हनुमान पचासा भगवान हनुमान को समर्पित एक पवित्र प्रार्थना है।
इसमें हनुमान जी की महिमा और उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन किया गया है।
इसकी रचना २०० वर्ष पूर्व हुई थी । बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध कवि ने हनुमान पचासा की रचना की थी ।
यह मानवीय लिखी गई थी। गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक है जिसे “हनुमान अंक” कहा जाता है।
हनुमान अंक के पृष्ठ संख्या 462 और 463 पर हनुमान पचासा दी गयी है।
हनुमान पचासा का महत्व
- भय से मुक्ति
इस का पाठ करने से भय, नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। - मन को शांति
यह पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है और तनाव, चिंता एवं अवसाद को दूर करता है। - आत्मबल और साहस
भगवान हनुमान के स्मरण से आत्मबल और साहस में वृद्धि होती है, जो जीवन के कठिन समय में सहायक होता है। - शत्रुओं पर विजय
पचासा का पाठ शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होता है। - सभी कार्यों में सफलता
यह पाठ हर कार्य को सफल बनाने और जीवन में सकारात्मकता लाने का मार्ग प्रदान करता है। - धन और समृद्धि
हनुमानजी की कृपा से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति और धन की प्राप्ति होती है।
कथा
इसकी एक छोटी सी कहानी यह है कि मध्य प्रदेश के चरखारी राज्य में राजा अमान सिंह के दरबार में एक कवि हुआ करते थे। वे हनुमान जी के बड़े भक्त थे। काकनी नाम की एक जगह है, जहां एक गांव में पहाड़ी पर हनुमान जी की एक मूर्ति स्थापित थी। वह कवि उस मूर्ति की पूजा करते थे और अपनी श्रद्धा व्यक्त करते थे।
ऐसा हुआ कि जब आप बहुत सफल होते हैं, तो स्वाभाविक रूप से विरोधी भी उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसा ही उस कवि के साथ हुआ। दरबार में एक और कवि था ओकरा, जो उसकी कविताओं को चुनौती देता था।
दोनों ही अपनी कविताओं में बहुत निपुण थे, और दोनों को अपनी काव्य क्षमता पर गर्व था। यह तय किया गया कि यह निर्णय करने के लिए कि दोनों में से सर्वश्रेष्ठ कवि कौन है, वे काकनी के हनुमान जी के सामने अपनी कविताओं का पाठ करेंगे।
सच्ची भक्ति
जिसकी कविता से हनुमान जी की मूर्ति में कोई बदलाव आएगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा। पहले दिन, पहले कवि ने अपनी कविता का पाठ किया, लेकिन मूर्ति में कोई बदलाव नहीं हुआ। फिर दूसरे दिन, जब उस सम्मानित कवि ने अपनी प्रार्थना शुरू की, तो हनुमान जी की पत्थर की मूर्ति थोड़ी कंपन करने लगी और मूर्ति का मुख उस दिशा में झुक गया, जहां वह कवि बैठे थे।
इस प्रकार, मूर्ति में हुए उस परिवर्तन ने यह स्पष्ट कर दिया कि सच्ची भक्ति और काव्य का प्रभाव दिव्यता को भी प्रभावित कर सकता है।
उस मूर्ति में जो परिवर्तन हुआ था, वह आज तक देखा जा सकता है। आज भी वह कटिया, यानी हनुमान जी की मूर्ति का झुकाव, वहां उपस्थित है। यह हनुमान जी की अनंत कृपा और प्रत्यक्ष चमत्कार का प्रमाण है। यदि कोई यह विश्वास करता है कि हनुमान जी अथवा उनके चमत्कार को समझना या अनुभव करना संभव है, तो 50 दिनों तक हनुमान जी की साधना और पूजा करने से निश्चित रूप से लाभ मिलता है।
50 दिनों तक हनुमान पचासा के प्रतिदिन 50 छंदो का पाठ करें। यदि आपको हनुमान जी पर विश्वास है, तो यह बहुत लाभकारी होता है। यदि कोई इसे करना चाहता है, तो वह इस उपाय को अपनाकर स्वयं अनुभव कर सकता है।
हनुमान पचासा
महाकाय महाबल महाबाहु महानख,महानद महामुख महा मजबूत है
भनै कवि मान महावीर हनुमान महादेवन को देव महाराज महादूत है।।
पैंठ के पाताल कीन्हों प्रभु को सहाय महि,.रावण दहायवे को प्रौढ़र सपूत है ।
डाकिनी को काल, शाकिनी को जीवहारी सदा, काकिनी के गिरी पै बिराजै पौन-पूत है।।
बज्र की झिलन, भानु मंडली गिलन, रघुराज कपिराज को मिलन मजबूत को।
सिन्धु मग झारबो उजारबो बिपिन लंक बारबो उबारबो बिभीषन के सूत को।।
भनै कवि मान ब्रह्म-शक्ति ग्रसन जान, राम भ्रात प्राण दान द्रोणगिरी ले अकूत को।
रंजन धनंजय, सोक गंजन सिया को लखो,भाल खल भंजन, प्रभंजन के पूत को ।।
रौद्र रस रेले रन खेले मुख भेजे भार, असुर उसेले जो उबीले सुर गाढ़ तें।
चपल निसाचर चमून चक चूरे महि, पूरे लंक भाजन जरूरी जाड़ पाढ़ तें।।
जानत को डाढैं शोक सागर तें काढ़ें सान, साढ़े गुन बाढ़े खल बाढ़ तें।
परे प्रान पाड़े दल दुष्टन को ढ़ाढ़े धन्य पौन पुत्र डाढ़े जे उखाड़े यम दाढ़ तें।।
अरूण ज्यों भौम सोम दृग लौं असीम लोम, कोमल ज्यों छेम करे कर सिय कंत के।
महा प्रलयोंमें मुनि लोमस के लोमन लौं, बैरिन बिलोम अनलोम सुर संत के।।
बज्र मुद मोम छबि मान संत सोम जे, अ-सोम ग्रह सोम कर अरिन के अंत के।
खलन के खोम जोम होत है अजोम जोम, ज्वालिन के तोम बंदौं रोम हनुमंत के।।
ज्वाल सों जले न जलजोर सों जले ना अस्त्र, अरि को धले न जो चले ना जिमी जंग की।
काल दंड ओट सत कोट की न लगे चोट, सात कोटि महामंत्र मंत्रित अभंग की।।
कहे कवि मान मघवान मिल गीरवान, दीनो बरदान मान पानके प्रसंग की।
जीत मोह माया मार कीन्हो छार छाया राम, जाया कर दाया धन्य काया बजरंग की।।