शीतला षष्ठी व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है। यह व्रत माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और कुशलता के लिए रखती हैं। माता शीतला की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
शीतला षष्ठी व्रत का महत्व
माता शीतला जीवन की गर्मी को शांत करती हैं। वे सभी दोषों को नष्ट करती हैं और शांति तथा प्रसन्नता प्रदान करती हैं। इस व्रत को रखने से विशेष रूप से रोगों से छुटकारा मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत शरीर के कष्टों को दूर करता है और बच्चों को सुख-संपत्ति का आशीर्वाद प्रदान करता है।
शीतला षष्ठी व्रत से शारीरिक और दैविक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत सौभाग्य लाने वाला माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा से यह व्रत रखती हैं, उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
व्रत करने से मन शांत रहता है और चेचक जैसी बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है।
इस व्रत में घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और बासी भोजन को माता को अर्पित किया जाता है। दिन गर्म भोजन या गर्म पानी का प्रयोग वर्जित है।
तिथि
- तिथि: मंगलवार, 4 फरवरी 2025
शीतला षष्ठी व्रत पूजा सामग्री और विधि
पूजा सामग्री:
- ठंडा पानी
- पूजा की थाली
- एक रात पहले पका हुआ भोजन (खीर, पूरी, गुलगुले, दही, रोटी, बाजरा)
- सप्तमी को बने मीठे चावल, नमक पारे, मठरी
- आटे से बना दीपक
- रोली, वस्त्र या कलावा
- अक्षत, हल्दी
- बड़कुले की माला
- खुले सिक्के
- मेहंदी
- ठंडा जल (लोटे में)
पूजा विधि:
- सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करें।
- पूजा की थाली तैयार करें और उसमें सभी सामग्री रखें।
- सबसे पहले शीतला माता को ठंडा जल चढ़ाएं।
- माता को हल्दी का तिलक लगाएं।
- फिर सभी चीजें माता को अर्पित करें।
- गेहूं के दानों से भोग लगाएं और माता से क्षमा प्रार्थना करें।
- सभी चीजें चढ़ाने के बाद, स्वयं और घर के सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं।
- शीतला माता की कथा सुनें और सुनाएं।
- अंत में हाथ जोड़कर माता से प्रार्थना करें:
“हे शीतला माता, इस पूजा को स्वीकार करें और शीतलता प्रदान करें।”
प्राचीन काल की शीतला षष्ठी व्रत की कथा
बहुत पुराने समय की बात है, एक सैनिक साहूकार था जिसे सेठ कहा जाता था। उसके सात बेटे थे और सभी बेटों की शादी हो चुकी थी, लेकिन उनमें से किसी को भी संतान नहीं हो रही थी। न तो किसी को बेटा मिला था और न ही बेटी। इस कारण सेठ और उसकी पत्नी बहुत परेशान रहते थे। वे दिन-रात यही सोचते रहते थे कि इस वर्ष भगवान हमें कोई संतान दें। यह चिंता उन्हें बहुत परेशान कर रही थी।
कुछ दिनों बाद उनके पास रहने वाली एक वृद्ध महिला ने उन्हें सलाह दी कि यदि वे पूरे विधि-विधान से शीतला षष्ठी व्रत रखें, तो उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी। सेठानी ने यह सुनकर अपनी सभी बहुओं को बुलाया और सभा में व्रत रखने की घोषणा की।
सभी ने शीतला षष्ठी व्रत किया और भगवान की कृपा तथा माता शीतला के आशीर्वाद से उनकी सभी बहुओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके बाद से वे सभी व्रत को निरंतर करते रहे।
एक बार ऐसा हुआ कि सेठानी ने शीतला षष्ठी व्रत को नजरअंदाज कर दिया। उसने गर्म भोजन किया, गर्म पानी से स्नान किया और माता शीतला के बारे में अपशब्द कहे। इसके परिणामस्वरूप, जब वह शाम को सोने गई, तो उसने बहुत ही भयानक सपने देखे।
उसने देखा कि उसका पति यानी सेठजी मृत्युशय्या पर हैं और उनकी मृत्यु हो गई है। सभी बेटे भी मर चुके हैं। जब वह अपनी बहुओं के पास जाती है, तो पता चलता है कि उनकी बहुएं भी मृत्यु को प्राप्त हो गई हैं।
शीतला माता की कृपा
सेठानी बहुत परेशान हो गई और पागलों की तरह रोने और चिल्लाने लगी। उसकी आवाज सुनकर पड़ोसी इकट्ठा हो गए। पड़ोसियों ने कहा कि यह सब शीतला माता का परिणाम है क्योंकि उसने व्रत नहीं किया और उनका अपमान किया।
यह सुनकर सेठानी पागल होकर जंगल की ओर भाग गई। जंगल में उसने एक महिला को देखा, जिसकी देह आग की लपटों की तरह लाल हो रही थी और वह जल रही थी। वह महिला कोई और नहीं बल्कि माता शीतला थीं। माता ने सेठानी से कहा कि क्या तुम मुझे दही दे सकती हो?
सेठानी ने तुरंत दही का प्रबंध किया और माता के जलते हुए शरीर पर दही लगाया। जैसे ही उसने दही लगाया, माता का शरीर शांत हो गया। माता शीतला प्रसन्न होकर बोलीं, “जो तुम चाहती हो, मांग लो।”
सेठानी ने कहा, “माता, आप सबकुछ जानती हैं। मेरे पति, मेरे बेटे और बहुएं कैसे काल का ग्रास बन गए हैं।”
माता शीतला ने कहा, “तुमने मेरे व्रत का अपमान किया, इसलिए यह सब हुआ। अब मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं। घर जाओ, तुम्हारा सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
सेठानी घर लौटी और देखा कि उसका परिवार पहले जैसा खुशहाल हो गया था। तब से यह व्रत पूरी श्रद्धा और विधि से किया जाने लगा।
सार
इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए। शीतला षष्ठी व्रत के दिन शीतलता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिन ठंडा पानी पीना चाहिए और गर्म चीजों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
इस व्रत में जो भी भोग माता को अर्पित किया जाता है, वह एक दिन पहले तैयार किया जाता है। यही बासी भोजन माता को चढ़ाया जाता है और प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस दिन गर्म भोजन या गर्म पानी का प्रयोग वर्जित है।