उसे छोड़कर जंगल चली गई और खाली पेट भटकने लगी। उसकी दुर्दशा पर मुझे दया आई। तब मैंने उसे सुख संपत्ति देने वाली श्री महालक्ष्मी जी की कथा सुनाई और मेरे कहने पर उसने उनका व्रत किया। जिससे देवी ने प्रसन्न होकर उसे गरीबी दूर होने का आशीर्वाद दिया। जिस कारण उसका घर, दौलत वह संपत्ति से भर गया और बाद में पति-पत्नी परलोक सुधारे। श्री महालक्ष्मी जी का व्रत करने के कारण वे दोनों महालक्ष्मी लोक में रहे। इसी कारण उनका जन्म राजघराने में हुआ, परंतु व महालक्ष्मी जी का व्रत करना भूल गई। इसके बाद दासी उनको प्रणाम कर रानी को बताने अंदर चली गई। राजसुख में रहते हुए रानी को अपने ऐश्वर्याश का बहुत घमंड था। दासी द्वारा बुढ़िया की बातें सुनकर वह क्रोधित हो राज द्वार पर आकर बुढ़िया रूपी दूसरों को भला बुरा कहा।रानी सूरतचंद्रिका के इस प्रकार के बर्ताव व अनादर देखकर माता ने वहां ठहरना उचित नहीं समझा और वहां से चल पड़ी। चालते समय उन्हें राजकुमारी शामबाला मिली, उन्होंने शामबाला को सारी बातें बताई। राजकुमारी ने बातों के लिए उनसे क्षमा मांगी। माता को उस पर दया आ गई। उस दिन अगहन माह का पहला गुरुवार था, उन्होंने राजकुमारी को श्री महालक्ष्मी जी के व्रत के बारे में बताया। राजकुमारी ने श्रद्धापूर्वक व्रत रखा। जिसके फल स्वरुप उसका विवाह राजा सिद्धेश्वर के पुत्र मालाधार के साथ हुआ और वह ससुराल में आनंदपूर्वक दिन बिताने लगी। इधर रानी पर श्री महालक्ष्मी जी का प्रकोप हुआ जिसके फल स्वरुप राजा भद्रश्रवा का समस्त राजपाठ समाप्त हो गया। उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि उन्हें दो वक्त का खाना भी बड़ी मुश्किल से मिल पाता था। एक दिन रानी सूरतचंद्रिका ने राजा को आग्रह किया कि हमारा दामाद, धनवान व ऐश्वर्यशाली राजा है , क्यों ना आप उसके पास जाकर उसे अपनी स्थिति से अवगत काराये वह हमारी मदद जरूर करेगा। राजा भद्रश्रवा को रानी सूरतचंद्रिका की बात सही लगी वह तुरंत दामाद के पास चले गए।दामाद के राज्य पहुंचकर एक तालाब के किनारे कुछ देर विश्राम करने ठहरे। तभी तालाब के किनारे पानी लेने आते जाते दासी ने उन्हें देखकर विनम्रता से पूछा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वह रानी शामबाला के पिता है। वह दौड़कर रानी को सारी बातें बताई। रानी ने अपने पिता का बड़े आदर सत्कार से स्वागत किया। खान-पान करवाया तब पिता ने अपनी पुत्री को स्थिति से अवगत कराया। फिर जब वह लौटने लगे तो पुत्री ने उन्हें सोने की मोहरों से भरा घड़ा दिया । राजा भद्रश्रवा जब वापस लौटे तो उन्हें देखकर रानी सूरतचंद्रिका खुश हुई। उन्होंने सोने की मोहरों से भरे घड़े का मुंह खोला तो देखा उसमें धन के बदले कोयले रखे हुए मिले। यह सब श्री महालक्ष्मी जी के प्रकोप से ही हुआ था। इसी तरह कई दिन बीत जाने के बाद रानी स्वयं अपनी पुत्री के पास गई। वह दिन अगहन मास का अंतिम गुरुवार था पुत्री शामबाला ने श्री महालक्ष्मी जी का व्रत रखा और अपनी माता सूरतचंद्रिका से भी करवाया तथा दोनों ने संपूर्ण विधि विधान से पूजा की। इसके बाद रानी सूरज चंद्रिका अपनी पुत्री के यहां से घर लौट आई।व्रत रखने से उसे फिर से अपना राजपाठ, धन दौलत व ऐश्वर्य की प्राप्ति हुई। कुछ दिनों के उपरांत उनकी पुत्री शामबाला अपने माता-पिता के घर आई। अपनी पुत्री को घर में देखकर रानी को पुरानी बातें याद आई कि कैसे उसने घड़े में कोयला दिया था। इसी परिणाम स्वरुप उसकी माता-पिता के घर आने पर कोई आदर सत्कार नहीं मिला बल्कि अनादर ही हुआ। किंतु उसने इस बात का बुरा नहीं माना और अपने घर लौटते समय थोड़ा सा नमक ले लिया घर लौटने पर उसके पति ने पूछा कि अपने मायके से क्या लाई हो ? इस पर उसने जवाब दिया-वहां का सार लाई हूं। पति ने पूछा इस बात का क्या मतलब हुआ? शामबाला ने कहा थोड़ा धीरज रखे आपको शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा। उस दिन शामबाला ने सारा भोजन बगैर नमक डाले ही बनाकर परोसा।पति ने खाना चखा। सारा खान बिना नमक का था इसलिए स्वाद नहीं आया। फिर शामबाला ने थोड़ा सा नमक डाला जिससे भोजन स्वादिष्ट लगने लगा। तभी शामबाला ने पति से कहा- यही है वह मायके से लाया हुआ सार। पति को उसकी सारी बातें समझ आ गई और वह हंसी-खुशी भोजन करने लगे। इस तरह जो भी श्रद्धा भाव से श्री महालक्ष्मी जी का व्रत रख कर पूजा करे तो उसे पर माता की कृपा होती है और उसे सुख संपत्ति व शांति की प्राप्ति होती है तथा सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। सब कुछ प्राप्त होने पर भी महालक्ष्मी जी की पूजा करना नहीं भूलना चाहिए। हर गुरुवार को व्रत पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे महालक्ष्मी जी की कृपा भक्तों पर हमेशा बनी रहे।
।।कथा समाप्त।।
माता लक्ष्मी की आरती।
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। मैया तुम ही जग-माता।।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। मैया सुख सम्पत्ति दाता॥
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। मैया तुम ही शुभदाता॥
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। मैया सब सद्गुण आता॥
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। मैया वस्त्र न कोई पाता॥
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। मैया क्षीरोदधि-जाता॥
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। मैया जो कोई जन गाता॥
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता। ऊं जय लक्ष्मी माता।।
।।बोलो श्री महालक्ष्मी जी की जय।।