भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप को विश्वरूप कहा जाता है, जो उनका सार्वभौमिक रूप है। भगवद्गीता के 11वें अध्याय में बताया गया है कि कुरुक्षेत्र युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। इस रूप में उन्होंने अर्जुन को कई दिव्य और अद्भुत रूपों का दर्शन कराया।
इस अध्याय से पहले, जब अर्जुन गहरे विषाद (दुःख) में थे, तो श्रीभगवान ने उन्हें उनके दुख को दूर करने के लिए विस्तार से ज्ञान दिया। भगवान ने अर्जुन को गहरे और गूढ़ ज्ञान से अवगत कराया और अपनी विभूतियाँ (विशिष्ट शक्तियाँ) भी बताईं।
इन विभूतियों को बताने के बाद भगवान ने यह भी समझाया कि, “मैं समस्त जगत का आधार हूं, हालांकि मैं इस दुनिया में सबके अंश से साकार रूप में मौजूद हूं, फिर भी मैं अपने असली रूप में अपरिवर्तित और पूर्ण हूं।”
परमात्मा का महत्त्व और महिमा सुनने के बाद अर्जुन के मन में यह सवाल आया कि क्या ऐसा सर्वव्यापी परमात्मा का रूप मैं देख सकता हूं? क्या मेरे अंदर ऐसी योग्यता है कि मैं भगवान का विश्वरूप देख सकूं? ये सवाल सोचते हुए अर्जुन ने भगवान से पूछा।
अर्जुन का संवाद
अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं, “हे प्रभु, आपने जो मुझे अत्यंत गोपनीय उपदेश दिया है, उससे मेरी अज्ञानता दूर हो गई है। मैंने आपके अविनाशी रूप और जगत के उत्पत्ति-विनाश के बारे में जाना है। हे कमलनयन, आप जैसे कहते हैं, वैसा ही है। लेकिन, हे पुरुषोत्तम, आपकी दिव्य शक्ति और रूप को मैं देखना चाहता हूँ। कृपया मुझे वह रूप दिखाएँ।”
भगवान श्रीकृष्ण का विश्वरूप दर्शन
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, “हे अर्जुन, अब तुम मेरे सैकड़ों और हजारों रूप देखो, जिनमें अनगिनत देवता, रुद्र, वसु, आदित्य और अन्य शक्तियाँ समाहित हैं। तुम सभी जड़ और चेतन को एक साथ देखो। तुम्हारी आँखों से मुझे देख पाना असंभव है, इसलिए मैं तुम्हें दिव्य नेत्र प्रदान करता हूँ।”
संजय का वर्णन
संजय ने कहा, “हे राजा, भगवान ने अर्जुन को अपने दिव्य रूप का दर्शन कराया। इस रूप में अनेक मुख, नेत्र, दिव्य आयुध और आभूषण थे। भगवान का वह विराट रूप सर्वव्यापी था, जिसमें सभी दिशाएँ और देवता समाहित थे।”
अर्जुन का विस्मय और स्तुति
अर्जुन ने कहा, “हे विष्णु, आपके इस विराट रूप में सूर्य के समान प्रकाश है। मैंने सभी देवताओं, ब्रह्मा, महादेव, ऋषियों और नागों को आपके भीतर देखा। आपका रूप असीमित है, न तो इसका अंत दिखता है, न मध्य। आप सूर्य की तरह तेजस्वी हैं। यह रूप भयावह है और सभी दिशाओं से दिखता है।”
भगवान के प्रति श्रद्धा
“हे भगवान, मैं आपका यह अद्भुत रूप देखकर व्याकुल हो रहा हूँ। आपके दांतों में हमारे शत्रु, भीष्म, द्रोण, कर्ण आदि का विनाश हो रहा है। इस रूप को देखकर मुझे और देवताओं को भय लग रहा है। आप जो असीमित शक्ति से भरे हुए हैं, कृपया मुझे अपना शांत रूप दिखाएं।”
भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर
भगवान कहते हैं, “हे अर्जुन, मैं महाकाल हूँ। मैं प्राणियों के विनाश की दिशा में हूं। तुम्हारे बिना भी शत्रु नष्ट हो जाएंगे। तुम युद्ध करो, विजय प्राप्त करो और राज्य भोगो।”
अर्जुन की श्रद्धा और भगवान का उपदेश
अर्जुन कहते हैं, “हे कृष्ण, आप ब्रह्मा के उद्गम हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं। आप संत और असत्य, दोनों के परे हैं। आप इस संसार के आधार हैं। मुझे आपके इस अद्भुत रूप को देखकर अत्यधिक श्रद्धा है। कृपया मुझे उसी रूप में दिखाएं जिसमें आप शंख, गदा और चक्र पकड़े हुए हैं।”
भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, “हे अर्जुन, मैंने तुम्हें यह अद्भुत रूप दिखाया है, जिसे कोई और नहीं देख सकता। यह रूप अत्यंत दुर्लभ है। देवता भी इसे देखने के लिए तरसते हैं। इस रूप को देखना केवल सर्वोत्तम भक्ति और सच्चे समर्पण से संभव है। जो मेरे प्रति पूर्ण भक्ति और समर्पण करता है, वही मुझे प्राप्त करता है।”
संजय का वर्णन
संजय कहते हैं, “भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को फिर से अपना चार भुजाओं वाला रूप दिखाया और फिर अपना मानव रूप धारण कर शांति प्रदान की। अर्जुन ने कहा, ‘हे जनार्दन, आपके शांत रूप को देखकर मुझे शांति मिली है।'”
भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश
भगवान कहते हैं, “हे अर्जुन, जिस रूप को तुमने देखा है, वह अत्यंत दुर्लभ है। यह रूप वेदों, तपस्या, दान, यज्ञ से नहीं देखा जा सकता। लेकिन, केवल पूर्ण भक्ति और समर्पण से यह रूप देखा जा सकता है।”
यह संवाद श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच भगवान के विराट रूप के दर्शन और अर्जुन के श्रद्धा भाव को दर्शाता है, जिसमें भगवान ने अर्जुन को अपने अद्भुत रूप को दिखाकर उसके मन में भय और भ्रम को समाप्त किया।